इस्लाम शांति का मज़हब है, पैगंबर ﷺ शांति के सबसे बड़े दूत : कर्नाटक CM

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 06-09-2025
Islam is a religion of peace, Prophet ﷺ is the greatest messenger of peace: Karnataka CM
Islam is a religion of peace, Prophet ﷺ is the greatest messenger of peace: Karnataka CM

 

सबीहा फातिमा/बेंगलुरु

बेंगलुरु का ऐतिहासिक पैलेस ग्राउंड शुक्रवार को एक अनोखे दृश्य का गवाह बना, जब हजारों की संख्या में लोग 1500वें अंतरराष्ट्रीय जश्न-ए-मीलादुन्नबी (PBUH) सम्मेलन में शामिल होने पहुंचे. यह आयोजन संयुक्त मीलाद समिति के बैनर तले हुआ जिसमें जुलूस-ए-मोहम्मदी कमेटी बेंगलुरु, ऑल कर्नाटक मीलाद वा जुलूस रहमतुल लिल आलमीन कमेटी और ऑल कर्नाटक सुन्नी जमीयतुल उलेमा जैसी संस्थाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई. इस मौके पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए शांति, भाईचारे और भारतीय संविधान की मूल भावना को अपनाने का आह्वान किया.

उन्होंने कहा कि पैगंबर मोहम्मद ﷺ का जीवन मानवता के लिए न्याय, समानता और धार्मिक सौहार्द का मार्गदर्शन करता है और यही वह मूल तत्व हैं जिन्हें भारत का संविधान भी अपने भीतर समेटे हुए है.

d

मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में पैगंबर की शिक्षाओं को कर्नाटक की सामाजिक परंपराओं से जोड़ते हुए बसवन्ना के शरणा आंदोलन का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि जिस तरह बसवन्ना ने समाज में समानता और करुणा का संदेश दिया, उसी तरह पैगंबर मोहम्मद ﷺ ने मानवता को भाईचारे और दया की राह दिखाई.

उन्होंने स्पष्ट किया कि इस्लाम का असली अर्थ शांति है और पैगंबर ﷺ दुनिया के सबसे बड़े शांति-दूत हैं. सिद्धारमैया ने कहा कि भारतीय संविधान भी इन्हीं आदर्शों पर टिका है और इसका मूल मंत्र है समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व.

मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें संविधान को केवल किताबों में सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि इसे रोज़मर्रा के जीवन में उतारना चाहिए. उन्होंने अपने भाषण का समापन करते हुए जोर देकर कहा—“जय हिंद, जय कर्नाटक, जय हिन्दू-मुसलमान.”

सम्मेलन में डिप्टी सीएम डी.के. शिवकुमार ने भी संबोधित किया और कहा कि पैगंबर मोहम्मद ﷺ ने समाज के दबे-कुचले और बेबस वर्ग के लिए आवाज़ उठाई और बराबरी की नींव रखी.

उन्होंने कहा कि हर धर्म शांति सिखाता है और हर प्रार्थना एक ही ईश्वर की ओर इशारा करती है. किसी भी धर्म ने दूसरों को कष्ट देने की शिक्षा नहीं दी है. पैगंबर की शिक्षाओं के अनुसार हमें अपने देश की एकता और अखंडता की रक्षा करनी चाहिए.

शिवकुमार ने मुसलमानों को यह कहकर प्रोत्साहित किया कि वे स्वयं को अल्पसंख्यक न समझें, क्योंकि वे डॉक्टर, पेशेवर, नेता और समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं। उन्होंने कहा कि हमें मिलकर भारत की साझी विरासत को आगे बढ़ाना है.

s

धार्मिक विद्वानों और उलेमा ने भी सम्मेलन में अपने विचार रखे. कोलकाता के मुफ़्ती सज्जाद आलम ने याद दिलाया कि मस्जिद-ए-नबवी में एक जमात इबादत में लगी रहती थी तो दूसरी जमात ज्ञान अर्जित करती थी.

उन्होंने कहा कि आज के संकटों का समाधान पैगंबर की सीरत में निहित है और इंसानियत की समस्याओं का जवाब ज्ञान, करुणा और शांति के मेल से ही संभव है. केरल से आए विद्वान इब्राहिम खलील थंगल ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सराहना करते हुए उन्हें साम्प्रदायिक सौहार्द का आदर्श बताया और कहा कि कर्नाटक में जिस तरह यह विशाल सम्मेलन शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित हुआ, वह पूरे देश के लिए संदेश है.

हज़रत अल्लामा पीर सैयद मोहम्मद खासिम अशरफ़ बाबा ने अपने संबोधन में कहा कि पैगंबर ﷺ ने गिरे हुए को उठाया, टूटे दिलों को जोड़ा और इंसान को जीने की कला सिखाई.

