नई दिल्ली
अमेरिकी प्रोफेसर और वरिष्ठ पत्रकार टेरिल जोन्स ने कहा है कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में एक अनोखी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि भारत उन गिने-चुने बड़े देशों में से है जो दोनों पक्षों से सीधे संवाद करने की क्षमता रखते हैं।
एएनआई से बातचीत में करीब 40 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे टेरिल जोन्स ने कहा कि अमेरिका लगातार प्रयासों के बावजूद इस संघर्ष को समाप्त करने में सफल नहीं हो पाया है। उन्होंने बताया कि अमेरिका का यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की के साथ संवाद तो है, लेकिन वह हमेशा सहज नहीं रहा। वहीं, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन "बहुत हठी" हो सकते हैं। ऐसे में भारत की भूमिका बेहद अहम बन सकती है।
उन्होंने कहा, “अमेरिका जेलेंस्की से बात कर सकता है, और पुतिन से भी संपर्क कर सकता है, लेकिन यह संवाद हमेशा सार्थक नहीं होता। पुतिन बहुत जिद्दी हैं और बातचीत से शायद कुछ न निकले। ऐसे में भारत की स्थिति अलग है। भारत दोनों नेताओं से बात कर सकता है और उनकी बात सुनवाई करा सकता है, जो अन्य बड़े देशों के लिए संभव नहीं। जब कोई बड़ा देश मध्यस्थता का रोल निभा सकता है, तो यह तार्किक विकल्प बन जाता है।”
जोन्स ने आगे कहा कि हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार इस भूमिका को प्रमुखता से नहीं दिखाना चाहते, लेकिन यह भारत के पास मौजूद एक बड़ी कूटनीतिक ताकत है। उन्होंने कहा, “सोचिए, अगर प्रधानमंत्री मोदी रूस और यूक्रेन के बीच युद्धविराम कराने में सफल होते हैं और इसके लिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलता है, तो यह कितना अद्भुत होगा।”
जब उनसे पूछा गया कि हाल ही में अमेरिका और रूस के बीच अलास्का शिखर सम्मेलन को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्या ज्यादा वादे कर दिए थे, तो उन्होंने कहा कि ट्रंप की उम्मीदें कहीं ज्यादा थीं।
जोन्स ने कहा, “ट्रंप को लगता था कि वह सिर्फ बैठकर पुतिन से बात करके कोई हल निकाल सकते हैं। यही तरीका उन्होंने अपने कारोबारी जीवन में अपनाया था। लेकिन राजनीति और युद्ध जैसे मामलों में यह तरीका कारगर नहीं होता। यहां लंबी और जटिल बातचीत होती है, जो निचले स्तर पर शुरू होकर शीर्ष स्तर तक पहुंचती है।’’
उन्होंने ट्रंप की तुलना उत्तर कोरिया के किम जोंग उन से हुई बैठकों से की, जहां तीन मुलाकातों के बावजूद ठोस नतीजा नहीं निकला। जोन्स के अनुसार, “ट्रंप एक व्यापारी की तरह सोचते हैं, जबकि कूटनीति में धैर्य और चरणबद्ध वार्ताओं की जरूरत होती है।”
जोन्स ने स्पष्ट किया कि शिखर सम्मेलनों जैसे जी-7 या द्विपक्षीय बैठकों में शीर्ष नेता सीधे बातचीत करने नहीं बैठते, बल्कि उससे पहले अधिकारियों द्वारा महीनों तैयारी की जाती है। उन्होंने कहा, “अलास्का शिखर सम्मेलन न सिर्फ ट्रंप बल्कि अमेरिकियों के लिए भी निराशाजनक रहा।”
करीब चार दशकों से पत्रकारिता कर रहे टेरिल जोन्स ने 18 साल जापान, चीन और फ्रांस जैसे देशों में बिताए हैं। उन्होंने अमेरिका में भी संयुक्त राष्ट्र, डेट्रॉइट (ऑटो उद्योग) और सिलिकॉन वैली (तकनीकी क्षेत्र) को कवर किया है। फिलहाल वे अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता पढ़ा रहे हैं।