वॉशिंगटन/कांगो/रवांडा
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गुरुवार को डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और रवांडा के बीच हुए उस समझौते को “ऐतिहासिक उपलब्धि” बताया, जिसका उद्देश्य पूर्वी कांगो में जारी दशकों पुराने संघर्ष को समाप्त करना और क्षेत्र में मौजूद महत्वपूर्ण खनिज संसाधनों को अमेरिकी साझेदारी के माध्यम से विकसित करना है।
ट्रंप, जो स्वयं को वैश्विक मंच पर “सफल शांति दूत” के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं, इस मौके को एक और उदाहरण बताते नजर आए कि क्यों उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य माना जाना चाहिए।“आज अफ्रीका के लिए एक महान दिन है, दुनिया के लिए भी,” ट्रंप ने हस्ताक्षर समारोह से पहले कहा। “हम वहाँ सफल हो रहे हैं, जहाँ वर्षों से हर प्रयास विफल रहा।”
राष्ट्रपति ट्रंप ने कांगो के राष्ट्रपति फेलिक्स त्शिसेकेदी और रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे का व्हाइट हाउस में स्वागत किया। यह वही सप्ताह था जिसमें ट्रंप ने सोमालिया के बारे में विवादित बयान दिए थे और पूर्वी अफ्रीका से अप्रवासियों के प्रति नकारात्मक रुख दिखाया था।
व्हाइट हाउस ने इस समझौते को “ट्रंप-प्रेरित शांति प्रयास” बताते हुए इसे जून में हुए प्रारंभिक समझौते का अंतिम रूप बताया। इन प्रयासों में अफ्रीकन यूनियन और क़तर की भूमिका भी रही।
लेकिन ज़मीनी हालात बताते हैं कि यह शांति नाज़ुक है और संघर्ष पूरी तरह थमा नहीं है।
पूर्वी कांगो में जारी लड़ाई: ‘हम अभी भी युद्ध में हैं’
पूर्वी कांगो वर्षों से हिंसा की आग में जल रहा है। 100 से अधिक सशस्त्र समूह सक्रिय हैं, जिनमें सबसे शक्तिशाली है रवांडा समर्थित M23 विद्रोही गुट। इस वर्ष विद्रोहियों ने गोमा और बुकेवू जैसे रणनीतिक शहरों पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे मानवीय संकट गहराया—लाखों लोग विस्थापित हुए।
गुरुवार को हुए समझौते के बीच भी क्षेत्र में झड़पें जारी रहीं।“हम अभी भी युद्ध में हैं,” गोमा की 32 वर्षीय निवासी अमानी चिबालोंज़ा ने कहा। “जब तक मोर्चों पर लड़ाई जारी है, शांति कैसे हो सकती है?”
इसके बावजूद दोनों राष्ट्रपति उम्मीद भरे संदेश देते दिखे।कागामे ने कहा,“किसी ने राष्ट्रपति ट्रंप से यह जिम्मेदारी लेने को नहीं कहा, लेकिन उन्होंने मौका देखा और पहल की।”त्शिसेकेदी बोले,
“यह एक कठिन राह है, लेकिन आज एक नए मोड़ की शुरुआत है।”
दुर्लभ खनिजों की राजनीति: अमेरिका की नई रणनीति
इस समझौते का दूसरा बड़ा आयाम है—अफ्रीका के critical minerals तक अमेरिकी पहुँच।
ट्रंप ने कांगो और रवांडा के साथ अलग-अलग द्विपक्षीय समझौते भी घोषित किए, जिनके तहत अमेरिकी कंपनियों को दुर्लभ खनिजों (rare earths) के दोहन के अवसर मिलेंगे।
ट्रंप ने कहा,“हम अपनी सबसे बड़ी और बेहतरीन अमेरिकी कंपनियाँ इन देशों में भेजेंगे। सभी को बहुत लाभ होगा।”
दुनिया के 70% rare earths चीन में खनन होते हैं और 90% प्रोसेसिंग पर चीन का नियंत्रण है। ऐसे में अमेरिका लंबे समय से इस निर्भरता को तोड़ने की कोशिश कर रहा है।
समारोह वॉशिंगटन के “यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस” में हुआ, जिसे स्टेट डिपार्टमेंट ने अब “डोनाल्ड जे. ट्रंप इंस्टीट्यूट ऑफ पीस” के रूप में पुनःनामित किया है।
जमीन पर हकीकत: हिंसा, भूख और ठप प्रशासन
विद्रोहियों के कब्ज़े वाले गोमा में हवाईअड्डा बंद है, बैंकिंग सेवाएँ ठप हैं और अपराध बढ़ रहा है।
US फंडिंग कटने से मानवीय संकट और गहरा गया है।
बुकेवू के 27 वर्षीय छात्र मोइज़ बाउमा ने कहा,
“हम देख रहे हैं कि आगे क्या होगा, लेकिन दोनों पक्ष अभी भी लड़ रहे हैं।”
कांगो और रवांडा का मानना है कि अमेरिकी हस्तक्षेप से शांति की संभावनाएँ बढ़ी हैं—पर यह शुरुआत भर है।
संघर्ष की जड़ें: 1994 के रवांडा नरसंहार की विरासत
यह संकट 1994 के नरसंहार के बाद शुरू हुआ, जब करीब 20 लाख हुतू नागरिक प्रतिशोध के डर से कांगो में शरण लेने पहुँचे।
रवांडा का दावा है कि उन शरणार्थियों में नरसंहार में शामिल तत्व भी थे और कांगो की सेना उन्हें संरक्षण दे रही थी।
कांगो की सरकार कहती है कि जब तक रवांडा अपने सैनिकों और M23 को समर्थन देना बंद नहीं करेगा, स्थायी शांति संभव नहीं।
UN विशेषज्ञों के अनुसार 3,000–4,000 रवांडन सैनिक वर्तमान में M23 के साथ कांगो में सक्रिय हैं—हालाँकि रवांडा इससे इनकार करता है।
क्या यह शांति टिकेगी?
कांगो–रवांडा समझौता कूटनीतिक उपलब्धि तो है, लेकिन संघर्ष की आग अभी भी ठंडी नहीं हुई।
विशेषज्ञ मानते हैं कि—
मोर्चों पर लड़ाई
अविश्वास
और दुश्मनी की ऐतिहासिक जड़ें
इस समझौते को जल्द स्थायी शांति में बदलने नहीं देंगी।
फिर भी, क्षेत्र में अमेरिकी दखल और आर्थिक हितों का बढ़ता आयाम इस संघर्ष को नए भू-राजनीतिक दौर में प्रवेश करा रहा है।