इस्लामाबाद
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में वर्ष 2025 को शिक्षा क्षेत्र के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण वर्षों में से एक बताया जा रहा है। शिक्षकों के संगठनों और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि पूरे साल विरोध प्रदर्शन, निजीकरण की नीतियों और सरकारी अनिश्चितता के चलते सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था लगभग ठप रही। यह जानकारी पाकिस्तानी अख़बार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में सामने आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, रावलपिंडी सहित पूरे प्रांत में शिक्षकों ने सरकारी नीतियों के खिलाफ बार-बार प्रदर्शन किए। वर्ष 2025 में करीब 5,800 स्कूलों और 71 कॉलेजों को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया। साथ ही, सरकार ने चरणबद्ध तरीके से कुल 10,500 प्राथमिक स्कूलों के आउटसोर्सिंग की योजना को आगे बढ़ाया।
शिक्षक संगठनों का आरोप है कि निजीकरण और बढ़ती महंगाई के कारण स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। अनुमान है कि आउटसोर्सिंग के बाद करीब 7 लाख बच्चे पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हुए, जबकि पंजाब में सड़क पर रहने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर लगभग 3 करोड़ तक पहुंच गई है। ग्रामीण इलाकों में संस्थानों की बिक्री से हालात और बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है। कई सरकारी स्कूलों में नामांकन घटकर 100 से भी नीचे आ गया है।
इस वर्ष लगभग 14,000 शिक्षकों और सहायक शिक्षा अधिकारियों का स्थायीकरण नहीं हो सका, जबकि 46,000 से अधिक अतिरिक्त शिक्षकों का दूरदराज इलाकों में तबादला कर दिया गया। इसके अलावा, 25,000 वरिष्ठ शिक्षकों की पदोन्नति भी रुकी रही। शिक्षक संगठनों ने 2026 से लागू होने वाले अनिवार्य टीचर लाइसेंसिंग टेस्ट को भी नौकरी सुरक्षा के लिए खतरा बताया।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब में ग्रेड 14 से 20 तक के करीब 1.20 लाख पद खाली हैं। निजीकरण के कारण शैक्षणिक संस्थानों की संख्या घटकर 52,000 से 38,000 रह गई है। करीब 1,500 अपग्रेडेड आफ्टरनून स्कूल वित्तीय संकट के चलते बंद कर दिए गए।
शिक्षक नेताओं ने 2025 को केवल “नीति घोषणाओं का वर्ष” बताया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, निजीकरण की समाप्ति और नई भर्तियों की मांग की। वहीं, पंजाब के शिक्षा मंत्री राणा सिकंदर ने सरकार की नीतियों का बचाव करते हुए कहा कि बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम बेहतर रहे हैं और आउटसोर्सिंग से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।






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