इमान सकीना
इस्लाम एक ऐसा धर्म है जो न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, बल्कि जीवन के हर पहलू में संतुलन और नैतिकता पर ज़ोर देता है. इसकी सबसे प्रमुख शिक्षाओं में से एक है — जीवन की पवित्रता.
कुरान और हदीस के माध्यम से इस्लाम स्पष्ट रूप से निर्दोष लोगों की हत्या को पाप घोषित करता है और जीवन को एक ईश्वरीय उपहार मानता है जिसे केवल अत्यंत सीमित और न्यायसंगत परिस्थितियों में ही समाप्त किया जा सकता है.
कुरान में जीवन की रक्षा का संदेश
कुरान की सूरह अल-माइदा (5:32) में कहा गया है:"जो कोई किसी आत्मा को मारता है — सिवाय उसके जिसने किसी को मारा हो या धरती में बिगाड़ किया हो — वह ऐसा है जैसे उसने पूरी मानवता को मार डाला. और जो किसी एक को बचाता है, वह ऐसा है जैसे उसने पूरी मानवता को बचा लिया."
यह आयत इस्लाम की उस भावना को दर्शाती है जिसमें एक व्यक्ति के जीवन को सम्पूर्ण मानव जीवन के बराबर महत्त्व दिया गया है. इसी तरह, सूरह अल-इसरा (17:33) में स्पष्ट किया गया है कि बिना न्याय के किसी आत्मा की हत्या वर्जित है:"अल्लाह ने जिस आत्मा को पवित्र बनाया है, उसे अधिकार के बिना मत मारो."
पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएं: दया और सह-अस्तित्व का उदाहरण
पैगंबर मुहम्मद (शांति उन पर हो) ने अपनी शिक्षाओं और जीवन के उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि एक सच्चा मुसलमान वही है जिससे किसी को डर नहीं, बल्कि सुरक्षा का अनुभव हो.हदीस में वे कहते हैं:"एक मुसलमान वह है जिसकी ज़बान और हाथों से लोग सुरक्षित हैं..." (सहीह अल-बुखारी)
एक अन्य हदीस में वे चेतावनी देते हैं कि “क़यामत के दिन सबसे पहले खून-खराबे के मामलों का फैसला होगा.” यह इस्लाम में हत्या को मिलने वाले गंभीर दर्जे को दर्शाता है.
शरिया में जीवन की रक्षा एक मुख्य उद्देश्य
इस्लामी कानून (शरिया) के पांच प्रमुख उद्देश्यों में जीवन की सुरक्षा प्रमुख है. यह केवल एक सामाजिक सिद्धांत नहीं बल्कि एक दैवी कर्तव्य है. पैगंबर के शासन और बाद के खलीफाओं के दौर में युद्ध के समय भी नागरिकों, महिलाओं, बच्चों और धार्मिक पादरियों को पूरी सुरक्षा दी जाती थी. इस्लाम में युद्ध की भी अपनी नैतिक सीमाएं हैं.
आधुनिक चरमपंथ और इस्लामी शिक्षाओं का दुरुपयोग
हाल के वर्षों में कुछ चरमपंथी समूहों ने इस्लाम की शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है, जिससे दुनिया भर में भ्रम और भय फैला है. हालांकि, प्रमुख इस्लामी संस्थान जैसे कि मिस्र का अल-अजहर विश्वविद्यालय और विद्वान शेख अब्दुल्ला बिन बय्या जैसे कई विद्वानों ने आतंकवाद और निर्दोष लोगों की हत्या के खिलाफ फतवे जारी किए हैं.
जिहाद बनाम आतंकवाद
इस्लाम में जिहाद का अर्थ आत्म-सुधार और अन्याय के खिलाफ संघर्ष है, न कि हिंसा या आतंकवाद। कुरान निर्दोष लोगों की हत्या को फसाद (धरती में भ्रष्टाचार फैलाना) कहता है, जो सबसे गंभीर अपराधों में से एक है.
सार: इस्लाम एक शांतिपूर्ण और करुणामयी जीवन का मार्ग
इस्लाम का सच्चा संदेश शांति, दया और मानव जीवन के प्रति गहरे सम्मान का है. धर्म, नस्ल या जाति के भेद के बिना हर आत्मा की गरिमा इस्लाम में बराबर मानी जाती है. कुरान कहता है:
"अल्लाह ने जिस आत्मा को हराम किया है, उसे अधिकार के बिना मत मारो... ताकि तुम तर्क का उपयोग कर सको." (सूरह अल-अनआम 6:151)
ऐसे समय में जब आस्था को हिंसा से जोड़ा जा रहा है, ज़रूरत है इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं की ओर लौटने की — जो हर जीवन को अनमोल मानता है और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा देता है.