Behind the glitz and glamour: China surrounded by allegations of erasing Tibet's identity
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश)। चीन ने पूर्वी तिब्बत के चोने में कक्षा 4 से 6 तक के छात्रों के लिए एक नया राज्य-नियंत्रित आवासीय विद्यालय (बोर्डिंग स्कूल) खोला है. चीनी प्रशासन इसे विकास और शिक्षा में प्रगति की मिसाल के रूप में पेश कर रहा है. 24 अगस्त को चीनी अधिकारियों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीचैट पर साझा की गई तस्वीरों में आधुनिक कक्षाएं, छात्रावास और खेल सुविधाएं दिखाई गईं.
लेकिन इन चमकदार इमारतों के पीछे तिब्बती निर्वासन समुदायों और अधिकार समूहों ने गहरी चिंता जताई है. उनका कहना है कि यह संस्थान जबरन सांस्कृतिक समावेशन (forced assimilation) की एक खतरनाक प्रवृत्ति का हिस्सा हैं.
तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट (TAI) की जुलाई 2025 में आई रिपोर्ट ‘व्हेन दे केम टू टेक अवर चिल्ड्रन’ के अनुसार, चीन इन स्कूलों के माध्यम से तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों और सांस्कृतिक धरोहर से दूर कर मंदरिन भाषा के माहौल में डुबो रहा है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि महज चार साल की उम्र से ही बच्चों को भावनात्मक और सांस्कृतिक अलगाव झेलना पड़ रहा है.
यह नया स्कूल 9 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों को लक्ष्य करता है यह उम्र पहचान के निर्माण की दृष्टि से बेहद अहम मानी जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि बोर्डिंग जीवन बच्चों को उनके माता-पिता, दादा-दादी और स्थानीय समुदाय के साथ रोजाना के संपर्क से वंचित कर देता है। इससे तिब्बती भाषा, धर्म और सांस्कृतिक मूल्यों के स्वाभाविक संचार की प्रक्रिया टूट जाती है.
फायुल के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रों में अपने पृष्ठभूमि को लेकर शर्म की भावना पैदा होती है और उन्हें तिब्बती भाषा बोलने तक से हतोत्साहित किया जाता है, यहां तक कि घर में भी.
संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदकों ने भी इस मुद्दे पर पहले चिंता जताई थी। उनका कहना था कि जहां पूरे चीन में केवल 20% छात्र ही बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते हैं, वहीं तिब्बत में लगभग सभी बच्चों को मजबूरन ऐसे स्कूलों में भेजा जाता है। 2023 में यूएन ने इस नीति को बच्चों को दीर्घकालिक मानसिक नुकसान पहुंचाने वाला बताया था और इसे तिब्बती पहचान को व्यवस्थित रूप से बदलने का प्रयास करार दिया था.
आलोचकों का कहना है कि चीन इन स्कूलों को विकास और प्रगति के नाम पर बाजार में उतारता है, लेकिन वास्तव में ये संस्थान राज्य-प्रायोजित सांस्कृतिक मिटाव (cultural erasure) के औजार हैं.