महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने की याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट का सुनवाई से इनकार

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 18-12-2023
Delhi High Court
Delhi High Court

 

नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने वाले महिला आरक्षण विधेयक, 2023 को तत्काल लागू करने का आग्रह किया गया था ताकि 2024 के लोकसभा चुनावों में भी उसका फायदा मिल सके.

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) चेतन शर्मा ने केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए अदालत को सूचित किया कि विधेयक एक अधिनियम बन गया है. उन्होंने कहा, “यह जनगणना के बाद की एक कवायद है. इसे अधिनियम के अंतर्गत शामिल किया गया है. इस पर संसद में बहस हो चुकी है...यह याचिका महज प्रचार के लिए दायर की गई है.''

याचिकाकर्ता ने अधिनियम या विधेयक की वैधता को चुनौती न देते हुए महिला आरक्षण को समयबद्ध तरीके से लागू करने की मांग की. उन्होंने कहा, ''मैं अधिनियम या विधेयक को चुनौती नहीं दे रहा हूं... भारत के इतिहास में पहली बार संसद ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया है. 75 साल से प्रतिनिधित्व नहीं मिला. वे आएं और कहें कि हम इसे समयबद्ध तरीके से कर सकते हैं. मैं किसी भी चीज़ को चुनौती नहीं दे रहा हूं. मैं सिर्फ यह कोशिश कर रहा हूं कि इसे समयबद्ध तरीके से किया जा सके. अन्यथा ऐसा होने वाला नहीं है.”

अदालत ने महिला आरक्षण से पहले परिसीमन की संसदीय शर्त पर गौर किया और प्रावधान की वैधता को चुनौती देने का सुझाव दिया. इसने सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले और याचिकाकर्ता को या तो इसे रद्द करने या ठोस आधार पेश करने की आवश्यकता पर जोर दिया.

जनहित याचिका वापस लेने के साथ, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने याचिकाकर्ता, वकील योगमाया एम.जी. को सुप्रीम कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी, जहां इसी तरह की याचिका पहले से ही लंबित है.

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने पिछले सप्ताह इसी मामले पर विचार करने से इनकार कर दिया था और कहा था कि प्रार्थनाएं एक जनहित याचिका के समान हैं और याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और एक नई जनहित याचिका दायर करने का सुझाव दिया था. 

 

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