तस्करी का शिकार बनीं, समाज से बहिष्कृत हुईं, लेकिन नसीमा ने लिखी नई इबारत

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 23-01-2025
Savior of thousands of girls
Savior of thousands of girls

 

प्रज्ञा शिंदे

‘‘यह 2009 था. मुझे याद है कि उस दिन स्कूल में पूजा थी, इसलिए मैं बहुत खुश थी. मैं उसे बचपन से जानती थी. उसके चाचा हमारे गांव में रहते थे. उसने मुझसे पूछा कि क्या हम कार से चल सकते हैं. हमने बहुत खुशी से हां कहा. और उस एक झटके ने मेरी जिंदगी बदल दी. जब हमें होश आया, तो तो हम एक अजीब जगह पर थे. हमें नहीं पता था कि हम कहां जा रहे थे.’’ ये नसीमा गेन की जिंदगी का वो वाकया है, जो शरीर में कांटा चुभा देगा.

13 साल की उम्र में खुद मानव तस्करी का शिकार बनीं नसीमा गेन ने 4000 से ज्यादा महिलाओं को बचाया है और उन्हें सामान्य जीवन जीने में मदद कर रही हैं. आइए आज के इस खास लेख में नसीमा की प्रेरणादायक यात्रा के बारे में जानें.

मानव तस्करी

मानव तस्करी वित्तीय लाभ के लिए धोखे, धमकी, दबाव, दबाव या अन्य अपमानजनक साधनों का उपयोग करके किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने या फंसाने की अवैध प्रक्रिया है. मानव तस्करी बाल तस्करी (छोटे बच्चों का अपहरण करना और उन्हें बाल श्रम, भीख मांगने या यौन शोषण के लिए इस्तेमाल करना), महिला तस्करी (झूठे वादों के तहत महिलाओं को बेचना या वेश्यावृत्ति, जबरन शादी या घरेलू काम में धकेलना), श्रम तस्करी (पुरुषों या महिलाओं को मजबूर किया जाना) या धोखे से कम वेतन पर विषम परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर किया गया), अंग तस्करी (वित्तीय लाभ के लिए अवैध रूप से अंगों को निकालना और बेचना), आपराधिक तस्करी (चोरी करना, मादक पदार्थों की तस्करी, किसी को जबरदस्ती या धमकी देकर आतंकवादी कार्य करने के लिए उपयोग करना) होती है.

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पश्चिम बंगाल के मसलंदपुर में जन्मी नसीमा गेन का बचपन खुशहाल था, हालांकि तेरहवां साल नसीमा के लिए बहुत कठिन था. एक परिचित ने 13 साल की नसीमा का अपहरण कर उसे मानव तस्करी के दलदल में धकेल दिया. सौभाग्य से, उन्हें 10 महीने बाद रिहा कर दिया गया. लेकिन घर लौटने के बाद लोगों का उनके प्रति नजरिया बिल्कुल बदल गया था. लेकिन नसीमा थकी नहीं. आज वही नसीमा मानव तस्करी की शिकार सैकड़ों लड़कियों को उनके जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर रही है.

उत्थान कलेक्टिव और आईएलएफएटी (इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग) जैसी उनकी विभिन्न पहलों ने 4000 से अधिक लड़कियों को अपना जीवन फिर से शुरू करने में मदद की है.

उस दिन वास्तव में क्या हुआ था...

घटना के बारे में बताते हुए नसीमा कहती हैं, ‘‘उसने मुझसे और मेरे एक दोस्त से पूछा कि क्या हम कार में घर जाना चाहेंगे. उनके साथ कार में एक और शख्स भी था. उनके इरादों का अंदाजा न होने पर हम कार में बैठ गए. वह हमें एक सुनसान जगह पर ले गया और यह कहकर छोड़ दिया कि वह कुछ देर बाद वापस आएगा. थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति दूसरी कार से आया और बोला कि वह हमें घर छोड़ देगा. अंधेरा था, इसलिए हमने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. लेकिन उसने हमारी जिंदगी बदल दी.”

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उन लोगों ने नसीमा और उसकी सहेली को बेच दिया और वे बिहार पहुंच गये. तस्करी के बाद के जीवन के बारे में नसीमा कहती हैं, ‘‘उन्होंने हमें नाचना और गाना सिखाया. यदि कोई उसकी बात नहीं मानता था तो उसे मार-पीट, मानसिक पीड़ा और भूखा रहना पड़ता था. हमने घर लौटने की सारी उम्मीद खो दी थी.’’

आपने इससे कैसे छुटकारा पाया?

नसीमा और उसके जैसी कई अन्य लड़कियों के लिए हिंसा, यातना और भुखमरी दैनिक घटनाएं थीं. इन सभी परिस्थितियों में, जब नसीमा और उसकी सहेली को नौकरानी के रूप में बेच दिया गया, तो उनकी बचने की उम्मीदें फिर से जाग उठीं. नसीमा का कहना है कि जिस शख्स के यहां वह नौकरानी का काम कर रही थीं, वह प्रोफेसर है. नसीमा कहती हैं, “मैं धीरे-धीरे उनकी भाषा समझने लगी थी. तो हम कैसे बिक गए और हमें अभी पहुंचाओ, हम घर वापस जाना चाहते हैं. यह कहने का साहस करो.’’ वह आगे कहती हैं, ‘‘अगर हमारे मालिक को इसके बारे में पता चला, तो यह फिर से यातना है, लेकिन अगर तुम नहीं समझोगे तो तुम मुक्त हो जाओगे. इसलिए हमने उन्हें बताने का फैसला किया.’’

सारी बातें सुनने के बाद प्रोफेसर ने उससे उनके घर का नंबर पूछा. नसीमा की सहेली को घर का नंबर याद था. प्रोफेसर ने उन्हें बुलाया. नसीमा की सहेली के माता-पिता ने नसीमा के माता-पिता और पंचायत को सूचित किया. इसमें बिहार पुलिस भी शामिल थी.

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इससे पहले कि पुलिस और माता-पिता नसीमा और लड़कियों तक पहुंच पाते, तस्कर को पता चल गया कि प्रोफेसर ने लड़कियों के माता-पिता को जानकारी दे दी है. फिर नसीमा और उसकी सहेली अलग-अलग जगह शिफ्ट हो गईं. कई हफ्तों तक उनका पता लगाने के बाद, नसीमा और उसकी दोस्त को आखिरकार 10 महीने बाद आजाद कर दिया गया. नसीमा कहती हैं, ‘‘बचाया जाना और घर ले जाना अभी भी अवास्तविक लगता है. मैंने सारी उम्मीद खो दी थी, लेकिन हमारे और पुलिस के प्रयास सफल होंगे. मैं उन प्रोफेसरों का बहुत आभारी हूं.’’

मुक्ति के बाद लोगों का व्यवहार कैसा था? 

10 महीने बाद, बार-बार बेचे जाने के बाद आखिरकार नसीमा और उसकी सहेली को रिहा कर दिया गया. घर लौटने पर परिवार खुश है कि लड़की वापस आ गई है, लेकिन गांव वाले उसे स्वीकार नहीं कर रहे थे. इस पर नसीमा कहती हैं, ‘‘यह हमारे समाज की दुखद सच्चाई है. मैं परिस्थितियों का शिकार थी, लेकिन फिर भी मुझे बहिष्कृत कर दिया गया.’’ वह आगे कहती हैं, ‘‘बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों से कहते थ्रे कि वे हमसे बात न करें, नहीं तो कोई आपको भी इसी तरह परेशान कर देगा.’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमें स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि उन्होंने हमें वापस लेने से इनकार कर दिया था. दस महीने की यातना और फिर समाज के इस तरह के व्यवहार ने मुझे खुद से अलग कर दिया. मैंने अगले पांच वर्षों तक अपना घर नहीं छोड़ा.’’ वे नसीमा कहती हैं, ‘‘मानव तस्करी के दलदल से निकलने के बाद भी मैं समाज के बहिष्कार से दुखी थी.’’

नसीमा की सामाजिक अनिच्छा को देखते हुए, नसीमा के माता-पिता उसकी उलझन और बेचैनी को देखते हुए, नसीमा को एक एनजीओ में ले गए. उस एनजीओ के माध्यम से मानव तस्करी से बचे लोगों की काउंसलिंग की जाती थी. नसीमा कहती हैं कि काउंसलिंग से उन्हें काफी ताकत मिली.

सेनानी नसीमा

स्वयं एनजीओ से परामर्श लेने के बाद नसीमा को विश्वास हो गया कि वह केवल उन लोगों को परामर्श दे सकती है, जो इस अमानवीय दलदल से बच गए हैं. वहीं से उन्होंने ऐसी लड़कियों-महिलाओं से संपर्क किया और उनकी मदद करने की कोशिश करने लगे.

नसीमा कहती हैं, “मेरे पास जो कुछ भी है, मैंने उससे जीवन बनाने की कोशिश की है, इसे साहस कहें, आशा कहें या भाग्य कहें. इसीलिए मुझमें दूसरों की मदद करने का साहस है. मैंने अपने जैसी अधिक लड़कियों की मदद करने के लिए 2016 में ‘उत्थान कलेक्टिव’ के साथ काम करना शुरू किया, यह एक संगठन है जो लड़कियों और पीड़ितों को प्रशिक्षण, परामर्श और सहायता प्रदान करता है.’’

भारत में बड़ी संख्या में ऐसे पीड़ित हैं जिनके साथ रिहाई के बाद भी अपराधियों जैसा व्यवहार किया जाता है. नसीमा ऐसे सभी पीड़ितों के लिए एक नई पहचान और एक नई दुनिया बनाना चाहती हैं.

2019 में, नसीमा ने देश भर में समान तस्करी विरोधी समूहों के साथ इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग की सह-स्थापना की. इस संस्था का काम नौ राज्यों तक फैला हुआ है. उन्होंने 4500 से ज्यादा पीड़ितों को जीने की नई दिशा दी है.

तस्करी के विरुद्ध भारतीय नेतृत्व मंच

नसीमा द्वारा स्थापित, संगठन पीड़ितों को विभिन्न कौशल-आधारित नौकरियों में प्रशिक्षित करता है और उन्हें जीविकोपार्जन में मदद करता है. नसीमा संगठन के बारे में कहती हैं, ‘‘हम पीड़ितों तक पहुंचते हैं और उन्हें मानसिक स्वास्थ्य सहायता और परामर्श प्रदान करते हैं. आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से, उनके आघात और दुःख एक-दूसरे से जुड़ते हैं. इसलिए उन्हें वहां कोई नुकसान महसूस नहीं होता. इससे उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिलती है.’’

वह आगे कहती हैं, ‘‘ऐसी स्थिति से गुजर चुके व्यक्ति को बहुत देखभाल, प्यार और सम्मान की जरूरत होती है. तस्करी की प्रक्रिया में, उन्होंने अपना सारा आत्म-सम्मान खो दिया है. समाज उन्हें अस्वीकार कर देता है और कईयों को उनके परिवार भी अस्वीकार कर देते हैं. हम उन्हें आवश्यक सहायता और आश्रय प्रदान करते हैं.’’

अपने काम के बारे में पूछे जाने पर नसीमा कहती हैं, ‘‘कई बार अलग-अलग एनजीओ मुझसे संपर्क करते हैं और सीखते हैं कि आईएलएफएटी और उत्थान कैसे काम करते हैं. यह मेरे लिए बहुत बड़ी प्रेरणा और जीत है.’’ वह आगे कहती हैं, ‘‘संगठन के साथ, मैं पीड़ितों के लिए एक सुरक्षित वातावरण बनाना चाहती हूं, यह सुनिश्चित करना चाहती हूं कि अपराधियों को उचित सजा मिले और सभी जीवित लड़कियों का पुनर्वास हो.’’

नसीमा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मानव तस्करी के दलदल से सुरक्षित बाहर निकली लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती हैं, मुआवजा देती हैं, लड़कियों को उनके कौशल से परिचित कराती हैं और उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण देकर उनका पालन-पोषण करती हैं.

नसीमा के इस सारे काम की वजह से अब हर कोई नसीमा को बहुत सम्मान की नजर से देखता है. 26 साल की नसीमा जब मानव तस्करी से बच निकलती है तो कहती है, ‘‘लोहे को जितना गर्म करो, वह उतना ही मजबूत होता जाता है.’’ कई चुनौतियों का सामना करने के बाद, नसीमा का मानना है कि उन सभी कठिन समयों ने उसे मजबूत बनाया है. एक साधारण किशोरी लड़की अब एक योद्धा बन गई है. कार से यात्रा करने के उस एक आकर्षण ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी. लेकिन अब उन्होंने देश से मानव तस्करी को खत्म करने की ठान ली है.

नसीमा के इस जुझारूपन को आवाज का सलाम!