आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली
भारत के साथ फिर से व्यापार शुरू करने के मामले में पाकिस्तानी सरकार द्वारा यू-टर्न लिए जाने से जो पाकिस्तानी नागरिक निराश हुए हैं, वे लोकप्रिय नारे ‘सबसे आगे पाकिस्तान’ की जगह ‘सबसे पीछे पाकिस्तान’ का नारा देने लगे हैं.
इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री इमरान खान की आलोचना हो रही है और उनकी एक अन्य अपील ‘आपने घबराना नहीं है’ को ‘आपने घरबाना है’ का खम देकर उपहास उड़ाया जा रहा है. पहले के फैसले को पलटने के उनके ‘यू-टर्न’ ने हर किसी को भ्रमित किया है. उनके यू-टर्न को इस तरह याद किया जा रहा है कि पहले पाकिस्तान ने कहा कि वह सप्लाई में कमी के कारण कपास और चीनी दो वस्तुओं को भारत से आयात करना चाहता है. अब सरकार इस फैसले के उलटने को उचित ठहरा रही है.
व्यापार और उद्योग जगत के साथ ही, कूटनीतिक समुदाय ने भी इसका स्वागत किया था. उन्होंने पिछले महीने पाकिस्तान और भारत की सरकारों की घोषणाओं पर खुशी जताई थी कि दोनों पड़ोसियों ने लंबे समय तक चले शत्रुवत संबंधों को सामान्य करने करने की योजना बनाई है. दो साल के बाद दोनों देशों में व्यापार के फिर से शुरू होने की संभावना थी.
जबकि इमरान खान ने अपने यू-टर्न को सही ठहराते हुए दोहराया है कि संबंधों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता है, विशेषकर फिर से व्यापार शुरू करना, जब तक कि भारत 5 जून, 2019 की अपनी कार्रवाई को उलटता नहीं है. भारत ने 5 जून, 2019 को जम्मू और कश्मीर राज्य की ‘विशेष स्थिति’ को अपने देश में समाप्त कर दिया था और इसके बजाय तीन केंद्र शासित प्रदेश बना दिए थे. इमरान सरकार का यह यू-टर्न तब आया, जब अमेरिकी न्यूज एजेंसी एपी ने एक खबर चलाई कि कैसे ये घोषणाएं जम्मू और कश्मीर को विभाजित करने वाली नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर शांति स्थापित करेंगी.
खान और उनकी सरकार पर उनके ही देश में आलोचकों द्वारा उनके निर्णयों से भ्रामक संकेत देने का आरोप लगाया गया है, जो अधिकारियों और जनता दोनों को भ्रमित और अशांत कर रहे हैं. और वो भी ऐसे कठिन समय में, जब पाकिस्तान अपनी अर्थव्यवस्था के संकट जूझ रहा है और कोविड-19 महामारी से लड़ रहा है.
अपने संपादकीय (3 अप्रैल, 2021) में डॉन अखबार ने फैसले को उलटने वाला कहा, “विचित्र - बाएं हाथ को नहीं पता कि दायां हाथ क्या कर रहा है. न केवल यह सरकार के भीतर तालमेल की कमी को दर्शाता है, बल्कि यह एक गंभीर मामले में खराब निर्णय लेने की ओर भी इशारा करता है, जिसके लिए एक समझदार और स्तरीय दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है.”
मीडिया ने नोट किया है कि भारत से आयात करने की प्रारंभिक घोषणा आर्थिक समन्वय परिषद (ईसीसी) के निर्णय के बाद हुई थी, जिसमें सरकार के सभी आर्थिक हितधारक शामिल थे और जिसमें वाणिज्य मंत्रालय भी शामिल था, जो प्रधानमंत्री खान के अधीन है. खान ने घोषणा से पहले ईसीसी के फैसले की कार्यवाही को मंजूरी दी थी. फिर अगले ही दिन मंत्रिमंडल द्वारा उलटफेर कर दिया गया.
