हिजाब विवाद से शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक प्रथाओं पर बहस शुरू

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
हिजाब विवाद से शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक प्रथाओं पर बहस
हिजाब विवाद से शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक प्रथाओं पर बहस

 

के. अशोक / बेंगलुरू
 
कॉलेजों में यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनने के मुद्दे ने कर्नाटक में राज्य में शिक्षा प्रणाली को प्रभावित करने वाली धार्मिक प्रथाओं को लेकर एक बहस छेड़ दी है.यह मामला एक विवाद में भी बदल गया है. क्या हिजाब को यूनिफॉर्म का हिस्सा माना जा सकता है ?
 
सत्तारूढ़ भाजपा इस बात पर विचार कर रही है कि क्या कॉलेज के छात्राओं की यूनिफॉर्म के हिस्से के रूप में हिजाब को अनुमति देने पर निर्णय लिया जाए ? राज्य के शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने कक्षाओं में हिजाब पहनने का विरोध करते हुए कहा है कि सरकार जल्द ही इस मुद्दे पर फैसला लेगी.
 
इस मुद्दे पर विशेषज्ञों के साथ छात्र भी बंटे हुए हैं. जो लोग इसके पक्ष में हैं, उनका कहना है कि कक्षाओं में ड्रेस कोड में आस्था या धर्म का संकेत नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह छात्रों और शिक्षकों के बीच अवरोध पैदा करता है. हिजाब पहनने का समर्थन करने वालों का कहना है कि हिजाब को दुपट्टे की तरह लेना चाहिए. हिजाब का रंग काला है. यह धार्मिक प्रतीक नहीं हो सकता. इस्लाम की पहचान हरे रंग से की जाती है. हिजाब को शुद्धता के प्रतीक के रूप में माना जाना चाहिए.
 
राज्य के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील जिले उडुपी के गवर्नमेंट गर्ल्स प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज में छह लड़कियों को अनुमति देने से इनकार करने से विवाद खड़ा हो गया है. नागेश ने इसे एक राजनीतिक कदम बताया. सवाल किया कि क्या शिक्षा के केंद्र धार्मिक केंद्र बन जाने चाहिए?
 
इस बीच, छात्राओं ने हिजाब पहनकर कक्षाओं में जाने की अनुमति मिलने तक अपना विरोध जारी रखने का फैसला किया है.
 
 विरोध प्रदर्शन करने वाली छात्रा आलिया असदी ने कहा, "मैं हिजाब के मुद्दे का सामना कर रही हूं. हमें सिर्फ हिजाब पहनने के कारण कक्षा में नहीं जाने दिया गया. हालांकि यह हमारा मौलिक और संवैधानिक अधिकार है.
 
वे हमें अनुमति नहीं दे रहे हैं. हालांकि यह एक सरकारी कॉलेज है. बहुत भेदभाव है कॉलेज में. हम एक-दूसरे से उर्दू में बात नहीं कर सकते. कॉलेज में हम एक-दूसरे को सलाम नहीं कह सकते. यह मामला सांप्रदायिक हो गया है. हम इससे बहुत दुखी हैं. हम नहीं चाहते कि यह सांप्रदायिक हो जाए."
 
"कई राजनीतिक दल इसका फायदा उठा रहे हैं. हम सिर्फ बुनियादी मौलिक अधिकार मांग रहे हैं. मुझे नहीं पता कि हमें स्कार्फ के साथ अंदर जाना इतना कठिन क्यों है। हम बुर्का के साथ अनुमति नहीं मांग रहे हैं. "
 
वर्दी के साथ हिजाब पहनने पर कक्षाओं में प्रवेश से वंचित किए जाने पर कॉलेज के आठ छात्राएं अभी भी कॉलेज परिसर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
 
छात्र हिजाब से दूर रहने की मांगों को ठुकरा रहे हैं .अपने रुख पर अडिग हैं कि जब तक सरकार उन्हें हिजाब पहनने और कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं देती, तब तक वे कक्षाओं के बाहर बैठेंगे. विरोध जारी रखेंगे. उनका कहना है कि हिजाब पहनना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकार है.
 
बेंगलुरु सिटी यूनिवर्सिटी एकेडमिक काउंसिल के सदस्य और प्रिंसिपल विद्या संस्कार इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, कॉमर्स एंड मैनेजमेंट के सतीश एम बेजजिहली ने  कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को जाति, रंग, धर्म से रहित होना चाहिए. छात्र पढ़ाई के लिए स्कूल आते हैं. विचारों में मतभेद हो सकता है. व्यक्तियों के बीच मतभेद नहीं होना चाहिए.
 
हालांकि, मैसूर विश्वविद्यालय में मनासा गंगोत्री में कला संकाय के डीन प्रोफेसर मुजफ्फर असदी ने समझाया कि ड्रेस कोड शालीनता के बारे में है. हमें हिजाब पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए जैसे साड़ी, पंजाबी पोशाक की अनुमति है. हिजाब को एक हेडस्कार्फ के रूप में माना जा सकता है और यह वर्दी को नहीं छिपाएगा.