गिरिजाशंकर शुक्ला / हैदराबाद
पुरानी परंपराओं को तोड़कर अब मुस्लिम समाज के युवा भी अब रक्तदान की जरूरतों और सामाजिक जिम्मेदारियों को समझने लगे हैं. इसलिए मुस्लिम युवा अब आगे बढ़कर रक्तदान में रुचि ले रहे हैं.
रक्तदान का नाम सुनते ही अच्छे-अच्छों को पसीना आ जाता है. रक्तदान का सुझाव मिलते ही बहुत से तो लोग खिसक लेते हैं. मुसलमानों को स्थिति इस मामले में और भी ज्यादा खराब मानी जाती थी.
अब्दुल मुस्तकी शेख समीर और मोहम्मद कलीम रक्तदान करते हुए
हालत यह होती है कि मुस्लिम समाज में कई बार स्वयं के परिजन को भी खून की आवश्यकता होती है, लेकिन कोई परिजन खून देने के लिए सामने नहीं आता. लेकिन वर्तमान में बदलाव की बहार चल रही है. मुस्लिमों का नजरिया अब तेजी से बदल रहा है. खासकर युवाओं में तेजी से जागरूकता बढ़ रही है.
मुस्लिम नौजवान अब इसे एक बड़ा कदम और इंसानियत के प्रति अपना जज्बा समझने लगे हैं. असीफाबाद के मुस्लिम युवा समाज सेवक और संस्था द्वारा रक्तदान शिविर कार्यक्रम में रक्तदान के लिए सबसे पहले मुस्लिम युवा ही सामने आ रहे हैं.
आसिफाबाद जिले में कई मुस्लिम युवकों ने अस्पताल में जरूरतमंदों को रक्तदान देकर कई लोगों की जान बचाई है. मुस्लिम युवाओं से बातचीत करने पर उन्होंने बताया कि अक्सर हम समाज में लोगों की भलाई के लिए जाति और धर्म देखकर रक्तदान नहीं करते हैं, बल्कि हम इंसानियत को देखकर रक्तदान करते हैं.