अटकलें लगाई जा रही हैं कि विपक्ष ने दबाव बढ़ाया, जिसमें विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी शामिल हैं. कुरैशी ने कहा था कि भारत के साथ कोई भी व्यापार दुनिया को यह आभास देगा कि दोनों देशों के संबंध सामान्य होने की दिशा में बढ़ रहे हैं और इससे कश्मीर मुद्दे को नुकसान होगा, जिसका पाकिस्तान समर्थन करता है.
फ्राइडे टाइम्स के अपने संपादकीय में नजम सेठी ने सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू करने की अपील करने का श्रेय दिया है. जनरल बाजवा ‘भारत के साथ तनाव कम करने और स्थिति सामान्य करने’ की कोशिश कर रहे हैं. कुछ इस तरह कि कश्मीर को कुछ समय के लिए भूल जाइए, क्योंकि उनका सारा बजट खर्च हो गया है और सीमाएं सिकुड़ गई हैं. एलओसी पर लंबा युद्ध बहुत महंगा था. विशेषज्ञों के अनुसार, हर दिन हजारों अमरीकी डालर की लागत वाले सैकड़ों गोले तोपों से बरसाए जा रहे थे. एक लंबी अवधि तक पूरी चौकसी के साथ सैनिकों पर होने वाला खर्च भी भूलने वाला नहीं है.
द न्यूज इंटरनेशनल (3 अप्रैल, 2021) ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) द्वारा भारतीय वस्तुओं के आयात के कदम पर सरकार की आलोचना की खबर लिखी है. पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने मीडिया को बताया, “प्रधानमंत्री को राष्ट्र को यह बताना चाहिए कि क्या उनकी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार मुख्य विवाद के निपटारे पर समझौता करते हुए अवैध रूप से भारत अधिकृत जम्मू-कश्मीर (इंडियर ऑक्यूपाइड जेएंडके) के संयोजन को स्वीकार कर लिया है.”
अब्बासी ने कहा कि 26 मार्च को वाणिज्य मंत्रालय के प्रभारी के रूप में प्रधानमंत्री ने ईसीसी को एक सारांश भेजा था, जिसमें 30 जून तक भारत से तीन लाख टन चीनी और असीमित मात्रा में कपास के आयात की मंजूरी मांगी गई थी. उन्होंने कहा, “यह पूरी तरह से भारत विशिष्ट सारांश था.”
घरेलू राजनीति ने अपना खेल खेला और आलोचकों ने भारत के साथ व्यापार करने की भावना के खिलाफ सरकार को चेतावनी देते हुए ‘कश्मीर कार्ड’ को आगे बढ़ा दिया. हालांकि, अब व्यापार और उद्योग विशेष रूप से चीनी और कपास आयातकों ने निराशा व्यक्त की है. उनका तर्क है कि दोनों वस्तुओं की सख्त जरूरत है और भारत में संभवतः कम दरों पर उपलब्ध हैं.
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत से ये दो वस्तुएं दुबई के रास्ते पाकिस्तान में आ सकती हैं, लेकिन महंगी दरों पर.
सुरक्षा विश्लेषक मुहम्मद अमीर राणा ने इसका इस तरह स्वागत किया है कि द्विपक्षीय व्यापार पर नए सिरे से बातचीत - बाद में पीछे हटने के बावजूद - पाकिस्तान के स्पष्ट रूप से बदलते और राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक कूटनीति के दृष्टिकोण को दर्शाता है.”
डॉन (4 अप्रैल, 2010) में अमीर राणा ने कहा कि पाकिस्तान के शक्तिशाली अभिजात वर्ग ने कभी “आर्थिक मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया. पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा, जिसमें भारत, अफगानिस्तान और ईरान के साथ अच्छे संबंधों की आवश्यकता हो सकती है.”
मीडिया में जो मुद्दा उठाया गया है, वह यह है कि अगर बाज (हॉक्स) भारत के साथ व्यापार को पुनर्जीवित करने के फैसले को पलट सकते हैं, तो प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के सुलहनीय बयानों का क्या होगा और उन्हें कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए.