मेवात दिवस पर विशेष : पंडित जसराज और मेवाती घराना, सुरों से रची गई एक अमर परंपरा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-12-2025
Music and singing tradition of the Mewati Gharana
Music and singing tradition of the Mewati Gharana

 

-डॉ. फ़िरदौस ख़ान 

संगीत सदियों से मेवात की पहचान रहा है। यहां का मेवाती घराना हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रमुख घरानों में से एक है। इसकी अपनी विशिष्ट गायन शैली है, जो भावपूर्ण और भक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है। यह घराना ख़याल गायकी और भक्ति संगीत पर ख़ास ज़ोर देता है। इसकी शैली में सरगम और तिहाई का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इसमें तान का तरीक़ा पटियाला और टप्पा गायकी के समान होता है, लेकिन इसका अनुप्रयोग ग्वालियर गायकी के क़रीब है। इस घराने के अपने अनूठे राग भी हैं, जैसे जयवंती तोड़ी, दिन की पूरिया, ओढ़व बागेश्री, खमाज बहार और भवानी बहार आदि।

मेवाती घराने की बुनियाद वीणा वादक उस्ताद वाहिद ख़ान और उनके छोटे भाई गायक उस्ताद घग्गे नाज़िर ख़ान ने उन्नीसवीं शताब्दी के आख़िर में इंदौर के होलकर दरबार में रखी थी। चूंकि उस्ताद वाहिद ख़ान और उस्ताद घग्गे नाज़िर ख़ान का परिवार मेवात से ताल्लुक़ रखता था, इसलिए इसका नाम मेवाती घराना पड़ा। बाद में उनका परिवार भोपाल में जाकर बस गया। इस परिवार से जुड़े कुछ लोग जयपुर चले गए। वहां भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत की परम्परा को बरक़रार रखा।  
 
शास्त्रीय संगीत के मामले में मेवाती घराना विश्व विख्यात है। पंडित मोतीराम मेवाती घराने के हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध गायक थे। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। हैदराबाद के आख़िरी निज़ाम उस्मान अली ख़ान उनकी गायकी के बड़े प्रशंसक थे। साल 1933 में उन्होंने पंडित मोतीराम को 'राज संगीतज्ञ' की उपाधि देने की घोषणा की थी। दरबार में समारोह की तैयारियां चल रही थीं। उनके घर में भी उत्सव का माहौल था, लेकिन उसी शाम उनका निधन हो गया और वे अपने हाथों यह सम्मान प्राप्त नहीं कर पाये। 
 
उस वक़्त उनके बेटों पंडित मणिराम और पंडित जसराज की उम्र ज़्यादा नहीं थी। पंडित जसराज तो महज़ तीन साल के ही थे। उनके बड़े भाई पंडित मणिराम ने उनकी परवरिश की। दोनों भाइयों ने अपने पिता की संगीत परम्परा को आगे बढ़ाया। पंडित मणिराम मेवात घराने के विख्यात गायक थे। उनके बच्चे भी अपनी ख़ानदानी विरासत को सींच रहे हैं। उनकी बड़ी बेटी सुलक्षणा पंडित सुप्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका थीं। पिछले माह 6 नवम्बर को उनका निधन हुआ था। उनकी छोटी बेटी विजयता पंडित भी अभिनेत्री और पार्श्व गायिका हैं। विजयता पंडित का विवाह संगीतकार आदेश श्रीवास्तव से हुआ था। उनके बेटे जतिन और ललित संगीतकार हैं, जो संगीत की विरासत को समृद्ध करने का महत्ती कार्य कर रहे हैं।    
 
लेखक और इतिहासकार सिद्दीक़ अहमद मेव अपनी किताब ‘मेवाती संस्कृति’ में लिखते हैं- “पंडित जसराज मेवाती घराने के प्रसिद्ध गायक हैं। कहा जाता है कि इनके पूर्वज ज्योति ख़ां व मोती ख़ां इस्लाम धर्म के अनुयायी थे, जो बाद में ज्योतिराम और मोतीराम की जोड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुये। जो पूरण चंद के नाम से जाने गए, ये भी इसी घराने के गायक थे। पंडित जसराज मेवाती घराने के सबसे पसिद्ध गायक हुए हैं। उनका प्रसिद्ध गीत ‘अरे मेरो जोबन बीतो जाय ‘ ठेठ मेवाती भाषा में है, जो मेवाती घराने व गायकी का प्रमाण है। मेवाती घराने के उस्ताद रज्जब अली ख़ां, नृसिंहगढ़ (मध्य प्रदेश) के रहने वाले हैं। इनके पिता यासीन ख़ां मेवाती घराने के प्रसिद्ध गायक थे। आप रियासत देवास से जुड़े हुए थे। साथ ही महाराज पंवार ने आपको ‘राजकीय गायक’ नियुक्त कर रखा था। इसी घराने के एक और संगीत कलाकार भीखन ख़ां सारंगी नवाज़, शुजालपुर के निवासी थे। पंडित जसराज के पुत्र शाहरंग देव फ़िल्मी संगीतकार हैं तथा अपनी कला साधना से मेवाती घराने की प्रसिद्धि को चार चाँद लगा रहे हैं।“                    
 
