कश्मीर की बेटी ने वैश्विक-मंच पर बढ़ाया देश का मान, राष्ट्रपति से मिला अवॉर्ड

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 14-03-2023
कश्मीर की बेटी ने वैश्विक-मंच पर बढ़ाया देश का मान, राष्ट्रपति से मिला अवॉर्ड
कश्मीर की बेटी ने वैश्विक-मंच पर बढ़ाया देश का मान, राष्ट्रपति से मिला अवॉर्ड

 

आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली 

सृष्टि कौल का जन्म कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ. परिवार मूल रूप से श्रीनगर का रहने वाला था. श्रीनगर के डाउन टाउन में हंसता-खेलता परिवार था. लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनीं कि सृष्टि का परिवार जम्मू आ गया. उनका जन्म और शुरुआती पढ़ाई-लिखाई भी यहीं हुई. सृष्टि ने जम्मू को ही अपना घर माना.

11वीं में एक टीचर के कहने पर सृष्टि ने मंच से बोलने की शुरुआत की तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. सृष्टि ब्रिक्स जैसे प्रभावशाली मंचों से भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं; कई बार यूथ पार्लियामेंट में हिस्सा लिया है. उन्हें समाज सेवा में उल्लेखनीय योगदान के लिए राष्ट्रपति के हाथों NSS नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है.

सृष्टि के परिवार को कभी मजबूरी में कश्मीर छोड़ना पड़ा था. लेकिन आज कश्मीर और जम्मू दोनों सृष्टि को अपना मानता है और गर्व करता है.

पहली डिबेट हारी थी; लेकिन उसके बाद कॉम्पिटिशन जीतने का सिलसिला शुरू हुआ

सृष्टि  11वीं कक्षा में डीबेट में हार गयीं थीं लेकिन दमदार तरीके से अपनी बात बोलना उन्होनें सीख लिया. सृष्टि अपनी इंग्लिश टीचर की तरह बोलना चाहती थी. लेकिन उसके बाद जीत का सिलसिला शुरू हुआ तो ब्रिक्स और प्रेसिडेंट अवॉर्ड पर जाकर भी नहीं थमा है.

 

पढ़ाई से ज्यादा मन एक्टिविटीज में लगा, पेंटिंग का भी शौक है

सृष्टि की पढ़ाई-लिखाई जम्मू से हुई. घर में पढ़ाई का माहौल भी था. पिताजी गवर्नमेंट सर्विस में थे, मां होम-मेकर थीं; दोनों अपनी-अपनी फील्ड में काफी अच्छा कर रहे थे. सृष्टि को माता पिता से प्रेरणा और प्रोत्साहन मिला.

सृष्टि के मुताबकि उनका मन पढ़ाई से ज्यादा एक्टिविटीज में लगता था. कॉम्पटीशंस में हिस्सा लेना उनको खूब भाता. पेंटिंग करना भी काफी पसंद है. सृष्टि  दो बार यूथ पार्लियामेंट में पार्टिसिपेट कर चुकी हैं . 

सृष्टि ने छठे ब्रिक्स यूथ समिट में भारत का प्रतिनिधित्व किया. इसका आयोजन रूस ने किया था. सृष्टि के मुताबिक वैश्विक मंच से अपने देश की महान संस्कृति और इतिहास के बारे में बोलना शानदार अनुभव रहा.

हाल ही में सृष्टि को जी-20 की एक मीटिंग में अपने राज्य के प्रतिनिधित्व का भी मौका मिल रहा है. सृष्टि ने केमिस्ट्री से MSc की थी, इसके बाद IIMC-दिल्ली से कम्युनिकेशन की पढ़ाई की. पढ़ाई के बाद वो पब्लिक रिलेशन इंडस्ट्री में काम करने लगी.

सृष्टि 2020 में राजपथ पर रिपब्लिक डे परेड में भी शामिल हुई. इसके लिए उनको ट्रेनिंग दी गई थी जो की एक महीने का कैंप था. जिसमें एक सख्त माहौल में ट्रेनिंग दी जाती है. क्या करना, क्या नहीं करना है; ये सब कुछ सिखाया जाता है. बोलने से लेकर बॉडी लैंग्वेज तक पर भी ध्यान देना होता है. सृष्टि के लिए इस परेड का अनुभव जिंदगी बदलने वाला रहा.

जिसने उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाया, सोचने का नजरिया बदला और उन्होनें यह सीखा और समझा कि देशभक्ति किसे कहते हैं और अपने आप को देश के प्रति कैसे समर्पित किया जाता है. 

राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए सरकार की तरफ से आया फोन तो डर गई थी

NSS नेशनल अवॉर्ड हासिल करने के लिए एक फाइल सब्मिट करनी होती है. अमूमन दो महीने में उसका रिजल्ट आ जाता है. लेकिन मेरे केस में साल भर तक कोई जवाब नहीं आया. मैं भी उसके बारे में भूल चुकी थी. जिंदगी आगे बढ़ रही थी.

एक दिन ऑफिस से आते हुए मैं मेट्रो में थी. तभी एक के बाद एक बहुत सारे फोन आने लगे, लेकिन नेटवर्क नहीं होने के कारण बात नहीं हो पा रही थी. ‘ट्रू-कॉलर’ पर कभी गवर्नमेंट तो कभी मिनिस्ट्री लिख कर आता था. मैं डर गई कि ये लोग मुझे इतना फोन क्यों कर रहे हैं? कहीं मुझसे कोई गलती तो नहीं हो गई है.

मैं मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर थी कि फिर कॉल आ गया. इस बार बात हुई तो पता चला मुझे NSS नेशनल अवार्ड के लिए सलेक्ट कर लिया गया है और मुझे ये पुरस्कार राष्ट्रपति के हाथों मिला. अवॉर्ड देते हुए राष्ट्रपति मैडम ने मुस्कुराकर ‘कांग्रेचुलेशन’ कहा तो ऐसा लगा मानो मुझे पूरी दुनिया की खुशी एक साथ मिल गई हो.

जैसे मुझे दिल्ली में जम्मू की याद आती है, मम्मी-पापा को ऐसे ही कश्मीर की याद सताती है

सृष्टि जम्मू में ही जन्मी और पली-बढ़ी. अब दिल्ली रहती हैं और मेरे मम्मी-पापा कश्मीरी पंडित हैं; उनका जन्म श्रीनगर हुआ. कई बार सोचती हूं कि उन्हें भी कश्मीर की याद उसी तरह आती होगी; जैसे मुझे जम्मू की आती है. खैर; मैं तो भाग्यशाली हूं कि जब चाहे जम्मू लौट सकती हूं; उनके पास वापस अपने घर जाने का ऑप्शन भी नहीं है.

मैं कई बार कश्मीर गई हूं. एक बार मम्मी-पापा मुझे श्रीनगर ले गए थे. डाउन टाउन इलाके में हमारा पुश्तैनी घर था. मैं अपने पुरखों की जगह देखना चाहती थी. लेकिन पापा बस बाहर से मुहल्ला दिखा कर लौटा लाए. शायद उनमें अपने उजड़े घर की तस्वीर देखने की हिम्मत नहीं थी.

कहने को हम ‘कश्मीरी पंडित’ हैं; लेकिन कश्मीर में अपनी जड़ें और अपने पुरखों का घर छूट चुका है. दुख इस बात का है कि अपने ही देश में अपने उजड़े घर का मलबा देखने को भी आंखें तरसती हैं. शायद यही हमारी नियति है. लेकिन क्या कभी वक्त बदलेगा? क्या मैं अपने पुरखों के घर में लौट पाऊंगी?

जम्मू के स्लम एरिया में सोशल वर्क करती थी, अब दिल्ली में करने का इरादा है

जम्मू में रहने के दौरान मैंने वहां के स्लम एरिया में लोगों के लिए काम किया. महिलाओं और बच्चों को बुरी स्थिति में देख मेरा मन कचोटता है. मुझे हमेशा लगता है कि इनके लिए कुछ करना चाहिए. मैं जो काम जम्मू में उनके लिए कर रही थी, वही यहां दिल्ली में भी करना चाहती हूं.

मैं चाहती हूं हर एक लड़की को पढ़ने का, अपनी मर्जी से जिंदगी जीने का हक मिले.

अपनी महिला साथियों को मैं यही कहना चाहूंगी कि आप चाहें जिंदगी के किसी मोड़ पर हों; आप सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं. आपको बस आगे बढ़ने और कुछ करने का हौसला दिखाना होगा.