मलिक असगर हाशमी
पाकिस्तान में अनुसूचित जाति के लोग निशाने पर हैं. उनके सामनेऐसी परिस्थिति पैदा की जा रही है कि परेशान और निराश होकर वे खुद ही अपने आपको मारने पर आमादा हैं. हिंदुओं में बहुसंख्य होने के बावजूद उनके हौसले को तोड़ने के लिए उनकी जनसंख्या कम दिखाने का खेल चल रहा है. उनकी आबादी वाले इलाकों में उन्हें बुनियादी सुविधाओं से दूर रखा जा रहा है.
2017 की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान में अनुसूचित जातियों की संख्या 849,614 थी, लेकिन इस वर्ग का दावा है कि उनकी गिनती कम कर दिखाई जाती है, ताकि उन्हें हतोत्साहित किया जा सके.
अनुसूचित जातियों में बुनियादी तौर पर निचली जातियों के हिंदू या दलित आते हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधाओं के साथ रोजगार के अवसरों और विकास योजनाओं से परे रखा जा रहा है. अन्य क्षेत्रों में भी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.
एक रिपोर्ट के अनुसार,1956 में, पाकिस्तान सरकार ने देश में लगभग 32 जातियों और जनजातियों को अनुसूचित जाति घोषित किया था. इनमें कोहली, मेघवार, भील, बागड़ी, बाल्मीकी, जोगी, ओड आदि शामिल किए गए थे.
इंडियन दलित सोसाइटी के एक अध्ययन में दर्ज है कि पाकिस्तान में 2008 तक अनुसूचित जाति की आबादी 79 प्रतिशत के भारी बहुमत के बावजूद उन्हें भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है.
अध्ययन के अनुसार, अनुसूचित जाति के हिंदुओं के साथ सबसे बुरा बर्ताव मुसलमान, उच्च जाति के हिंदू, सामंती जमींदार, कुलीन वर्ग, रेस्तरां-दुकान के मालिक करते हैं. दलितों को अपने सवर्ण समुदाय के गुस्से का भी सामना करना पड़ता है.
पाकिस्तान के सिंध के चार जिलों से एकत्र की गई जानकारी से पता चला है कि उनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा नाई की सेवाओं से वंचित है. 90 प्रतिशत को होटल और रेस्तरां में अलग-अलग क्रॉकरी में खाना और चाय परोसा जाता है.
उपयोग के बाद बर्तन भी उन्हें खुद धोना पड़ता है. लगभग 70 प्रतिशत दलित हिंदुओं ने कहा कि मुस्लिम पड़ोसी या उनकी उच्च जाति के लोग उन्हें अपने सामाजिक समारोहों जैसे शादियों में आमंत्रित नहीं करते. यदि उन्हें आमंत्रित किया भी जाता है तो उनके लिए अलग से भोजन की व्यवस्था की जाती है.
स्कूलों में अनुसूचित जाति के छात्रों को पिछली सीटों पर बैठने को बाध्य किया जाता है. गैर-अनुसूचित जाति छात्रों के लिए आगे की सीटें छोड़ी जाती हैं. यह प्रथा लंबे समय से चली आ रही है. अब कोई भी अनुसूचित जाति का छात्र स्कूल के कक्षा की पहली पंक्ति में बैठने का साहस नहीं करता. यदि भूलवश बैठ जाए तो उससे स्कूल की सफाई कराई जाती है.
भील जाति के लोगों की उच्च वर्ग के ब्राह्मणों से भी दुर्व्यवहार की शिकायत है. वह कहते हैं कि हिंदुओं की बदहाली के बावजूद थोड़ी-बहुत यदि प्रभाव है तो उसका सारा लाभ और आनंद अगड़ी जाति के लोग उठा लेते हैं.
राजनीतिक स्तर पर भी पूछ अगड़ी जाति के हिंदुओं की है, ताकि अनुसूचित जाति के लोग संख्या में अधिक होने के बावजूद उनके खिलाफ आवाज बुलंद नहीं कर सकें.पाकिस्तान के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में, कुल 12 सदस्य हैं, जिनमें मौलवी भी शामिल है.
इनके अलावा दो सिख भी हैं, लेकिन आबादी का एक बड़ा हिस्सा होने के बावजूद अनुसूचित जाति से किसी को इसमें प्रतिनिधत्व नहीं दिया जाता है. यहां तक कि सभापति भी उच्च वर्ग का होता.
पाकिस्तान के दलितों का कहना है कि उनकी किसी से निजी दुश्मनी नहीं है. बावजूद इसके उन्हें किसी भी प्लेटफॉर्म पर जगह नहीं दी जाती. वे दलित हिंदू मंदिर प्रशासन में भी शामिल नहीं हैं. पाकिस्तान हिंदू मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और महासचिव दोनों अगड़ी जाति से हैं.
उन्हें कुर्सी पर बहुसंख्यक मुसलमान बैठाते हैं. इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) में हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व केवल ब्राह्मणों को दिया गया है.जो हिंदू राजनीतिक दलों का हिस्सा हैं, वे केवल उच्च वर्ग से हैं.
अनुसूचित जाति के नहीं हैं. पीटीआई हो, पीएमएल-एन या पीपीपी सभी अपने संगठन में अगड़ी जाति विशेषकर ब्राह्मणों को तरजीह देते हैं. इस तरह दलितों का सियासी वजूद उभरने नहीं दिया जाता.
यदि राजनीतिक व्यवस्था में अनुसूचित जातियों को उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए, तो वे अपने मुद्दों को बेहतर तरीके से उठा और निपटा सकते हैं. दलितों की शिकायत है कि उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाने से रोका जाता है.
