उसने छोटी उम्र में पूरा किया 200 कविताओं का सफर

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 25-03-2021
कश्मीर की अरबियाः छोटी उम्र में पूरी की 200 कविताओं का सफर
कश्मीर की अरबियाः छोटी उम्र में पूरी की 200 कविताओं का सफर

 

शाहनवाज आलम / गुरुग्राम ( हरियाणा )

कश्मीर के पंपोर की रहने वाली युवा लेखक मीर अरिबा द्वारा लिखित पुस्तक ‘निंबल किंगडम-ए-किंगडम ऑफ माय इमोशन’ का विमोचन यहां के सेक्टर-29के एक रेस्तरां में किया गया. इस मौके पर उन्होंने किताब में संकलित 32 कविताओं के बारे में बताया. कई कविताएं भी पढ़कर सुनाईं और उसकी व्याख्या भी की.

वह अब तक 200 से अधिक कविताएं ऊर्दू और अंग्रेजी में लिख चुकी हैं. इस किताब के लिए 32कविताओं का चयन किया. इसमें सभी कविताएं अलग-अलग थीम पर आधारित हैं. दो कविता कश्मीर पर केंद्रित है. यह कविता कश्मीर के स्थिति पर है, जो आज कश्मीर को समझना चाहते हैं, वहां के बारे में जानना चाहते है. उसपर फोकस है. कविता के चैप्टर के नाम गॉड, बी-काइंड, मेमोरिज विल लास्ट फॉर ओवर, एवरीथिंग इज शट, मून एंड मी, नेवर गिव अप, कश्मीर आदि है.

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‘नेवर गिव अप’ पूरी तरह से व्यक्तिगत कठिनाइयों और मेहनत पर आधारित है. यह कविता एक लड़की के ख्वाब के पूरा करने के लिए किए जा रहे संघर्ष को बयां करती है, जबकि कविता कश्मीर 2016के बाद के उपजी स्थिति से प्रेरित है. वहीं ‘एवरीथिंग इज शट’ आर्टिकल 370 के बाद की स्थिति को बयां करती है.

कश्मीर के करीब आएं, गलतफहमियां दूर होंगी

आवाज द वॉयस से बातचीत में कहती हैं कि कश्मीर को लेकर बहुत गलतफहमियां है. यह गलतफहमियां वहां जाकर केवल समझ सकते हैं. कश्मीर के कुछ मुद्दे हैं, लेकिन वह सिर्फ बाहर से देखकर समझ सकते हंै. कश्मीर में पॉजिटीव वाइब्स बहुत है. आज उसी के कारण मैं आगे बढ़ रही हूं.’’

19 साल की युवा लेखक होने के सवाल पर अरिबा कहती है, दसवीं के बाद ही लेखक बनने का शौक पैदा हो गया. दस वीं पास करने के बाद पंपोर में मुस्लिम एडुकेशन इंस्टीट्यूट में 12वीं साइंस में दाखिला लिया, तो उस मेरे मन में दो ख्याल थे, या तो मैं लेखिका बनूं या वैज्ञानिक.

फिर मैंने लेखक बनने का चयन किया. जिसकी वजह से मैंने दसवीं और उसके बाद के कविता को मुकम्मल किया. मैंने अपना आस-पास घटित घटनाओं से प्रेरित होकर अपने विचार और यथास्थिति को कविता की शक्ल दी है.

पहले नहीं नहीं थी लेखन की समझ

बकौल आरिबा, पहले तो पता ही नहीं था क्या लिखना है और कैसे लिखना है. अंग्रेजी में लिखने की शुरुआत की और कुछ-कुछ लिखकर मैं अपने दोस्तों या किसी रिश्तेदार को दिखाती तो मजाक उड़ाते, लेकिन अपने काम पर फोकस किया. इसमें मेरे परिवार और मम्मी-पापा ने बहुत स्पोर्ट किया. आज 51पन्ने वाली किताब की शक्ल में मौजूद है.

उन्होंने कहा कि दसवीं के बाद से ही प्रकाशक की तलाश थी. कोई नहीं मिला. कई प्रकाशकों को प्रस्ताव भेजा. इस सिलसिले में छत्तीसगढ़ के इंकार्ट को भी एक प्रस्ताव भेजा था. इनका एक ऑफिस दिल्ली में भी है. इंकार्ट ने जब जवाब आया तो मुझे बहुत खुशी हुई. और उन्होंने मेरी कविता को प्रकाशित किया.

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छुटपन से लेखन का शौक

कविता लेखन के जज्बे के बारे में कहती है, बचपन से ही लघु कथाएं, कहानियां पढ़ने का शौक था. जब मैं छठीं कक्षा में थी तो अपनी दादी के लिए पहली कविता लिखी थी.अंग्रेजी और ऊर्दू दोनों जबान में महारत रखने वाली आरिबा कहती हैं, वह फिलहाल एक उपन्यास लेखन पर काम कर रही हैं.

जल्द ही यह उपन्यास  लोगों के बीच होगी. भविष्य की योजना पर कहती हैं कि यह मेरी पहली किताब है. इस पर अच्छे कमेंट्स मिले हैं. जिससे उत्साह बढ़ा है. मेरी इच्छा है कि बड़े प्रकाशक मेरी किताबों को छापें और इसके लिए मैं कड़ी मेहनत कर रही हूं.