पाकिस्तान अराजकता की बाँहों में

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 04-11-2022
पाकिस्तान अराजकता की बाँहों में
पाकिस्तान अराजकता की बाँहों में

 

parmodप्रमोद जोशी

इमरान खान पर हमला पिछले कुछ साल से पैदा हो गई विडंबनाओं और विसंगतियों को और बढ़ाएगा. समय और परिस्थितियों को देखते हुए पाकिस्तान के अंतर्विरोध अब और ज्यादा खुलकर सामने आएंगे. खासतौर से सेना की भूमिका अब काफी महत्वपूर्ण हो गई है. इस महीने देश के नए सेनाध्यक्ष के नाम की घोषणा होने वाली है.

अप्रेल के महीने में गद्दी छिन जाने के बाद से इमरान जिस तरीके से सरकार, सेना और अमेरिका पर हमले बोल रहे हैं, उससे हो सकता है कि वे एकबारगी कुर्सी वापस पाने में सफल हो जाएं, पर हालात और बिगड़ेंगे. फिलहाल देखना होगा कि इस हमले का राजनीतिक असर क्या होता है.

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आईएसआई पर आरोप

इमरान का आरोप है कि लांग मार्च के दौरान वज़ीराबाद में हुई गोलीबारी के पीछे प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ, गृहमंत्री राना सनाउल्ला और आईएसआई के डीजी मेजर जनरल फ़ैसल जिम्मेदार हैं. उन्होंने इस आशय का बयान कल रात ही जारी करा दिया था. यह भी साफ है कि यह बयान जारी करने का निर्देश उन्होंने ही दिया है.

इन सवालों के कि यह ‘साफ हत्या की कोशिश’ है. इमरान की पिंडलियों में गोलियाँ लगी हैं. एक और नेता असद उमर ने कहा कि इमरान खान ने मांग की है कि इन लोगों को उनके पदों से हटाया जाए, नहीं तो देशभर में विरोध प्रदर्शन होंगे. माँग पूरी नहीं हुई तो जिस दिन इमरान खान बाहर आकर कहेंगे तो कार्यकर्ता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर देंगे.

ज़ाहिर है कि पीटीआई के आंदोलन को अब एक कारण भी मिल गया है. बेशक पाकिस्तानी सेना हत्याएं कराती रही है, पर क्या वह इतने कच्चे तरीके से काम करती है? हमला पंजाब में हुआ है, जिस सूबे में पीटीआई की सरकार है.

उन्होंने अपनी ही सरकार की पुलिस-व्यवस्था पर सवाल नहीं उठाया है.  हत्या के आरोप में जो व्यक्ति पकड़ा गया है, वह इमरान पर अपना गुस्सा निकाल रहा है. क्या वह हत्या करना चाहता था? उसने पैर पर गोलियाँ मारी हैं. इस कांड में एक व्यक्ति की मौत हुई है, पर किसी बड़े नेता के घायल होने की खबर नहीं है.

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राजनीतिक लाभ

यह साफ है कि अब इमरान खान इस हमले को राजनीतिक रूप से भुनाएंगे. वे पहले से कहते चले आ रहे हैं कि मेरी हत्या का प्रयास होगा. बावजूद इसके वे इतना खुलकर लांग मार्च निकाल रहे थे, बगैर विशेष-सुरक्षा के.

देश में अगले साल आम चुनाव होने वाले हैं. इमरान चाहते हैं कि फौरन चुनाव हों, पर सरकार का कहना है कि समय से होंगे. पर अब एक नया सवाल है कि क्या चुनाव होंगे? चुनाव हुए तो क्या इमरान इसमें हिस्सा ले सकेंगे? हाल में देश के चुनाव आयोग ने उन्हें तोशाखाना मामले में दोषी पाकर चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया है. अब यह मामला अदालत में है.

इमरान खान ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया. इमरान पर आरोप है कि विदेशी अतिथियों से मिले तोहफों का उन्होंने सही तरीके से विवरण नहीं दिया. इन तोहफों में रोलेक्स घड़ियां, अंगूठी और एक जोड़ा कफ लिंक्स शामिल हैं. इमरान इन सब बातों के प्रति विरोध जताने के लिए अपने हजारों समर्थकों के पास शुक्रवार 28मार्च को लांग मार्च (हक़ीक़ी आज़ादी मार्च) पर निकले थे.

इस मार्च को आज इस्लामाबाद पहुँचना था. अभी यह स्पष्ट नहीं है कि मार्च जारी रहेगा या नहीं. उनकी केवल एक मांग है-देश में तुरंत चुनाव कराए जाएं. बहरहाल जनता के बड़े तबके के बीच इमरान अपनी ज़मीन को मज़बूत बनाते जा रहे हैं. सवाल है कि क्या वे अपनी मुहिम में कामयाब होंगे? और कामयाब हुए भी तो क्या वे देश को चला पाएंगे?