उन्हें मंदिरों में भी नहीं जाने दिया जाता. लोग टंडो अल्लाह यार में रामापीर मंदिर जाने के लिए मीलों पैदल यात्रा करते हैं. परंपरा उनके लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन प्रसाद (धार्मिक प्रसाद के रूप में भोजन) के लिए अनुसूचित जातियों को केवल एक कागज में चावल दिया जाता है, जबकि उच्च वर्ग के लिए, वीआईपी सेवा की व्यवस्था है.
उन्हें टेबल पर भोजन परोसा जाता है. वहां दलित वर्ग का कोई व्यक्ति नहीं जा सकता. एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भेदभाव के रवैए ने दलितों में आक्रोश और निराशा पैदा कर दी है, जिससे विवश होकर खुदकुशी कर रहे हैं.
दूसरी तरफ पाकिस्तान के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) के अध्यक्ष चेला राम उच्च वर्ग द्वारा अनुसूचित जाति के हिंदुओं के साथ किसी भी तरह के अन्याय से इनकार करते हैं. उनकी दलीत है कि भावनात्मक, विशेष रूप से युवा मंे प्यार में विफलता, जबरन विवाह या घरेलू हिंसा आत्महत्या के कारण हैं. इसके अलावा सिंध के दलितों के आत्महत्या करने की एक मुख्य वजह निर्धनता भी है.
उन्होंने कहा,मैं भेदभाव के लिए ब्राह्मणों को दोष देने के प्रति सहमत नहीं हूं. वह कहते हैं कि उनका प्रतिनिधित्व नहीं है, लेकिन कृष्णा कोहली, काठू मल जीवन, वीरजी कोहली, ज्ञान चंद मेघवार आदि का क्या ?
एनसीएम 27 साल से चर्चा में है, लेकिन तब किसी ने प्रतिनिधित्व की बात नहीं की. जब यह अब कार्यात्मक हो गया है तो हर कोई प्रतिनिधित्व चाहता है. साथ ही, हिंदुओं के कई संप्रदाय और समुदाय हैं - हम उन सभी को प्रतिनिधित्व नहीं दे सकते. अगर हम मेघवार को किसी मंच पर लाते हैं, तो कोहली कहेंगे कि उनका प्रतिनिधित्व नहीं है. यह कभी खत्म नहीं होने वाली लड़ाई है.
चेलाराम का कहना है कि एनसीएम अधिनियम को पारित करने की आवश्यकता है ताकि यह बिना दांत के एक व्यावहारिक रूप से कार्यात्मक आयोग न बन जाए. अल्पसंख्यक आयोग में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के संबंध में, उनकी दलील है कि उन्हें शामिल करना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे धार्मिक बहुमत में हैं और अल्पसंख्यकों की समस्याओं को सुलझाने में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सकते हैं.
जब उनसे पूछा गया कि सिंध में गरीबी को दूर करने के लिए वह क्या कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि वह सिंध के मुख्यमंत्री और अन्य अधिकारियों के संपर्क में हैं. सिंध सरकार अच्छी तरह से सुनती है और हमेशा उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया देती है. हालांकि, वह भविष्य के लिए कोई ठोस योजना नहीं बता पाए.
इसके बावजूद वह इस बात से इनकार नहीं करते कि इन चीजों को ठीक होने में लंबा समय लगेगा. सिंध में कोई ठोस शिक्षा व्यवस्था नहीं है. व्यवस्थित जलापूर्ति प्रणाली का भी अभाव है. पाकिस्तान की बदहाल मुद्रास्फीति के चलते गरीबी का ग्राफ तीव्रता से ऊपर जा रहा है.
वह कहते हैं, बावजूद इसके हमें इस तथ्य की सराहना करनी चाहिए कि एक एनसीएम काम कर रहा है और हमें इससे संबंधित अधिनियम को पारित करने पर ध्यान देना चाहिए ताकि इसे और अधिक व्यावहारिक शक्ति प्राप्त हो.
आईडीएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित जातियों को जिन अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उनमें से एक भूमिहीनता और फसलों में उनका उचित हिस्सा नहीं मिलना भी है.
अनुसूचित जाति के प्रतिनिधियों का तर्क है कि पुलिस द्वारा जारी किए गए आंकड़े वास्तविक संख्या का केवल एक हिस्सा हैं.नगरपारकर, अमरकोट सहित कुछ जिलों में विशिष्ट रूप से आत्महत्या की उच्च दर है. विशेष रूप से थारपारकर जहां गरीबी का स्तर सबसे अधिक है.
थारपारकर जिले में लगभग आधी आबादी - 43 प्रतिशत हिंदू है. यह वह जगह भी है जहां आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है.एक स्थानीय संगठन, एसोसिएशन फॉर वॉटर, एप्लाइड एजुकेशन एंड रिन्यूएबल एनर्जी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2014 और 2020 के बीच थारपारकर के 443 लोगों ने आत्महत्या की है.
इनमें से अकेले 2020 में 79 आत्महत्या दर्ज की गई, जो जिलों की सूची में सबसे ऊपर हैं.लेकिन ये संख्या आत्महत्या के प्रयास की संख्या को नहीं दर्शाती,क्योंकि आत्महत्या को अपराध माना जाता है. यह आवश्यक रूप से पूर्ण आत्महत्याओं की सही संख्या भी नहीं है.
( लेख आवाज द वॉयस डॉट इन हिंदी के संपादक हैं.)