द हेग (नीदरलैंड)
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और नाटो के अन्य सदस्य देश मंगलवार से एक ऐसे शिखर सम्मेलन के लिए एकत्र हो रहे हैं जो या तो दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा गठबंधन को नई रक्षा प्रतिबद्धता पर एकजुट कर सकता है, या फिर 32 सदस्य देशों के बीच दरार और गहरा सकता है।
पिछले सप्ताह तक माहौल सकारात्मक था। नाटो के महासचिव मार्क रुटे को उम्मीद थी कि यूरोपीय सदस्य और कनाडा पहली बार अमेरिका के बराबर रक्षा खर्च की प्रतिबद्धता जताएंगे। लेकिन तभी स्पेन ने प्रत्येक देश के लिए जीडीपी का 5% रक्षा पर खर्च करने के नए लक्ष्य को "अवास्तविक" कहकर खारिज कर दिया। जबकि ट्रंप इसी लक्ष्य पर जोर दे रहे हैं। नाटो में किसी भी निर्णय के लिए सभी 32 देशों की सहमति अनिवार्य होती है।
इसके बाद ट्रंप ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि हमें यह करना चाहिए, लेकिन उन्हें करना चाहिए।” उन्होंने स्पेन की वामपंथी सरकार पर हमला बोला और कहा, “नाटो को स्पेन से निपटना होगा। स्पेन हमेशा कम खर्च करने वालों में रहा है।” उन्होंने कनाडा को भी "कम खर्च करने वाला" करार दिया।
पिछले वर्ष स्पेन ने अपने जीडीपी का 2% से भी कम रक्षा पर खर्च किया था, जबकि कनाडा 1.45% पर अटका था।
इसी बीच ट्रंप ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बमबारी का आदेश दे दिया। 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक पर हुए हमले ने नाटो को दो भागों में बांट दिया था—जहां फ्रांस और जर्मनी ने इसका विरोध किया था, वहीं ब्रिटेन और स्पेन ने समर्थन किया था।
अब यूरोपीय देश और कनाडा चाहते हैं कि शिखर सम्मेलन में यूक्रेन प्रमुख मुद्दा बने, लेकिन उन्हें चिंता है कि ट्रंप नहीं चाहेंगे कि राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की केंद्र में रहें।
यह दो दिवसीय शिखर सम्मेलन मंगलवार की रात्रि भोज और बुधवार सुबह एक औपचारिक बैठक तक सीमित रहेगा। किसी तरह के मतभेदों से बचने के लिए एक बेहद संक्षिप्त साझा बयान तैयार किया गया है।
हालांकि यह सम्मेलन छोटा है, लेकिन इसके असर आने वाले वर्षों तक महसूस किए जा सकते हैं।
1949 में बनी नाटो, शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ के खतरे से निपटने के लिए 12 देशों के गठबंधन के रूप में अस्तित्व में आई थी। रूस से निपटना इस संगठन के मूल में है, जबकि यूरोप के बाहर शांति बनाए रखना इसका प्राथमिक उद्देश्य नहीं रहा है।
अब तक नाटो के सदस्य देशों की संख्या बढ़कर 32 हो चुकी है, जिसमें स्वीडन ने हाल ही में रूस के बढ़ते आक्रामक रुख को देखते हुए सदस्यता ली है।
नाटो की साख उसके अनुच्छेद-5 पर टिकी है—जो कहता है कि किसी एक सदस्य देश पर हमला, सभी पर हमला माना जाएगा। ट्रंप ने एक ओर इस सिद्धांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन उनके बयानों ने कई बार शंका भी पैदा की है।
नाटो का दैनिक संचालन एक नागरिक प्रमुख—महासचिव रुटे—के हाथों में है, लेकिन इसका सैन्य नेतृत्व हमेशा एक अमेरिकी जनरल के पास होता है। अमेरिका अपने बड़े रक्षा बजट और सैन्य ताकत के चलते नाटो के एजेंडे को दशकों से प्रभावित करता आया है।
ज़ेलेंस्की को आमंत्रित किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें नाटो के मुख्य मंच पर स्थान मिलेगा या नहीं। मंगलवार की डिनर मीटिंग में उनकी भागीदारी तय मानी जा रही है। हालांकि, रूस-यूक्रेन युद्ध आम तौर पर इन बैठकों का मुख्य विषय रहता है।
नाटो स्वयं यूक्रेन को हथियार नहीं देता, लेकिन संगठन सामूहिक रूप से ईंधन, चिकित्सा सामग्री, ड्रोन निरोधक उपकरण और बॉडी आर्मर जैसी गैर-घातक सहायता प्रदान करता है। हथियारों की आपूर्ति सदस्य देश व्यक्तिगत रूप से करते हैं, और पोलैंड में स्थित समन्वय केंद्र के माध्यम से नाटो इन प्रयासों का समन्वय करता है।
नाटो की नई योजना के तहत, किसी भी हमले की स्थिति में 30 दिनों के भीतर 300,000 सैनिकों की तैनाती की तैयारी की गई है—चाहे हमला जमीन, समुद्र, हवा या साइबर स्पेस में हो। हालांकि विशेषज्ञों को संदेह है कि सदस्य देश इतनी बड़ी संख्या जुटा पाएंगे।
अमेरिका का रक्षा खर्च नाटो के अन्य सभी देशों से कहीं अधिक है। इसमें हथियारों, सैन्य बलों के अलावा भारी परिवहन और लॉजिस्टिक्स क्षमता भी शामिल है।
2022 में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद नाटो देशों ने रक्षा बजट बढ़ाने का फैसला किया और 2% जीडीपी न्यूनतम लक्ष्य तय किया। पिछले साल 22 देशों ने यह लक्ष्य हासिल कर लिया था, जबकि एक दशक पहले केवल तीन देश ऐसा कर पाए थे।
अब द हेग में चल रहे सम्मेलन में इस लक्ष्य को बढ़ाकर 3.5% करने का प्रस्ताव है—साथ ही अतिरिक्त 1.5% सामाजिक और भौतिक संरचना जैसे पुल, हवाई अड्डे और बंदरगाहों को युद्ध के लिए तैयार करने पर खर्च करने की योजना है। हालांकि यह सब फिलहाल अनिश्चित है।