Ramchandra gets the credit for making Urdu the language of science in the century of Mir.
मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली
मीर तकी मीर की शताब्दी के चार दिवसीय समारोह के तीसरे दिन इंडिया इंटरनेशनल में "दिल्ली का बदलता मंजर नामा, दिल्ली कॉलेज और मास्टर राम चंद्र (द चेंजिंग लैंडस्केप ऑफ दिल्ली: दिल्ली कॉलेज एंड मास्टर राम चंद्र)" विषय पर बोलते हुए, प्रसिद्ध इतिहासकार सैयद इरफान हबीब ने कहा कि प्रोफेसर राम चंद्र ने अन्य भाषाओं के साथ-साथ उर्दू भाषा की जो सेवा की है, उसे इतिहास हमेशा याद रखेगा.
उन्होंने उर्दू भाषा को विज्ञान की भाषा बनाया. राम चंद्र ने विज्ञान की पुस्तकों को उर्दू विद्वान वर्ग तक सरल रूप में अनुवाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इरफान हबीब ने आगे कहा उन्होंने कहा कि सर सैयद अहमद खान से पहले मास्टर राम चंद्र ने वैज्ञानिक जागरूकता के लिए प्रयास किया था.
इस सिलसिले में उन्होंने मास्टर राम चंद्र द्वारा प्रकाशित पत्रिका फवाद-उल-नाजरीन का जिक्र किया, जो विज्ञान की पत्रिका थी.
अनुवाद करके लोगों की ज्ञान की प्यास बुझाने का काम किया
वहीं, मास्टर राम चंद्र के पोते लेफ्टिनेंट कर्नल रिचर्ड मॉरिस ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके दादा ने उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में अनुवाद करके लोगों की ज्ञान की प्यास बुझाने का काम किया था. रिचर्ड मॉरिस मास्टर राम चन्द्र की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर विस्तार से बात की.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जुड़े विज्ञान के इतिहास के प्रोफेसर धरुवा रैना ने मास्टर रामचंद्र की विज्ञान संबंधी सेवाओं का उल्लेख किया और विज्ञान के इतिहास में उनका स्थान और रैंक निर्धारित करने का प्रयास किया.
कौन थे रामचंद्र?
रामचंद्र का पूरा नाम रामचंद्र ला है उनका जन्म 1821 में पानीपत में सुंदर लाल के यहां हुआ. पिता करनाल में नायब तहसीलदार थे. पढ़ाई के दौरान उन्होंने गणित, विज्ञान, अरबी, फारसी और अंग्रेजी में पकड़ हासिल की.
दिल्ली कॉलेज में अध्यापक की नौकरी की. उन्होंने दो उर्दू पत्रिकाएं फवायदुन्नाजिरीन और मुहिब्ब ए हिंद जारी किया था. इसके अलावा उन्होंने साइंस की किताबों का उर्दू में अनुवाद किया था जिसके उस वक्त लोगों को पढ़ाई जाती थीं. उनका देहांत 1880 में हुआ.
वहीं, तीसरे सत्र का शीर्षक था 'मैंने इन दोस्तों को अब दिल्ली में नहीं देखा'. क्रांति और साहित्य को लेकर पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के नाटक 'बाबर के वंशज' के दार्शनिक रुख पर चर्चा हुई. इस सत्र की मेजबानी सैयद सैफ महमूद ने की. यह सत्र प्रश्नोत्तरी आधारित था. सवाल सैफ महमूद ने और जवाब एम. सईद आलम ने दिए.
उर्दू साहित्य का विकास नहीं हुआ?
सईद आलम ने इस नाटक की महत्व बताते हुए कहा कि इस नाटक को जल्द से जल्द मंच पर पेश करना चाहिए. बातचीत के दौरान सलमान खुर्शीद ने एक अहम सवाल उठाया कि मुगल साम्राज्य के पतन, 1857 के युद्ध, भारत के विभाजन, आपातकाल और 1984 के दंगों के कारण अच्छा और गुणवत्तापूर्ण साहित्य अस्तित्व में आया, लेकिन क्या है? क्या कारण है कि उसके बाद उर्दू साहित्य का विकास नहीं हुआ? मैं ऐसी रचनाएँ लेकर नहीं आया जो उपर्युक्त घटनाओं के बाद अस्तित्व में आईं.
प्रोफेसर राम चंद्र की भूमिका:
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इरफान हबीब ने कहा कि राम चंद्र ने विज्ञान की पुस्तकों को उर्दू में अनुवाद करके लोगों को विज्ञान की जानकारी उपलब्ध कराई.
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उन्होंने सर सैयद अहमद खान से पहले वैज्ञानिक जागरूकता के लिए प्रयास किया.
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उन्होंने उर्दू पत्रिका "फवाद-उल-नाजरीन" प्रकाशित की जो विज्ञान की पत्रिका थी.
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अन्य वक्ताओं के विचार:
मास्टर राम चंद्र के पोते लेफ्टिनेंट कर्नल रिचर्ड मॉरिस ने कहा कि उनके दादा ने उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में अनुवाद करके लोगों की ज्ञान की प्यास बुझाने का काम किया.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जुड़े विज्ञान के इतिहास के प्रोफेसर धरुवा रैना ने मास्टर रामचंद्र की विज्ञान संबंधी सेवाओं का उल्लेख किया और विज्ञान के इतिहास में उनका स्थान निर्धारित करने का प्रयास किया.
तीसरे सत्र का विषय:
तीसरे सत्र का शीर्षक था "मैंने इन दोस्तों को अब दिल्ली में नहीं देखा"। इस सत्र में क्रांति और साहित्य को लेकर पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के नाटक "बाबर के वंशज" के दार्शनिक रुख पर चर्चा हुई। सैयद सैफ महमूद ने इस सत्र की मेजबानी की.
सलमान खुर्शीद का प्रश्न:
सलमान खुर्शीद ने एक अहम सवाल उठाया कि मुगल साम्राज्य के पतन, 1857 के युद्ध, भारत के विभाजन, आपातकाल और 1984 के दंगों के कारण अच्छा और गुणवत्तापूर्ण साहित्य अस्तित्व में आया, लेकिन क्या है? क्या कारण है कि उसके बाद उर्दू साहित्य का विकास नहीं हुआ?
निष्कर्ष:
मीर तकी मीर शताब्दी समारोह का तीसरा दिन उर्दू भाषा और साहित्य के विकास में प्रोफेसर राम चंद्र की भूमिका पर केंद्रित रहा.सलमान खुर्शीद का प्रश्न उर्दू साहित्य के भविष्य के लिए चिंता का विषय है और इस पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है.
Additional Information:
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मीर तकी मीर: उर्दू के प्रसिद्ध शायर जिन्हें "उर्दू ग़ज़ल के जनक" के रूप में जाना जाता है.
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इंडिया इंटरनेशनल सेंटर: नई दिल्ली में स्थित एक सांस्कृतिक संस्थान.
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सैयद इरफान हबीब: प्रसिद्ध इतिहासकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर.
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प्रोफेसर राम चंद्र: 19वीं शताब्दी के विद्वान जिन्होंने उर्दू भाषा और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया.