आवाज द वाॅयस/ मुंबई
"हमें इंसाफ चाहिए, हमदर्दी नहीं!" इस पक्के इरादे के साथ, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (BMMA) ने मंगलवार कोमुंबईमें बहुविवाह यानी एक से ज़्यादा शादी करने की प्रथा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई। मुंबई मराठी पत्रकार संघ में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में‘बहुविवाह के जाल में फंसी 2500 भारतीय मुस्लिम महिलाओं की हक़ीक़त’(Lived Reality of 2500 Indian Muslim Women in Polygamous Marriages)नाम से एक रिपोर्ट जारी की गई। इस सर्वे में जो आंकड़े सामने आए हैं और पीड़ितों ने जो अपना दर्द बयां किया है, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 85% मुस्लिम महिलाएं चाहती हैं कि बहुविवाह की प्रथा को क़ानूनन रद्द कर दिया जाए। साथ ही, 87% महिलाओं ने मांग की है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 82, जो दूसरे पुरुषों को एक से ज़्यादा शादी करने पर मुजरिम मानती है, उसे मुस्लिम पुरुषों पर भी बराबर लागू किया जाए।
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पीड़ितों का दर्द: इसे सिर्फ़ क़ानून ही रोक सकता है
इस कॉन्फ्रेंस में मौजूद पीड़ित महिलाओं की आंखों से आंसू बह रहे थे। अपनी दुखभरी कहानी सुनाते हुएतस्लीमनाम की एक महिला का गला भर आया। उन्होंने कहा, "जब मैं तीसरी बार गर्भवती थी, तब मेरे पति ने मुझे ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से 'तीन तलाक़' दिया और घर से निकाल दिया। कुछ समय बाद उन्होंने मुझे वापस बुलाया। एक साल शांति से बीता, लेकिन उसके बाद फिर से मारपीट शुरू हो गई। मुझे 'पागल' बताकर मेरा उत्पीड़न किया गया। आख़िरकार मुझे घर छोड़ना पड़ा।"
दूसरी तरफ़, घरों में काम करके गुज़ारा करनेवालीहुस्नाने बहुत ही दर्द के साथ अपनी मांग रखी। उन्होंने कहा, "मेरे पति ने तलाक़ के झूठे काग़ज़ात का सहारा लेकर मुझे और मेरे तीन बच्चों को बेसहारा छोड़ दिया। मुझे लगता है कि ऐसा क़ानून होना चाहिए जो पुरुष के लिए पहली शादी के बाद दूसरी शादी करना नामुमकिन बना दे। जब तक पहली पत्नी और पति दोनों की रज़ामंदी न हो और पहली पत्नी के लिए महीने के ख़र्च का पक्का इंतज़ाम न हो, तब तक उसे दूसरी शादी की इजाज़त नहीं मिलनी चाहिए। एक औरत को पति की दूसरी पत्नी के साथ रहने पर मजबूर करना नाइंसाफ़ी है।"
सुधार की सख़्त ज़रूरत
कॉन्फ्रेंस की शुरुआत में सामाजिक कार्यकर्ताखातून शेखने विषय रखते हुए कहा, "मुस्लिम पारिवारिक क़ानून में सुधार की ज़रूरत बहुत पुरानी है। दूसरे समाज की महिलाओं की तरह ही भारतीय मुस्लिम महिलाओं को भी क़ानूनी सुरक्षा का हक़ है। BMMA ने बहुविवाह ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।"
धर्म के नाम पर नाइंसाफ़ी
स्टडी की बातों पर उंगली रखते हुए BMMA की कार्यकर्तानरगिसने ग़ुस्सा ज़ाहिर किया। उन्होंने कहा, "धर्म की अधूरी जानकारी रखने वाला एक आदमी कई महिलाओं पर ज़ुल्म कर रहा है। बदक़िस्मती से, पुलिस भी लाचारी दिखाती है। जब पीड़ित महिलाएं शिकायत करने जाती हैं, तो पुलिस कहती है कि आपके धर्म में इसकी इजाज़त है, हम क्या कर सकते हैं? इसीलिए क़ानून में बदलाव होना ज़रूरी है।"
संगठनों का आक्रामक रुख़
इस रिपोर्ट की लेखिका और BMMA की सह-संस्थापकज़किया सोमनने लैंगिक न्याय (Gender Justice) का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, "हमें यह क़ानून चाहिए क्योंकि स्त्री और पुरुष बराबर हैं। युद्ध के समय जब मौत का आंकड़ा ज़्यादा था, तब बहुविवाह एक ज़रूरत हो सकती थी, लेकिन आज के ज़माने में इसकी कोई जगह नहीं है। आंकड़े देखें तो हिंदुओं में भी बहुविवाह का प्रमाण लगभग उतना ही है, लेकिन हिंदू महिलाओं के पास क़ानून का सहारा है, जो मुस्लिम महिलाओं के पास नहीं है। क़ुरान में भी दूसरी शादी के लिए बहुत सख़्त शर्तें हैं, जिनका पालन नहीं किया जाता।"
'इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी' (IMSD) केजावेद आनंदने अपनी भूमिका साफ़ करते हुए कहा, "हम हमेशा से बहुविवाह के ख़िलाफ़ हैं। यह एक सामाजिक बीमारी है और 'क़ानून' ही इसका एकमात्र इलाज है।"
इस मौक़े पर IMSD केफ़िरोज़ मीठीबोरवालाने इस स्टडी की अहमियत बताते हुए कहा, "यह एक ऐतिहासिक स्टडी है। सबसे अहम बात यह है कि यह मांग किसी बाहरी गुट ने नहीं, बल्कि ख़ुद समाज की महिलाओं ने की है। यह पितृसत्तात्मक सोच का सवाल है और इससे पता चलता है कि 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' और आम मुस्लिम महिलाओं के बीच कितनी बड़ी खाई है।"
मुस्लिम सत्यशोधक मंडलके अध्यक्षडॉ. शमसुद्दीन तांबोळीने इस स्टडी के बारे में कहा, "इस रिपोर्ट ने समाज को साफ़ आईना दिखाया है। मुस्लिम सत्यशोधक मंडल पांच दशकों से यह लड़ाई लड़ रहा है। इसलिए मुस्लिम महिलाओं की इस मांग को हमारा पूरा समर्थन है।"

रिपोर्ट के चौंकाने वाले नतीजे:
बच्चे भी पिस रहे हैं
इस स्टडी में न सिर्फ़ महिलाओं, बल्कि बहुविवाह की वजह से बच्चों पर होने वाले असर पर भी ध्यान दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है, "पहली पत्नी के बच्चों में ग़ुस्सा और धोखे की भावना ज़्यादा होती है। उन्हें होने वाली मानसिक तकलीफ़ बहुत गहरी होती है।"