Those colours of the tricolour: When the national flag was hoisted proudly for the first time
अर्सला खान/नई दिल्ली
आज़ादी केवल एक राजनीतिक परिवर्तन नहीं थी, बल्कि आत्मसम्मान, पहचान और संकल्प का प्रतीक थी. इसी आत्मसम्मान का रूप था तिरंगा, जो आज हमारी पहचान है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस तिरंगे को पहली बार कब और कहां फहराया गया था? किसने इसकी शुरुआत की थी, और उस ऐतिहासिक क्षण का गवाह कौन-कौन बना था? तिरंगे की पहली उड़ान सिर्फ एक कपड़े को फहराना नहीं था, बल्कि दासता की बेड़ियों को तोड़ने का उद्घोष था.
कोलकाता: जहां पहली बार लहराया तिरंगा
भारत में तिरंगे को पहली बार औपचारिक रूप से 7 अगस्त 1906 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था. यह वह दौर था जब बंगाल विभाजन के खिलाफ पूरे देश में उबाल था और ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन तेज़ हो रहा था. इसी आंदोलन के बीच भारतीय स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में एक राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता महसूस की गई.
इस तिरंगे की कल्पना और फहराने का श्रेय जाता है सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, बिपिन चंद्र पाल, बाल गंगाधर तिलक, और आनंदमोहन बोस जैसे राष्ट्रवादी नेताओं को, जिनकी उपस्थिति इस ऐतिहासिक क्षण में दर्ज थी. इस आयोजन का नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं ने किया था और करीब 5,000 से अधिक देशभक्तों की उपस्थिति में यह ध्वज लहराया गया था.
कैसा था पहला तिरंगा?
1906 में फहराया गया तिरंगा आज के राष्ट्रीय ध्वज से अलग था इसमें तीन रंग थे:
ऊपर हरा रंग,
बीच में पीला रंग,
नीचे लाल रंग.
हरे रंग पर कमल के फूलों की आकृतियां थीं, पीले हिस्से पर ‘वन्दे मातरम्’ लिखा गया था, और लाल रंग पर सूर्य और चंद्रमा बनाए गए थे.
यह ध्वज स्वतंत्र भारत का नहीं था, बल्कि आजादी के आंदोलन का प्रतीक था. एक ऐसी पहचान जो अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देती थी और भारतीयों को एकता का एहसास कराती थी.
लहराने से पहले का संघर्ष
इस तिरंगे को फहराने की योजना महज़ एक प्रदर्शन नहीं थी; यह ब्रिटिश राज की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध विद्रोह का खुला ऐलान था. इस समय बंगाल विभाजन ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया था. जनआक्रोश, बहिष्कार और आंदोलन की लहर में, एक साझा प्रतीक की आवश्यकता थी जो सभी भारतीयों को एक सूत्र में बांध सके.
तिरंगे को फहराकर देशवासियों को यह संदेश दिया गया कि अब हम केवल विरोध नहीं, बल्कि आज़ादी की दिशा में ठोस कदम उठा रहे हैं.
किन चेहरों ने दिया समर्थन?
इस ऐतिहासिक क्षण में भारतीय राजनीति और समाज के कई दिग्गज शामिल थे. प्रमुख नेताओं में:
बाल गंगाधर तिलक – जिन्होंने "स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" का नारा दिया.
बिपिन चंद्र पाल – जिन्हें "लोकमान्य" कहा गया और जो गरम दल के प्रमुख नेता थे.
अरविंद घोष – जिन्होंने बाद में आध्यात्मिक रास्ता अपनाया, लेकिन तब वो एक क्रांतिकारी विचारक थे.
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी – जिन्होंने प्रेस और सार्वजनिक मंचों के ज़रिए ब्रिटिश सरकार को खुली चुनौती दी.
इनके अलावा हज़ारों की संख्या में युवा, विद्यार्थी, महिला कार्यकर्ता और समाज सुधारक इस आयोजन में शामिल हुए। यह केवल एक ध्वज का उत्सव नहीं था, बल्कि भारत की चेतना का सार्वजनिक उद्घोष था.
स्वतंत्रता की ओर एक प्रतीकात्मक यात्रा
इस पहली फहरावट के बाद तिरंगे के स्वरूप में कई बदलाव हुए। 1921 में पिंगली वेंकैया ने महात्मा गांधी के निर्देश पर एक नया डिज़ाइन तैयार किया, जिसमें सफेद, हरे और लाल रंग के साथ चरखा जोड़ा गया. यह ध्वज तब से कांग्रेस के अधिवेशनों में उपयोग होने लगा.
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने वर्तमान तिरंगे को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया, जिसमें केसरिया, सफेद, हरा और अशोक चक्र के साथ हमारी पहचान गढ़ी गई.
वो पहली लहर
1906 की वह सुबह जब कोलकाता में तिरंगा पहली बार फहराया गया, केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं था. यह एक नए भारत की शुरुआत थी. इस क्षण ने स्वतंत्रता संग्राम को गति दी, लोगों को जोड़ा और यह यकीन दिलाया कि एक दिन यह ध्वज लाल किले की प्राचीर पर भी लहराएगा.
आज जब हम तिरंगे को देखते हैं, वह सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं होता. वह उन अनगिनत आंसुओं, बलिदानों और संकल्पों का जीवंत प्रमाण है, जिसकी पहली अभिव्यक्ति कोलकाता की उस ऐतिहासिक घड़ी में हुई थी.
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