उन्होंने कहा कि दौलत और ताक़त का कोई महत्व नहीं यदि वे दूसरों के काम न आएं. इस्लाम शांति का मज़हब है और पैगंबर ﷺ की शिक्षाएं इंसानों को पर्यावरण और संसाधनों के संरक्षण तक की दिशा देती हैं, जैसे पानी को बर्बाद न करने की छोटी लेकिन गहरी शिक्षा.

डॉ. अब्दुल हकीम आज़हरी ने कहा कि पैगंबर का unmatched किरदार ही था जिसकी वजह से जो लोग उन्हें मारने आए, वे भी उनके अनुयायी और प्रशंसक बन गए. यही उनकी करुणा और शांति की असली ताक़त थी.

जामा मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल कादिर ने नात-ख्वानी की अहमियत पर कहा कि अल्लाह ने अपने हबीब ﷺ को सबसे ऊंचा दर्जा दिया है और उनके गुनगान करने वालों को भी इज़्ज़त बख्शी है. हर नात का संदेश मोहब्बत, करुणा और शांति ही है.

कार्यक्रम में पुलिस कमिश्नर सीमांत कुमार सिंह ने भी अपील की कि यह वर्ष पैगंबर मोहम्मद ﷺ की पैदाइश का 1500वां साल है और इस मौके पर सभी को शांति-दूत बनकर समाज में अमन का पैगाम फैलाना चाहिए.

उन्होंने लोगों से कार्यक्रम को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करने की गुजारिश की. वहीं, मंत्री और सम्मेलन के संरक्षक बी.ज़ेड. ज़मीर अहमद खान ने विनम्रता का परिचय देते हुए कहा कि वे मंच पर बैठकर भाषण नहीं देंगे बल्कि जनता के बीच बैठकर सुनेंगे. उनकी इस सादगी को सम्मेलन में आए विद्वानों और लोगों ने सराहा और इसे इंसाफ और बराबरी की असली मिसाल बताया.

d

सम्मेलन का माहौल आध्यात्मिकता और उत्साह से भरा रहा. नात-ख्वानों मोहम्मद मुइनुद्दीन, मोहम्मद जुनैद अशरफ़ी कलकत्तावी और मोहम्मद बाक़र ने पैगंबर ﷺ की शान में कलाम पेश किए जिनकी आवाज़ों ने पूरे मैदान को मोहब्बत और रूहानियत से भर दिया. इस अवसर पर SYS एम्बुलेंस सेवा का शुभारंभ भी किया गया जिसे समाजसेवा की दिशा में बड़ा कदम माना गया.

इस ऐतिहासिक सम्मेलन में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार, मंत्री बी.ज़ेड. ज़मीर अहमद खान, मंत्री के.जे. जॉर्ज, एमएलए एन.ए. हारिस, मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव नसीर अहमद खान सहित कई राजनीतिक और सामाजिक हस्तियां मौजूद थीं.

इसके अलावा देशभर से आए धार्मिक नेता और विद्वान भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे. समुदाय की ओर से उस्मान शरीफ़ और जी.ए. बावा जैसे नेताओं ने कार्यक्रम की सफलता में अहम भूमिका निभाई.

सम्मेलन का सबसे बड़ा संदेश यही रहा कि पैगंबर मोहम्मद ﷺ की शिक्षाएं और भारतीय संविधान दोनों एक ही बात कहते हैं—समानता, न्याय और भाईचारा. मुख्यमंत्री ने कहा कि नागरिकों का कर्तव्य है कि वे संविधान को केवल किताबों तक सीमित न रखें बल्कि उसे अपने जीवन और कर्म में उतारें. जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, तब तक सच्चे अर्थों में लोकतंत्र और इंसानियत की रक्षा संभव नहीं है.

f

कार्यक्रम का समापन सामूहिक दुआओं के साथ हुआ जिसमें पूरे देश और दुनिया की अमन-चैन, तरक्की और सलामती की प्रार्थना की गई. सम्मेलन के हर वक्ता ने यही दोहराया कि इस्लाम शांति का मज़हब है, पैगंबर ﷺ शांति के दूत हैं और भारत का भविष्य तभी सुरक्षित है जब हम समाज में एकता, सहिष्णुता और आपसी सम्मान को अपनाएंगे.

पूरा सम्मेलन मानो अल्लामा इक़बाल के उस मशहूर शेर की ताबीर था जिसमें कहा गया—“की मोहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं, ये जहाँ चीज़ है क्या, लौह-ओ-कलम तेरे हैं.” यह शेर सम्मेलन की आत्मा की तरह बार-बार गूंजता रहा और हज़ारों लोगों को मोहब्बत, वफ़ादारी और अमन के साझा संदेश से जोड़ता रहा.

बेंगलुरु का यह सम्मेलन केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि सामाजिक समरसता, संवैधानिक जिम्मेदारी और साझी संस्कृति का अद्भुत संगम था. इसने यह साबित किया कि पैगंबर ﷺ की शिक्षाएं आज भी इंसानियत के लिए उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी 1500 वर्ष पहले थीं और उनका संदेश हमें एक बेहतर समाज और मजबूत भारत बनाने की दिशा देता है.