अलीगढ़
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के राजनीति विज्ञान विभाग ने अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के अवसर पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। इस संगोष्ठी में अल्पसंख्यक अधिकारों से जुड़े संवैधानिक संरक्षण, वैश्विक अनुभवों और समकालीन चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की गई।
कार्यक्रम की शुरुआत में विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद नफीस अहमद अंसारी ने वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह दिवस सरकारों को अल्पसंख्यकों के लिए प्रभावी कल्याणकारी नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
प्रो. अर्शी खान ने अपने संबोधन में कहा कि किसी भी देश में अल्पसंख्यकों के साथ किया जाने वाला व्यवहार उस राज्य के लोकतांत्रिक चरित्र की कसौटी होता है। उन्होंने अल्पसंख्यक संरक्षण के लिए ऑस्ट्रेलिया में अपनाए गए पांच सूत्रीय सुधारों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सुधार अन्य देशों के लिए भी उपयोगी मॉडल बन सकते हैं।
प्रो. मोहम्मद आफताब आलम ने व्यक्तिगत और सामूहिक अधिकारों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 को भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों की आधारशिला बताया। उन्होंने कहा कि यह अनुच्छेद अल्पसंख्यकों को अपनी शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थाएं स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार देता है।
प्रो. मोहम्मद मोहिबुल हक़ ने भारतीय संदर्भ में अल्पसंख्यकों की अवधारणा और उनकी विभिन्न श्रेणियों पर चर्चा की। उन्होंने राज्य की इस जिम्मेदारी पर जोर दिया कि वह अल्पसंख्यकों की पहचान और अधिकारों की रक्षा करे तथा जबरन समरसता और नफरत आधारित विमर्श का विरोध करे।
श्री परवेज़ आलम ने अल्पसंख्यकों और लोकलुभावन राजनीति के संबंधों का विश्लेषण करते हुए बताया कि किस प्रकार अल्पसंख्यक बहुसंख्यकवादी राजनीतिक विमर्श का केंद्र बन जाते हैं।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्रो. मिर्ज़ा अस्मर बेग ने कहा कि भारत के पास अल्पसंख्यक संरक्षण के लिए दुनिया के सबसे मजबूत संवैधानिक ढांचों में से एक है। उन्होंने संविधान निर्माताओं की दूरदृष्टि की सराहना की, जिन्होंने अल्पसंख्यक अधिकारों को मौलिक अधिकारों के अध्याय में स्थान दिया।
कार्यक्रम का समापन प्रो. इक़बालुर रहमान द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।