स्पेशल रिपोर्टः नवजातों की मृत्युदर में आई कमी, महत्वपूर्ण उपलब्धि

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 26-09-2022
नवजातों की चिंता है देश को
नवजातों की चिंता है देश को

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

देश में बेहतर पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं में आ रहे सुधार के नतीजे दिखने लगे हैं. लगातार गिरावट के बाद शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), पांच वर्ष से कम शिशु की मृत्य दर (यूएमआर) और नवजात मृत्य दर (एनएमआर) में और गिरावट दर्ज की गई है.

स्वास्थ्य सुधार के लिए केंद्रित कार्यक्रमों, मजबूत केन्द्र-राज्य साझेदारी और स्वास्थ्यकर्मियों के समर्पण के साथ अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश शिशु मृत्यु दर के एसडीजी 2030 लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण तरीके से कदम बढ़ा रहा है.

उल्लेखनीय है कि भारत को शिशु मृत्यु दर को और अधिक काबू करने में महत्वपूर्ण उपलब्धि मिली है. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआई) द्वारा 22 सितंबर, 2022 को जारी नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) सांख्यिकी रिपोर्ट, 2020 के अनुसार देश में 2014 से आईएमआर, यू5एमआर और एनएमआर में कमी आई है और देश 2030 तक सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) प्राप्त करने की दिशा में है.

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. मनसुख मांडविया ने इस उपलब्धि के बारे में कहा, "एसआरएस 2020 ने 2014 से शिशु मृत्यु दर में लगातार गिरावट दिखाई है. भारत केन्द्रित कार्यक्रमों, मजबूत केंद्र-राज्य साझेदारी तथा सभी स्वास्थ्यकर्मियों के समर्पण से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में शिशु मृत्यु दर के 2030 एसडीजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार है.”

देश में पांच वर्ष से कम उम्र के शिशुओं की मृत्यु दर (यू5एमआर) में 2019 से तीन अंकों की (वार्षिक कमी दर 8.6 प्रतिशत) कमी दर्ज की गई है. 2019 में प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 35 की तुलना में 2020 में 32 प्रति 1,000 जीवित जन्म के आंकड़ों में भी अब सुधार देखा गया है. ग्रामीण क्षेत्रों में अभी यह संख्या 36 है जबकि शहरी क्षेत्रों में घटकर 21 तक पहुंच गया है.

हालांकि, बालिकाओं के लिए यू5एमआर बालकों (31) की तुलना में अधिक (33) है. यू5एमआर में सबसे ज्यादा गिरावट उत्तर प्रदेश (5 अंक) तथा कर्नाटक (5अंक) में देखने को मिली है.

ऐसी स्थिति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को उम्मीद है कि भारत साल 2030 तक संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित सतत विकास लक्ष्य को हासिल कर लेगा. हालांकि राज्यों के स्तर पर अभी स्वास्थ्य सुधार की दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

आंकड़ों को खंगालने से पता चलता है कि 2014 में देश में शिशु मृत्यु दर 39 थी. इसका अर्थ है कि हरेक 1,000 जीवित जन्मे बच्चों में से 39 की मौत हो जाती है. बीते 6 सालों में यह आंकड़ा सुधरकर 28 हो गया है. लेकिन उल्लेखनीय सुधार देखा गया है और 2019 में जो दर 30 थी उसमें दो अंकों का सुधार सिर्फ एक साल के अंदर देखा गया है और 2020 में यह सुधरकर 28 रह गया है.

वैसे, शिशु मृत्युदर के मामले में विकास की रफ्तार में हमसे पीछे छूट गए पड़ोसी देश (पाकिस्तान नहीं) की स्थिति हमसे बेहतर है. श्रीलंका, नेपाल और भूटान की स्थिति इस मामले में भारत से बेहतर है.

बेशक श्रीलंका की अर्थव्यवस्था चौपट है. लेकिन शिशु मृत्युदर के मापदंड पर ये देश कई बड़े यूरोपीय देशों को टक्कर देता है. श्रीलंका में आईएमआर महज 6 है. दक्षिण एशियाई देशों में भारत से खराब स्थिति पाकिस्तान (54), अफगानिस्तान (45) और म्यांमार (35) की है. नेपाल (24), भूटान(23) की स्थिति भी भारत से बेहतर है.

लेकिन देश के अंदर राज्यवार आंकड़े दिलचस्प कहानी पेश करते हैं. मिजोरम (3), नगालैंड (4), गोआ (5), सिक्किम (5), केरल (6), मणिपुर (6), और चंडीगढ़ (8) उन राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में शामिल हैं जहां आईएमआर राष्ट्रीय औसत के लिहाज से चकाचक है.

लेकिन दूसरी तरफ मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी हैं. मध्य प्रदेश को शिशुओं के लिए सबसे घातक राज्य कहा जा सकता है. यहां हर 1,000 जीवित नवजात में से 43 की मौत हो जाती है. उत्तर प्रदेश (38), छत्तीसगढ (38),उड़ीसा (36), राजस्थान (32), मेघालय (29) और हरियाणा भी उन राज्यों में शामिल हैं जहां शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत (28) से ज्यादा है.

हालांकि, 1951 में भारत में शिशु मृत्युदर 146 थी वह 1991 में घटाकर 80 तक लाई गई. यह 2002 में 64, 2012 में 44, 2019 में 30 और 2020 में 28 तक लाई गई है. बेशक, स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतरी की शुरुआत हुई है लेकिन इसे उन राज्यों में और प्रभावी तरीके से लागू करना होगा जहां शिशु मृत्युदर राष्ट्रीय औसत से अधिक है.