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राजनीतिक विसंगतियाँ

विसंगतियों की शुरुआत तो 15अगस्त 1947से ही हो गई थी, पर ताजा संदर्भ 2008में जनरल परवेज मुशर्रफ के हटने और उसके दस साल बाद 2018में सेना की ही सहायता से इमरान खान की पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी (पीटीआई) के सत्तारूढ़ होने से जुड़े हैं.

देश में लोकतंत्र की परिभाषा उसकी संस्थाओं और खासतौर से सेना की भूमिका को लेकर संशय बढ़ रहे हैं. इस हमले का रहस्य पता नहीं खुलेगा या नहीं, पर इससे इमरान खान के प्रति जनता के एक तबके की हमदर्दी बढ़ेगी.

यह हमला दिसंबर 2007में बेनज़ीर भुट्टो की हत्या की याद भी दिला रहा है. उस हत्या के कुछ महीने बाद हुए चुनाव में पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी को सफलता मिली थी. अब पहला सवाल है कि क्या यह हमला वैसा ही है. या इसके पीछे कुछ और है.

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गृहयुद्ध की स्थिति

इस साल यह दूसरा मौका है जब इमरान ख़ान अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतरे हैं. इससे पहले मई में भी उन्होंने ऐसी कोशिश की थी, लेकिन तब सरकार ने प्रदर्शन कर रहे लोगों के सामने सुरक्षा बलों को तैनात कर उसे नाकाम कर दिया था. बाद में इमरान ख़ान ने कहा था कि गृहयुद्ध की स्थिति से बचने के लिए वे मार्च वापस ले रहे हैं. पर अब लगता है कि वे गृहयुद्ध की स्थिति लाना चाहते हैं.

सेना बार-बार कह रही है कि हमारी राजनीतिक भूमिका नहीं होगी, पर इस कांड के बाद उसका दृष्टिकोण क्या होगा इसे समझना होगा. सेना के भीतर भी इमरान के समर्थन और विरोध में दो प्रकार की धारणाएं हैं. क्या वे मुखर होंगी ?

हाल में एक पाकिस्तानी पत्रकार की केन्या में हुई मृत्यु को लेकर सैनिक प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ्तिकार ने आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अहमद अंजुम की ओर से प्रेस कांफ्रेंस की. इसमें उन्होंने लोगों से सेना पर विश्वास बनाए रखने की अपील करते हुए कहा कि पाकिस्तानी सैनिक ‘गलतियां’ कर सकते हैं, लेकिन वे ‘देशद्रोही या साजिशकार’ नहीं हो सकते.

यह पहला मौका था, जब आईएसआई के डीजी ने सार्वजनिक रूप से कोई बात कही थी. दो सच और सामने हैं. पहला यह कि 2018में इमरान खान सेना की सहायता से प्रधानमंत्री बने थे. और दूसरा यह कि इस साल अप्रेल में उन्हें हटाने के पीछे केवल राजनीतिक दलों की भूमिका ही नहीं थी, बल्कि सेना का प्रच्छन्न समर्थन भी था.

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समस्याओं की बाढ़

इमरान देश के पहले ऐसे पूर्व-प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें संसद में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के सहारे हटाया गया. महत्वपूर्ण बात यह है कि इमरान के कार्यकाल में देश की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ. एक तरफ आर्थिक संकट खड़ा हुआ, वहीं राजनीति में जबर्दस्त कड़वाहट पैदा हो गई. सबसे बड़ा उलट-फेर विदेश-नीति के मोर्चे पर हुआ. लंबे अरसे तक पिट्ठू के रूप में प्रसिद्ध पाकिस्तान की सरकार ने अमेरिका पर सरकार गिराने की कोशिशों का आरोप लगाया.

इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम को जेल हुई. नवाज शरीफ इस बीच किसी तरह से देश से निकल कर लंदन पहुँचने में कामयाब हो गए. इमरान खान ने एक तरफ अपने विरोधी राजनीतिक दलों को एकताबद्ध होने का मौका दिया, वहीं सेना से (जिसे वहाँ एस्टेब्लिशमेंट कहा जाता है) पंगा मोल ले लिया.

विरोधी दल पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नून) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और दूसरे दलों ने एकजुट होकर अप्रेल के महीने में इमरान को अपदस्थ करने में सफलता जरूर हासिल कर ली, पर शहबाज़ शरीफ के नेतृत्व में बनी सरकार लड़खड़ा रही है. इन पार्टियों के नेताओं पर बेईमानी के आरोप हैं. यों भी पाकिस्तान में लोकतंत्र और राजनीति का मज़ाक बनाया जाता है.

फिलहाल पाकिस्तान की जनता और उसके समझदार नेताओं के सामने गंभीर सवाल खड़े हैं. इमरान खान तमाम तरह के जोखिम मोल लेकर कुर्सी की लड़ाई लड़ रहे हैं. वे देख नहीं पा रहे हैं कि इससे अराजकता फैल रही है. ऐसे में सत्ता हासिल कर भी लेंगे, तो उन्हें मिलेगा कुछ नहीं. वे बुरी तरह विफल होंगे. 

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )

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