तुर्कीः ईसाइयत की शुरुआत का केंद्र रहा सबसे पुराना चर्च भी भूकंप में ढहा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-02-2023
तुर्कीः ईसाइयत की शुरुआत का केंद्र रहा सबसे पुराना चर्च भी भूकंप में ढहा
तुर्कीः ईसाइयत की शुरुआत का केंद्र रहा सबसे पुराना चर्च भी भूकंप में ढहा

 

 

रावी द्विवेदी  

तुर्की-सीरिया में आए जलजले ने तमाम मस्जिदें जमींदोज की हैं, तो कई चर्च भी क्षतिग्रस्त हुए हैं. लेकिन धार्मिक महत्व रखने वाली ऐतिहासिक धरोहरों की बात करें, तो सबसे ज्यादा नुकसान शायद हताया प्रांत को ही पहुंचा है. प्राचीन अनातोलिया या अंताक्या के इसी इलाके में न केवल सबसे पुरानी मस्जिद हबीब-अल-निकार क्षतिग्रस्त हुई, बल्कि दुनिया का सबसे पुराना चर्च भी ढह गया है. चर्च इस लिहाज भी से काफी अहम माना जाता है कि यह अनातोलिया में ईसाइयत की शुरुआत का केंद्र रहा है.

हताया के आर्थोडॉक्स चर्च को अंताक्या चर्च के नाम से जाना जाता है. उसे पहुंची क्षति को ईसाई समुदाय एक बड़ी क्षति माना रहा है. यहां पर चर्च से जुड़े 30-35 लोगों की जान भी गई है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, चर्च बोर्ड का कहना है कि शहर इस चर्च को फिर से खड़ा करने की पूरी कोशिश करेगा, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगेगा.

बोर्ड को इसके लिए दुनियाभर के ईसाई समुदाय से मदद मिलने की भी उम्मीद है. इस चर्च से जुड़े लोगों का कहना है कि यह दुनिया के सबसे पुराने चर्चों में से एक है और अनातोलिया में ईसाइयत की शुरुआत यहीं से हुई थी. हालांकि, इस तरह के दावे को लेकर सवाल भी उठते रहे हैं.

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माना जाता है कि सेंट पीटर और सेंट पॉल ने इसी जगह को अनातोलिया में ईसाई धर्म की स्थापना का केंद्र बनाया था और सेंट पीटर ही यहां के पहले बिशप रहे थे. सेंट पीटर के अंताक्या छोड़ने के बाद इवोडियोस और इगनाटियस ने यहां पर धर्मोपदेश की भूमिका निभाई. उ

धर, सीरियाई शहर अलेप्पो के ग्रीक ऑर्थोडॉक्स आर्चडीओसीज चर्च ऑफ एंटिओक को भी भूकंप में नुकसान पहुंचा है. माना जाता है कि ये तुर्की और सीरिया के उन 19 चर्चों में शामिल हैं, जिन्हें शुरुआती दौर में ईसाइयत के प्रचार का केंद्र बनाया गया था.

अंताक्या ने पहले भी झेले बड़े भूकंप

तुर्की के अंताक्या क्षेत्र ने गत 6 फरवरी को 7.7 और 7.6 तीव्रता के भूकंप के दो बड़े झटके झेले. इससे पहले ही, यह शहर बड़े झटके झेल चुका है. माना जा रहा है कि इस बार भूकंप से होने वाली मौतें 1999 के भीषण भूकंप से ज्यादा हो सकती हैं. अंताक्या एक ऐसा इलाका है, जिसने अब तक के इतिहास में चार बड़े भूकंपों में से दो में बड़े पैमाने पर जानमाल की क्षति उठाई है. अनुमानित तौर पर माना जाता है कि इस क्षेत्र में 115 ईसा पूर्व में 7.5 तीव्रता के एक भूकंप में लाखों लोग मारे गए थे और 525 ईसवी में भी इस तरह लाखों लोगों ने जान गंवाई. वहीं, 1872 के भूकंप में एक-तिहाई अंताक्या ध्वस्त हो गया था.

हजरत मूसा का लगाया पेड़!

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दक्षिणी तुर्की के हताया प्रांत में एक ऐतिहासिक वर्जिन मेरी चर्च को इस भूकंप में नुकसान पहुचा है. यह चर्च अर्मेनियाई मूल के तुर्की नागरिकों के बसाए गांव वाकिफली गांव में हैं. यहां से आई तस्वीरों में पता चलता है कि अर्मेनियाई कैथोलिक चर्च तो क्षतिग्रस्त हुआ है लेकिन मदर मेरी की प्रतिमा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है.

चर्च के आसपास के कुछ घरों को भी भूकंप से नुकसान पहुंचा है, लेकिन यहां रहने वाले 130 लोगों में से किसी की जान नहीं गई. इस चर्च में लगे मोसेज ट्री को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. माना जाता है कि यह पेड़ हजरत मूसा ने लगाया था. इसे 1981 में एक स्मारक वृक्ष के तौर पर दर्ज किया गया था. इसके बारे में ऐसी धारणा भी प्रचलित है कि इस पौधों को आसमानी ताकतों की तरफ से ही सींचा जाता रहा है.

डेढ़ सौ साल पुराना सेंट निकोलस चर्च भी टूटा

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तुर्की के इस्कनदर्न जिले में 152 साल पुराना एक रोमन कैथोलिक चर्च भी भूकंप के कारण ध्वस्त हो गया है. यह चर्च सेंट निकोलस के नाम पर था जो पूरी दुनिया में सेंटा क्लॉज के नाम से जाने जाते हैं. वैसे तो सेंट निकोलस चर्च दुनिया में कई जगहों पर हैं, पर तुर्की से उनका खास नाता रहा है.

दरअसल, सेंट निकोलस का जन्म तीसरी सदी में दक्षिणपूर्व तुर्की के पटारा गांव में हुआ था और उनके माता-पिता की मौत तभी हो गई थी, जब वह काफी छोटे थे. उनका परिवार काफी धनवान था, लेकिन ईसा के उपदेशों से प्रभावित सेंट निकोलस ने अपना सब कुछ दान कर दिया और पूरा जीवन ही गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में लगा दिया. बच्चों के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें दुनियाभर में सेंटा क्लॉज के नाम से ख्यात कर दिया.

भूकंप पीड़ितों की मदद के लिए खोले दरवाजे

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भूकंप से जूझते तुर्की में जहां हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई है, वहीं बड़ी संख्या में लोग बेघर भी हुए हैं. इसे देखते हुए उन्हें जगहों के साथ-साथ इबादतगाहों में भी पनाह दी जा रही है. इसी क्रम में तुर्की के मरसिन और दियारबाकिर चर्च ने भी लोगों के अपने दरवाजे खोलकर एक मिसाल पेश की है.

मरसिन ग्रीक आर्थोडॉक्स चर्च के फादर कोस्कुन तेमुर ने कहा कि अभी सबसे बड़ी जरूरत यही है कि लोगों को रहने का ठिकाना मिल सके और उन्हें खाना-पानी उपलब्ध हो. वहीं, दियारबाकिर स्थित मारे पेटुन केलदानी कैथोलिक चर्च ने भी इसी तरह अपने दरवाजे भूकंप पीड़ितों के लिए खोल दिए. यह चर्च 17वीं सदी में बनाया गया था.