शाहनवाज आलम / नई दिल्ली
लेदर जैकेट, सनग्लासेज और ग्लब्स पहनकर 100 केएमपीएच की रफ्तार से बुलेट चलाकर उम्र के बंधनों को तोड़ती हैं, समाज की रूल बुक को चुनौती देती हैं. वे नींद में सपने नहीं देखतीं, बल्कि बिजली की रफ्तार और खुली आखों से उन्हें जीती हैं. यह पहचान है दिल्ली की रहने वाली 54 साल की शबनम अकरम की. जिस उम्र में लोग आराम करना पसंद करते है, वहां शबनम बाइक की रफ्तार से उम्र के अंक को फीका कर देती हैं.
मूल रूप से इलाहाबाद की रहने वाली शबनम कहती है, “जब बुलेट चलाती हूं, तो अंदर से आजादी की एक लहर दौड़ जाती है. मेरे लिए बाइक से उड़ने वाली धूल मेकअप और पेट्रोल की खूशबू, परफ्यूम का काम करती है. बुलेट की आवाज म्यूजिक लगती है. उसका भारीपन ऊंची उड़ान भरने का आत्मविश्वास देता है.”
उन्होंने बताया कि इसी बुलेट ने नई पहचान दी है. इसके लिए 2016 में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने ‘बदलते कदम’ पुरस्कार से सम्मानित किया था. बाइकरनी ग्रुप की सदस्य के तौर पर कई महिलाओं को बाइक राइडिंग की ट्रेनिंग और सेल्फ मोटिवेशनल स्पीच देती हैं.
शबनम का दावा है कि वे 50 लाख किमी से अधिक का सफर बाइक से कर चुकी हैं. अधिकांशतः अब वे अपनी बाइकरनी ग्रुप के साथ ही राइडिंग करती हैं. दिल्ली से लेह और फिर वहां से कन्याकुमारी तक जा चुकी हैं. गुजरात, महाराष्ट्र और असम तक का सफर बाइक से तय किया है. कभी नदी साफ करने, तो कभी बुजुर्गों के साथ वक्त बिताने के लिए राइडिंग पर निकल जाती है.
अपने सफर के बारे में वे कहती हैं, “बात 1991 की है, जब महज 14 साल की थी. उस समय भाई के पीछे बैठकर कहीं जाती थीं, तभी से बाइक में दिलचस्पी जगी और फिर यह हॉबी में बदल गई. मुस्लिम परिवार होने की वजह से शुरुआत में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब्बू साथ देते थे.”
उन्होंने बताया कि कॉलेज वक्त में पहली गाड़ी दिलवाई थी. उस समय चेतक, बजाज, लूना जैसी 50-60 सीसी वाली गाड़ियां हुआ करती थीं, जो मुझे पसंद नहीं थीं. मुझे स्पीड और पावर राइडिंग का शौक था, जो बाइक से पूरा होता था.
एक किस्सा याद करते हुए बताती हैं कि इलाहबाद में एक बार जब बाइक चला रही थीं, तो एक लड़के ने उन्हें धक्का देने की कोशिश की. जब सर पर हेलमेट और हाथों में ग्लव्ब पहने हुए अपनी बुलेट पर वे बाहर निकलती थीं, तो लोगों को ये बात कुछ हजम नहीं होती. रोज-रोज सड़क पर इनका सामना चौंकाई हुई नजरों से होता है.
पेशे से ग्राफिक्स डिजाइनर शबनम कहती हैं कि शादी के बाद मेरे पति ने मुझे पहली बाइक दी थी.
दिल्ली के एक किस्से के बारे में बताते हुए वे कहती है कि एक बार अपनी फ्रेंड के साथ बाइक पर कहीं जा रही थीं, रास्ते में ट्रैफिक सिग्नल जब लाल हुआ और हम रुक गए. मेरे साथ खड़ी एक मारुति गाड़ी में पांच लोग बैठे थे. उनमें से एक चिल्लाया दृ अरे देख, औरत बाइक चला रही है. उसके बाद आस-पास मौजूद सभी लोग मुझे अजीब सी नजरों से देखने लगे, लेकिन उनमें से कुछ लोगों की नजरों में मैं अपने लिए इज्जत भी देख पा रही थी. इस तरह का वाक्या कई बार पेश आया है.
वह बताती हैं कि कुछ पुरुषों को उन्हें बुलेट चलाते देख असहज महसूस होता है. बेवजह ओवरटेक करने की कोशिश करते थे. मेरे साथ एक बार कुछ ऐसा हुआ कि एक जनाब मेरे साथ-साथ काफी देर तक बाइक चलाते रहे. मैंने पूछ ही लिया - क्या है? तो वो बोले की आप बाइक अच्छी चलाती हैं. मैंने कहा औरत हूं इसलिए तारीफ की आपने, अगर लड़का होता, तो परवाह नहीं करते.
इस उम्र में बाइक राइडिंग के दिक्कतों पर वे कहती हैं, दिक्कत किस बात की. बाइक के साथ ऐसा है कि आप लेफ्ट की तरफ झुकोगे तो बाइक भी बाएं की तरफ झुकेगी. वो आपकी बॉडी का भी हिस्सा बन जाती है. कार आपका एक्सटेंशन नहीं बनती. और मेरा जब भी मूड खराब होता है, मैं तो बाइक लेके निकल पड़ती हूं और बस मूड ठीक हो जाता है.
भले ही दुनिया उनकी बाइकिंग हुनर को मर्द-औरत से जोड़ कर देखती हो, लेकिन शबनम ने कभी अपने जुनून को समाज की बनाई परिभाषाओं में ढलने नहीं दिया. उनका कहना है कि बाइकिंग का उनके स्त्री होने से कोई लेना-देना नहीं है.
बकौल शबनम, मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं बुलेट चलाती हूं. जहां अच्छे-अच्छे बुलेट के नाम से डरते है, मुझे यह अहसास अलग सा सुकून देता है. इज्जत मिलती है.
राइडिंग एक्सपीरियंस पर शबनम कहती हैं, मेरे लिए राइडिंग का मतलब है आजादी. लेकिन जो आजादी मेरे पास है, मैं चाहती हूं कि वैसी ही आजादी भारत में ज्यादा से ज्यादा औरतों को मिले. किसी भी तरह के फैसले में एक औरत की मर्जी जरूर जुड़ी हुई होनी चाहिए. किसी और के कहने से महिलाओं को ये मान कर नहीं बैठ जाना चाहिए कि वे कुछ चीजें नहीं कर सकतीं या कुछ जांबाज काम केवल पुरुषों के लिए ही बने हैं.
लेडी बाइकर शबनम अकरम अपने बाइकरनी ग्रुप के साथ
महिलाओं की स्थिति पर शबनम बेबाकी से कहती है कि समस्या ये है कि एक औरत को अपने हर फैसले में एक पुरुष की सहमति जरूरी लगती है. ऐसा नहीं होना चाहिए. जब तक महिलाएं अपनी मर्जी से स्वतंत्र फैसले नहीं ले पाएंगीं, तब तक समाज का चरखा यूं ही चलता रहेगा, जैसा अब तक चलता आया है.
अपने ग्रुप के बारे में बारे में कहती है कि दिल्ली के बाइकरनी ग्रुप में 18 साल से लेकर 55 साल तक 250 से अधिक लेडी बाइकर हैं. हर रविवार को हम सब राइडिंग करते हैं. डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस, हाउस वाइफ, प्रोफेशनल, हर फील्ड की लेडी बाइकर हैं. सबके भीतर ‘मैं भी कर सकती हूं’ वाला जज्बा कूट-कूटकर भरा है. हां, बाइकरनी ग्रुप में किसी भी बाइकरनी को हेलमेट, ग्लब्स, जैकेट, आर्म-नी पैड आदि के बिना राइडिंग की इजाजत नहीं दी जाती है. जब हम अवेयरनेस प्रोग्राम करते हैं, तो फास्ट राइडिंग के शौकीनों को आम सड़कों के बजाए रेसिंग ट्रैक पर और पूरे प्रोटेक्शन के साथ राइड करने की सलाह देते हैं.