ढाका/नई दिल्ली।
बांग्लादेश में फरवरी में प्रस्तावित आम चुनाव से पहले छात्र-नेतृत्व वाली नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) गंभीर आंतरिक संकट से जूझती नजर आ रही है। जमात-ए-इस्लामी के साथ संभावित चुनावी गठबंधन को लेकर पार्टी के भीतर अचानक फूट उभर आई है। पार्टी के कम से कम 30 नेताओं ने इस प्रस्ताव के खिलाफ संयुक्त ज्ञापन जारी किया है, जबकि दो वरिष्ठ नेताओं ने अपने पदों से इस्तीफे की घोषणा कर दी है।
एनसीपी, दरअसल Students Against Discrimination (एसएडी) से उभरा एक प्रमुख राजनीतिक धड़ा है। एसएडी ने पिछले वर्ष हुए उस व्यापक छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसे ‘जुलाई विद्रोह’ के नाम से जाना जाता है। इसी आंदोलन के दबाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग सरकार सत्ता से बाहर हुई थी। इसके बाद एनसीपी, अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के समर्थन से एक नई राजनीतिक ताकत के रूप में उभरी।
एनसीपी के संयुक्त सदस्य-सचिव मुशफिक उस सलीहीन ने बताया कि उन्होंने पार्टी संयोजक नाहिद इस्लाम को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें जमात-ए-इस्लामी के साथ गठबंधन पर “सैद्धांतिक और नैतिक आपत्तियां” दर्ज की गई हैं। ज्ञापन में कहा गया है कि जमात के साथ हाथ मिलाना एनसीपी की घोषित विचारधारा, जुलाई विद्रोह की भावना और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
ज्ञापन में जमात-ए-इस्लामी के विवादास्पद इतिहास का भी जिक्र किया गया है, खासतौर पर 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान उसकी कथित भूमिका और नरसंहार में सहयोग के आरोपों को लेकर। नेताओं का कहना है कि ऐसे दल से गठबंधन एनसीपी की राजनीतिक विश्वसनीयता और जनता के भरोसे को गहरा नुकसान पहुंचाएगा, विशेषकर युवाओं और नई राजनीति की उम्मीद रखने वाले मतदाताओं के बीच।
इस विवाद के बीच एनसीपी की वरिष्ठ संयुक्त सदस्य-सचिव तसनीम जारा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और घोषणा की कि वह ढाका की एक संसदीय सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगी। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उनके पति और पार्टी के संयुक्त संयोजक खालिद सैफुल्लाह ने भी संगठन छोड़ दिया है।
हालांकि एनसीपी ने अभी तक जमात के साथ गठबंधन को लेकर औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन डेली स्टार के मुताबिक अगले एक-दो दिनों में सीट-बंटवारे पर समझौता अंतिम रूप ले सकता है। इस घटनाक्रम ने बांग्लादेश की राजनीति में अस्थिरता और अनिश्चितता को और गहरा कर दिया है।






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