नई दिल्ली
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने अफ्रीका महाद्वीप के तीन महत्वपूर्ण विश्व धरोहर स्थलों — मेडागास्कर, मिस्र और लीबिया में स्थित — को "खतरे में पड़ी विश्व धरोहरों" की सूची से हटा दिया है। यह फैसला इन स्थलों की सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय अखंडता को बहाल करने के लिए किए गए सफल प्रयासों को मान्यता देने के रूप में लिया गया।
यह निर्णय 9 जुलाई को पेरिस में आयोजित हो रहे विश्व धरोहर समिति (WHC) के 47वें सत्र के दौरान लिया गया। यूनेस्को ने बुधवार को जारी एक बयान में इसकी जानकारी दी।
बयान के अनुसार, इन स्थलों को हटाना उन देशों के प्रयासों और यूनेस्को के सहयोग से किए गए कार्यों का परिणाम है, जिनसे इन स्थलों पर मंडरा रहे खतरों में उल्लेखनीय कमी आई है।
जिन स्थलों को खतरे की सूची से हटाया गया है, वे हैं:
अत्सिनानाना के वर्षावन (मेडागास्कर)
अबू मेना (मिस्र)
घादामेस का प्राचीन नगर (लीबिया)
यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अजोले ने कहा, "जब किसी स्थल को 'खतरे में पड़ी धरोहरों' की सूची से हटाया जाता है, तो यह न केवल संबंधित देशों और समुदायों के लिए, बल्कि समूची मानवता की साझी विरासत के लिए एक बड़ी जीत होती है।"
उन्होंने आगे कहा कि, "अफ्रीका के लिए हम विशेष प्रयास कर रहे हैं — विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करने, नए स्थलों को सूचीबद्ध कराने और मौजूदा धरोहरों को सुरक्षित करने के लिए रणनीति विकसित करने में। आज ये प्रयास सफल हो रहे हैं।"
बयान में बताया गया कि 2021 से अब तक डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, युगांडा और सेनेगल के तीन अन्य स्थलों को भी खतरे की सूची से हटाया जा चुका है।
अत्सिनानाना के वर्षावन (मेडागास्कर)
इस स्थल को 2007 में जैव विविधता के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया था।
अवैध कटाई, दुर्लभ लकड़ियों की तस्करी और वनों की कटाई जैसी समस्याओं के चलते 2010 में इसे खतरे में डाल दिया गया था, जिससे लीमर जैसी मुख्य प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया था।
अबू मेना (मिस्र)
ईसाई धर्म में एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में 1979 में सूचीबद्ध यह स्थल ईसाई भिक्षु जीवन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
आसपास के खेतों में सिंचाई से जलस्तर बढ़ने और संरचनाओं के गिरने के कारण इसे 2001 में खतरे की सूची में डाला गया।
घादामेस का प्राचीन नगर (लीबिया)
1986 में इस नगर को अफ्रीका और भूमध्यसागर के बीच सांस्कृतिक संबंधों के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
लेकिन 2016 में संघर्ष, जंगलों में आग और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के चलते इसे खतरे में माना गया।
यूनेस्को के अनुसार, खतरे में पड़ी धरोहरों की सूची का उद्देश्य दुनिया को आगाह करना और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संरक्षण के लिए एकजुट करना है। साथ ही, इससे इन स्थलों को तकनीकी और वित्तीय सहायता पाने का अधिकार भी मिलता है।