पंडित जसराज शुरू में तबला वादक थे। मगर उन्होंने तबला वादन को छोड़कर गायन शुरू कर दिया, क्योंकि वे भी अपने पिता की तरह ही गायक बनना चाहते थे। उन्होंने मेवाती घराने के दिग्गज महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से और आगरा घराने के स्वामी वल्लभदास जी से संगीत विशारद की उपाधि प्राप्त की। उनके दादा गुरु, पंडित नत्थूलाल और पंडित चिमनलाल, उस्ताद घग्गे नज़ीर ख़ां के प्रिय शिष्य थे।
 
 
उन्होंने देश-विदेश में संगीत कार्यकम प्रस्तुत करके मेवाती घराने की शोभा बढ़ाई। उन्होंने अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी प्रस्तुति दी थी। इसके साथ ही वे सातों महाद्वीपों में कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले पहले भारतीय बन गए थे। उन्होंने प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक वी. शांताराम की बेटी मधुरा से विवाह किया था। उन्होंने शास्त्रीय गायन के साथ-साथ फ़िल्मों के लिए भी गीत गाये। उन्होंने पहली बार वी. शांताराम की साल 1966 में आई फ़िल्म 'लड़की सह्याद्रि' में भजन 'वंदना करो अर्चना करो' गाया, जो राग अहीर भैरव में था। इसे बहुत पसंद किया गया। उन्होंने दूसरा गीत साल 1975 में आई फ़िल्म 'बीरबल माय ब्रदर' में गाया था। इसमें उन्होंने भीमसेन जोशी के साथ राग मालकौन में जुगलबंदी की थी। इसे भी ख़ूब सराहा गया। उनका बेटा शारंगदेव फ़िल्मी संगीतकार है और बेटी दुर्गा जसराज टीवी कलाकार हैं। उनके शिष्यों में उनके बेटे शारंगदेव पंडित और बेटी दुर्गा जसराज के अलावा पंडित संजीव अभ्यंकर, तृप्ति मुखर्जी, कला रामनाथ, पंडित रतन मोहन शर्मा, शशांक सुब्रमण्यम, सौगात बनर्जी, अरविन्द थत्ते, सुमन घोष, अंकिता जोशी, गिरीश वजलवाड, लोकेश आनंद, सुरेश पतकी, विजय साठे और कविता कृष्णमूर्ति आदि शामिल हैं। 
 
पंडित जसराज को उनके उत्कृष्ट गायन के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्मविभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री, कालिदास सम्मान, संगीत नाटक अकादमी रत्न-सदस्यता, कांची कामकोटि का अस्थाना विद्वानम, महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार, शान्ति निकेतन की मानद उपाधि देसिकोत्तम, उस्ताद हाफ़िज़ अली ख़ां पुरस्कार, पंडित दीनानाथ मंगेशकर सम्मान, डागर घराना सम्मान, आदित्य विक्रम बिड़ला पुरस्कार, उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ां पुरस्कार, पंडित भीमसेन जोशी लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड और सुमित्रा चरतराम लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।
 

पंडित संजीव अभ्यंकर को साल 1999 में हिन्दी फ़िल्म गॉडमदर के गीत ‘सुनो रे भाइला’ में सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के लिए राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साल 2008 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें कुमार गंधर्व राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाज़ा था। इंडियन आइडल-10 के विजेता सलमान अली भी मेवात घराने से जुड़े हैं। उन्होंने फ़िल्म सैटेलाइट शंकर के गाने ‘जय हे’ से पार्श्व गायक के रूप में अपनी शुरुआत की थी। उन्होंने फ़िल्म दबंग-3 के लिए गाना गाया है। उन्होंने टेलीविज़न धारावाहिक चंद्रगुप्त मौर्य के लिए थीम गीत गाया है।
 
शास्त्रीय संगीत की ही मानिन्द यहां का लोक संगीत भी अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। गीत-संगीत यहां की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर के संवाहक हैं।