अर्सला खान/नई दिल्ली
लाल गुलाब सिर्फ प्रेम और सुंदरता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह एक महकता हुआ व्यापार भी है. भारत में गुलाब से बनने वाला इत्र (अत्तर) देश और दुनिया में प्रसिद्ध है. इसकी खशबू ना केवल दिलों को लुभाती है, बल्कि यह लोगों की रोज़ी-रोटी का भी बड़ा जरिया है.
पूरी दुनिया में दर्जनों मुस्लिम कारोबारी ऐसे हैं, जिनकी इत्र के व्यापार से जिंदगी बदल गई. इसमें (इत्र किंग) मौलाना बदरुद्दीन अजमल का नाम भी शामिल है. आइए जानते हैं कि लाल गुलाब से इत्र कैसे बनता है, यह कहां-कहां तैयार होता है और कौन-कौन से मशहूर इत्र इसके नाम से जुड़े हैं.
कैसे बनता है इत्र?
लाल गुलाब की पंखुड़ियों से इत्र निकालने की पारंपरिक विधि को 'हाइड्रो डिस्टिलेशन' कहते हैं. इसमें गुलाब की पंखुड़ियों को पानी के साथ बड़े ताम्बे के भगोनों (देग) में गर्म किया जाता है. भाप को एक ट्यूब के माध्यम से एक बंद बर्तन में भेजा जाता है, जहां वह ठंडी होकर तेल में बदलती है — यही होता है गुलाब का इत्र.
कहां बनता है गुलाब का इत्र?
भारत में उत्तर प्रदेश के कन्नौज को "इत्र की राजधानी" (Perfume Capital of India) कहा जाता है. यहां सदियों से गुलाब सहित कई फूलों से इत्र तैयार किया जाता है. इसके अलावा कांधला (उत्तर प्रदेश) – गुलाब की खेती के साथ-साथ इत्र उत्पादन का छोटा केंद्र है. जयपुर और पुष्कर (राजस्थान) – सीमित मात्रा में गुलाब से इत्र और गुलाब जल का निर्माण होता है. बरेली, इटावा, कन्नोज और हाथरस – इत्र उद्योग में सहयोगी भूमिका निभाते हैं.
गुलाब से बनने वाले कुछ प्रसिद्ध इत्र
गुलाब अत्तर (Rose Attar) – शुद्ध गुलाब से बना पारंपरिक इत्र.
रुह गुलाब (Ruh Gulab) – सबसे शुद्ध और महंगा इत्र, जो सीमित मात्रा में तैयार होता है.
मशक-ए-गुलाब (Musk-e-Gulab) – गुलाब की महक के साथ मस्क की खुशबू वाला मिश्रित इत्र.
गुलाब ओउध (Rose Oud) – गुलाब और अगर की लकड़ी (oudh) का संयोजन, विदेशों में बेहद लोकप्रिय.
गुलाब जल आधारित बॉडी मिस्ट और डियो – हल्की महक के लिए आधुनिक विकल्प.
व्यापारिक दृष्टि से लाभकारी
एक एकड़ में गुलाब की खेती से औसतन 15 से 20 क्विंटल फूल मिल सकते हैं. 10 किलो गुलाब की पंखुड़ियों से लगभग 1 लीटर इत्र तैयार होता है. शुद्ध गुलाब अत्तर की कीमत ₹10,000 से ₹50,000 प्रति लीटर तक हो सकती है. खाड़ी देशों (UAE, सऊदी अरब), यूरोप और अमेरिका में भारतीय गुलाब इत्र की भारी मांग है. प्राकृतिक इत्र की तरफ लोगों का रुझान बढ़ने से इसका भविष्य उज्ज्वल है.
लाल गुलाब सिर्फ बाग-बगीचों की शोभा नहीं, बल्कि खुशबू का खजाना भी है. इसकी खेती से लेकर इत्र निर्माण तक का सफर एक समृद्ध परंपरा और आजीविका का प्रतीक है. कन्नौज की गलियों से लेकर दुबई के शो-रूम्स तक, लाल गुलाब की महक भारत की खुशबू बन चुकी है.
इत्र के बादशाह की कैसे बदली किस्मत
मौलाना बदरुद्दीन अजमल न केवल एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और सांसद हैं, बल्कि उन्हें "अत्तर किंग" (Attar King) के रूप में भी जाना जाता है. यह उपाधि उन्हें उनके पारंपरिक इत्र (अत्तर) के व्यापार में असाधारण सफलता के कारण दी गई है. वे "अजमल परफ्यूम्स" के संस्थापक परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिसकी गिनती आज विश्व के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित इत्र ब्रांडों में होती है.
मौलाना अजमल के पिता हकीम अजमल अली ने 1950 के दशक में भारत से दुबई जाकर इत्र के पारंपरिक कारोबार की शुरुआत की थी. शुरुआती दौर में उन्होंने भारत से प्राकृतिक सुगंधित तेल (essential oils) ले जाकर मिडिल ईस्ट के बाज़ार में बेचना शुरू किया. इतना ही नहीं पूरे देश में कई मुस्लिम इत्र व्यापारी भी हैं, जिन्होंगे इत्र के व्यारपार से ही अपनी जिंदगी बदली है. दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, अहमदाबाद जैसे महानगरों में दर्जनों मुस्लिम समुदाय हैं जो इत्र का व्यापार करते हैं.