कुर्रम. पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के उत्तर-पश्चिमी जिले कुर्रम में सांप्रदायिक हिंसा में 35 लोगों की मौत के बाद, पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) ने हाल ही में हुए घातक आदिवासी संघर्ष पर चिंता व्यक्त की और बातचीत के माध्यम से संघर्ष को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का आह्वान किया.
अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक मृतकों की संख्या इससे ज्यादा हो सकती है. कई वायरल वीडियो में बदमाश कटे हुए सिरों के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं.
मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध गैर-सरकारी संगठन ने एक्स पर एक पोस्ट साझा करते हुए कहा, ‘‘एचआरसीपी, कुर्रम के पाराचिनार में हुई महत्वपूर्ण जनहानि पर बहुत चिंतित है, जहां प्रतिद्वंद्वी जनजातियां कई दिनों से हिंसक भूमि विवाद में उलझी हुई हैं, जिससे सांप्रदायिक संघर्ष को बढ़ावा मिल रहा है. हिंसा ने आम नागरिकों पर भारी असर डाला है, जिनकी आवाजाही की स्वतंत्रता और भोजन और चिकित्सा आपूर्ति तक पहुँच कम हो गई है.’’
पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट डॉन के अनुसार, भूमि विवाद के कारण कुर्रम जिले में कुछ दिन पहले शुरू हुए आदिवासी संघर्ष में एक-दूसरे के ठिकानों को निशाना बनाने के लिए भारी हथियारों का इस्तेमाल किया गया. पांच दिनों तक चले संघर्ष में अब तक कम से कम 35 लोगों की जान जा चुकी है. हिंसा पीवर, टांगी, बालिशखेल, खार कलाय, मकबल, कुंज अलीजई, पारा चमकनी और करमन जैसे अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई.
एचआरसीपी ने कुर्रम जिले में बढ़ते संघर्ष के जवाब में खैबर पख्तूनख्वा (केपी) सरकार से अपील की. इसमें कहा गया, ‘‘एचआरसीपी केपी सरकार से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करता है कि युद्ध विराम की मध्यस्थता की जा रही है. सभी विवाद, चाहे वे भूमि से संबंधित हों या सांप्रदायिक संघर्ष से पैदा हुए हों, सभी हितधारकों के प्रतिनिधित्व के साथ केपी सरकार द्वारा बुलाई गई बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीके से हल किए जाने चाहिए.’’
निवासियों ने बताया कि पाराचिनार और सद्दा कस्बों की ओर भी मिसाइलें और रॉकेट दागे गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थान और बाजार बंद रहे और प्रमुख सड़कों पर यातायात रोक दिया गया.
डॉन की रिपोर्ट के अनुसार, हंगू और ओरकजई जिलों की एक जनजातीय परिषद द्वारा बोशेहरा और मालीखेल जनजातियों के बीच युद्ध विराम कराने के प्रयास जारी हैं. पाकिस्तान में जातीय और जनजातीय विवाद जटिल और बहुआयामी हैं, जो अक्सर ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक कारकों में निहित होते हैं. इन संघर्षों में आम तौर पर संसाधनों, भूमि, राजनीतिक प्रतिनिधित्व या सांस्कृतिक पहचान को लेकर विभिन्न जातीय या जनजातीय समूहों के बीच टकराव शामिल होते हैं. इनमें से कई संघर्षों की गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं, जो औपनिवेशिक काल से चली आ रही हैं, जब प्रशासनिक सीमाएँ जातीय या जनजातीय संबद्धता की परवाह किए बिना खींची जाती थीं. इससे भूमि स्वामित्व और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर शिकायतें पैदा हुईं. 2008 और 2010 के बीच ओरकजई और खैबर जनजातियों के बीच संघर्ष तेज हो गए थे.
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर पीस स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये संघर्ष भूमि और संसाधनों पर विवादों से प्रेरित थे, जो क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी समूहों द्वारा बढ़ाए गए थे. रिपोर्ट में क्षेत्र में जनजातीय गतिशीलता और आतंकवादी गतिविधियों के जटिल परस्पर संबंधों पर प्रकाश डाला गया है.
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