बीजिंग. हाल ही में अफगानिस्तान का मुद्दा हमेशा से भारतीय मीडिया की सुर्खियों में रहता है. कारण यह है कि अफगानिस्तान में से अमेरिकी सेना की वापसी होने के बाद इस देश की राजनीतिक स्थिति में मौलिक परिवर्तन आया है. तालिबान ने जल्दी से देश की सत्ता पर नियंत्रण हासिल कर लिया.
इसलिए भारतीय मीडिया स्वाभाविक रूप से अफगानिस्तान के आतंकवाद विरोधी युद्ध के परिणाम तथा अफगानिस्तान में भारत के हितों के बारे में बहुत चिंतित है. हालाँकि, जब हम अफगान मुद्दे की चर्चा करते हैं, तो हमें केवल काबुल जैसे बड़े शहरों को नहीं देखना चाहिये.
अफगानिस्तान के 39 मिलियन लोगों में से अधिकांश बड़े शहरों में नहीं, पर ग्रामीण इलाकों में रहते हैं जो कि दुनिया के बाकी हिस्सों से काफी हद तक अलग-थलग हैं. उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे बिना किसी डर के रहें.
और उन्हें भोजन, कपड़े और आश्रय प्राप्त करना चाहिये. खासकर गोलियों और हत्या के खतरे से बचना चाहिये। उनकी रुचि यह नहीं है कि पुरुष और महिला छात्र एक ही कक्षा में पढ़ सकते हैं कि नहीं, या महिलाएं पश्चिमी देशों की तरह खुले मंच पर नृत्य कर सकती हैं कि नहीं.
दुनिया में जीवन के कई अलग-अलग तरीके हैं, लेकिन अस्तित्व और सुरक्षा पहले आती है. 911 आतंकवादी हमलों में अमेरिका ने दो हजार से अधिक कीमती जीवन खो दिया. पर इसके बाद अमेरिका ने युद्ध बोला और आतंकवाद विरोधी के बहाने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया.
हालांकि, अमेरिकी सेना के 20 साल के कब्जे में 2 मिलियन से अधिक अफगानों की मौत हुई है, और इस देश को एक अत्यंत विनाशकारी आपदा के साथ छोड़ दिया है. काबुल सहित, अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों में युद्ध के संकेत दिखाई दे रहे हैं.
जीवन में कठिनाइयाँ, जैसे पानी व बिजली की कटौती और इंटरनेट न होना, ये सबसे महत्वपूर्ण नहीं है, लोगों के अस्तित्व को सुनिश्चित करना अधिक महत्वपूर्ण है. युद्ध को रोकना, स्थिति को स्थिर करने के आधार पर आर्थिक बहाली करना और अफगान लोगों को उनके जीवन के लिए आवश्यक हर चीज लाना वास्तव में अफगान लोगों के हितों और उम्मीदों के अनुरूप है.
वास्तव में, अफगान लोगों की उम्मीदें सरल हैं. युद्ध और विदेशी सैन्य हस्तक्षेप को रोकना ही है। इस आधार पर, आंतरिक सुलह हासिल करना और चरमपंथी नीतियों को बदलना, विशेष रूप से आतंकवादी संगठनों से पूर्ण अलगाव.
अमेरिका ने काबुल जैसे शहरी क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए अपनी सैन्य श्रेष्ठता पर भरोसा किया, लेकिन इसका प्रभाव अफगानिस्तान के ग्रामीण क्षेत्रों में कभी नहीं फैला. इस आधार पर कुछ शहरी क्षेत्रों में तथाकथित पश्चिमी लोकतंत्र की स्थापना वास्तव में केवल इच्छाधारी सोच है.
और इसके साथ-साथ अमेरिका, अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक आधार की स्थापना कर चीन और रूस को धमकी देने के अपने रणनीतिक लक्ष्य को भी छुपाता नहीं है. यह वास्तव में आतंकवाद विरोधी नहीं है, बल्कि अमेरिका के बड़े रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए है.
लेकिन 20 साल के समय और बड़ी राशि वाली अप्रभावी निवेश के बाद अमेरिका को यह सबक सीखाया गया है: बंजर भूमि, अपर्याप्त भोजन और अद्वितीय सांस्कृतिक परंपराओं वाले इस देश में, तथाकथित लोकतंत्र का पेड़ जीवित नहीं रह सकता है.
सैन्य हमलों और लोकतांत्रिक परिवर्तन की अमेरिकी रणनीति पूरी तरह से विफल रही है. अंत में अमेरिका ने पाया कि वह अफगानिस्तान में सब कुछ बदलने में असमर्थ है. पिछले 20 वर्षों में अमेरिका द्वारा विभिन्न सभ्यताओं के बीच संबंधों से निपटने में गलत ²ष्टिकोण के कारण अमेरिका और इस्लामी दुनिया के बीच संबंध और अधिक तनावपूर्ण बन गये हैं.
आतंकवाद के अलावा अमेरिका ने जब अफगानिस्तान में युद्ध शुरू किया, तो इसमें लोकतंत्र और मानवाधिकार का बैनर भी बुलंद किया, लेकिन लोकतंत्र और मानवाधिकार क्या है, इस पर अलग-अलग सभ्यताओं के अलग-अलग विचार हैं.
लेकिन मूल रूप से किसी भी विचारधारा का मूल्यांकन इस बात पर निर्भर है कि लोगों में खुशी की भावना है या नहीं. एक शासन का मूल्यांकन भी इस बात पर निर्भर है कि क्या यह लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व कर सकता है या नहीं.
मौजूदा स्थिति को देखते हुए तालिबान ही एकमात्र ताकत है जो अफगानिस्तान में स्थिरता हासिल कर सकता है. हालांकि, तालिबान को भी यह निश्चित करना चाहिए कि अफगानिस्तान आतंकवाद का केंद्र नहीं बन सकता है.
साथ ही, उसे समावेशी नीतियों को अपनाना चाहिए और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उपाय करना चाहिए. यह वास्तव में अफगानिस्तान के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सामान्य अपेक्षा है.
मेरा मानना है कि आज के तालिबान अतीत से अलग हैं. यदि तालिबान शासन विवेकपूर्ण घरेलू और विदेशी नीतियों को लागू करता है और आतंकवाद को पूरी तरह से काट देता है, तो अफगानिस्तान का घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वातावरण भी अधिक आराम से बन जाएगा, जिससे अफगान लोगों और आसपास के क्षेत्रों को भी लाभ होगा.
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग )