प्रेरणा वाडिकरः ऑक्सफोर्ड में भारतीय महिला कुलपति सामाजिक प्रभाव अवार्ड से सम्मानित

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
ऑक्सफोर्ड में प्रेरणा वाडिकर
ऑक्सफोर्ड में प्रेरणा वाडिकर

 

रत्ना शुक्ला आनंद / बेंगलुरु

बेंगलुरु की प्रेरणा वाडिकर को लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग करके एक तकनीकी मॉडल के माध्यम से पोर्टेबल ऊर्जा को और अधिक किफायती बनाने के प्रयासों की मान्यता के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कुलपति के सामाजिक प्रभाव पुरस्कार-2021से सम्मानित किया गया है. माना जाता है कि वाडिकर द्वारा विकसित मॉडल का कुल वनज 500ग्राम से कम का है, जिसमें छोटे रेफ्रिजरेटर को चलाने के लिए बिजली पैदा करने की क्षमता है.

अवार्ड

ऑक्सफोर्ड विश्विद्यालय हर साल अपने स्टाफ या छात्रों को सामाजिक क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए सामाजिक प्रभाव पुरस्कार से सम्मानित करता है. प्रेरणा वाडिकर को 300 छात्रों में से चयनित कर इस श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है. उनका नाम अब वहां की उस प्रतिष्ठित सूची में पटल पर अंकित होगा, जिसमें भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, भूतपूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉक्टर मनमोहन सिंह का नाम भी अंकित है.

ऑक्सफोर्ड तक का सफर

दुनिया के 1000 नामचीन विश्वविद्यालयों में पहले स्थान पर ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में स्थित सबसे प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने का सपना हर कोई देखता है. पर अधिकांश लोग इससे इसीलिए वंचित रह जाते हैं, क्योंकि यहां पढ़ना उन लोगों की पहुंच से बाहर होता है.

यहां पढ़ना न केवल महंगा है बल्कि दाखिले के लिए आपको कहीं अधिक कठिन एडमिशन प्रक्रिया को पूरा करना होता है. कई पाठ्यक्रमों में छात्रों इंटरव्यू के कई-कई साक्षात्कार से होकर गुजरना पड़ता है, जिसमें हर साल बड़ी संख्या में छात्र असफल होते हैं. परंतु प्रेरणा को यहां अपनी प्रतिभा के कारण पूरी तरह वित्त पोषित प्रबंधन पाठयक्रम में दाखिला मिला.

ऑक्सफोर्ड-वीडेनफेल्ड और हॉफमैन छात्रवृत्ति और नेतृत्व कार्यक्रम का हिस्सा है. ऊर्जा दक्षता के क्षेत्र में अपने कार्य के लिए वे इसका हिस्सा बनी हैं. प्रेरणा जीवा ग्लोबल कंपनी की उद्यमी हैं और उन्होंने सौर ऊर्जा पर आधारित ऐसी पोर्टेबल बैटरी इजाद की है, जो छोटे और मंझोले उद्योग में रोजगार उपलब्ध कराने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है.

प्रोद्योगिकी, प्रबंधन और परोपकार का अनूठा संगम

विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्. पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्॥ (विद्या विनय देती है,, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है.)

बेहतर समाज के निर्माण में सुशिक्षित नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. शिक्षा के ही द्वारा हमारी कीर्ति का प्रकाश चारों ओर फैलता है. प्रेरणा इसका जीता जागता उदाहरण हैं. मुंबई से सूचना प्रौद्योगिकी में इंजीनियरिंग करने के बाद प्रेरणा ने देश के सर्वोच्च प्रबंधन संस्थान आईआईएम बेंगलुरु से लोकनीति में स्नातकोत्तर की डिग्री ली. इसके बाद वे कई मल्टीनेशनल कंपनियों और सरकारी संस्थाओं से जुड़ी रहीं. इसी दौरान प्रेरणा ने हरित ऊर्जा के क्षेत्र में काफी काम किया.

ठेले वालों के लिए बनाई बैटरी

प्रेरणा ने इस दौरान समाज के वंचित वर्ग और छोटे उद्यमियों की जरूरत को समझा. कोविड के दौरान जब उन्होंने रोजगार की समस्या देखी, तो उन्हें लगा कि वे कुछ ऐसा तकनीकी मॉडल बना सकती हैं, जो छोटे और मंझोले उद्योगों को बढ़ाने में कारगर हो और बड़ी संख्या में लोगों की मदद हो सके.

प्रेरणा ने रिक्शे वालों और हाथ से चलने वाले ठेले के जरिए रोजी-रोटी कमाने वालों पर काफी काम किया और सौर ऊर्जा से चलने वाली ऐसी पोर्टेबल बैटरी बनाई, जो मात्र एक घंटे में चार्ज हो जाती है और इससे एक साथ तीन उपकरण चल सकते हैं. प्रेरणा के मुताबिक भारत में लगभग एक करोड़ लोगों की रोजी-रोटी हाथ ठेला पर आधारित है, उनके लिए ये फायदेमंद होगी.

दरअसल व्यापार प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए नई-नई तकनीक की खोज की जाती है, उसमें प्रौद्योगिकी और प्रबंधन से जुड़े लोगों की मुख्य भूमिका होती है, परंतु एक बेहतर मॉडल तैयार करने के लिए समाज कल्याण की भावना होनी जरूरी है, जहां गरीब तबके की मदद करना पहला उद्देश्य होना चाहिए. प्रेरणा के मुताबिक तकनीक के माध्यम से आर्थिक विकास की गति तेज हो सकती है और वे इसी दिशा में प्रयास कर रही हैं.

वसुधैव कुटुम्बकम की नीति पर चलती हैं

प्रेरणा के मुताबिक पूरा विश्व ही हमारा परिवार है. वे इसी नीति पर चलते हुए वे अफ्रीकी देशों में भी लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए काम करेंगी. प्रेरणा सामाजिक क्षेत्र में काफी सक्रिय भूमिका में रही हैं, उन्होंने स्वास्थ्य और पोषण के अलावा, मानव तस्करी रोकने, कौशल विकास, चक्रीय अर्थव्यवस्था यानी संसाधनों के कई बार उपयोग करने के मॉडल के अलावा छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने की दिशा में तकनीकी और प्रबंधन के संयुक्त योगदान पर भी काम किया है. प्रेरणा लोक कैपिटल फेलो भी हैं.

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प्रेरणा वाडिकर अपने माता-पिता के साथ

मां की झिड़की से मिली प्रेरणा

प्रेरणा कहती हैं कि बचपन में जब भी वे किसी बात पर शिकायत करती थीं, तो उनकी मां नीना महाजन उनसे कहा करतीं कि “शिकायत करने से काम नहीं चलता, तुम खुद इसका समाधान नहीं खोज सकती क्या” और मां की इसी झिड़की ने उन्हें ट्रबल शूटर बना दिया. उन्हें अनुसंधान की तरफ देखने की आदत हो गई.

सादगी और परोपकार से भरा जीवन

कबीरदास जी का एक लोकप्रिय दोहा है, ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर’ अर्थात यदि व्यक्ति कुछ अर्जित करता है और उसका लाभ यदि आम आदमी को नहीं मिल पा रहा, तो सब व्यर्थ है.

प्रेरणा ने अपने जीवन का अधिकांश समय मानव सेवा में व्यतीत किया है. प्रसिद्ध समाज सेवी बाबा आमटे के आश्रम से लेकर सिंधु ताई, डॉक्टर सुनीता कृष्णन और साईं बाबा ट्रस्ट में वे छात्र जीवन से ही लगातार अपनी सेवाएं दे रही हैं.

अपनी छात्रवृत्ति का एक बड़ा हिस्सा वे तुरंत हैदराबाद के एक ट्रस्ट को दान में दे चुकी हैं. स्ट्रीट चिल्ड्रेन से लेकर पशुओं के प्रति उनका प्रेम और समर्पण अनुकरणीय है. अपनी कमाई का अधिक से अधिक हिस्सा वे लोगों की भलाई में लगाती हैं.

प्रेरणा कहती हैं कि मनुष्य जीवन हमें इसलिये मिलता है, ताकि हम दूसरों की मदद कर सकें. हमारा जन्म सार्थक तभी कहलाता है, जब हम अपनी बुद्धि, विवेक, धन या बल की सहायता से दूसरों की मदद करें. एक साधारण व्यक्ति भी किसी की मदद अपनी बुद्धि के बल पर कैसे कर सकता है, ये बात प्रेरणा बखूबी जानती हैं. यह बात उनकी जीवन शैली में शामिल भी है.

 

परोपकार का उद्देश्य

कहते हैं शिक्षा का सही उद्देश्य व्यक्ति में सामाजिकता और परोपकार की भावना विकसित करना है. स्वयं पर अनावश्यक खर्च या बड़े घरों में रहना उन्हें पसंद नहीं. खास बात ये है कि उनके पति  उनका पूरा साथ देते हैं. 

युवा पीढ़ी को संदेश

प्रेरणा आज की युवा पीढ़ी को यही संदेश देती हैं कि वो हर समस्या का रचनात्मक समाधान खोजें. समाज को हमेशा कुछ लौटाना होता है और उसके विकास में योगदान ही सबसे बड़ा काम है.

तकनीक की अपने आप में बहुत अहमियत है और इसके लिए बड़े-बड़े संस्थानों की नहीं, बल्कि भारत में ही मौजूद अपनी तकनीक और रचनात्मकता पर भरोसा करना चाहिए. अगर समाज में कोई हमारी छोटी सी मदद से एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है, तो क्यों न हम इसे अपनी आदत बना लें.