आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली/सना/कोझिकोड
यमन में फांसी की सजा का सामना कर रहीं केरल की नर्स निमिषा प्रिया को आख़िरकार जीवनदान मिल गया है. 2020 में यमनी नागरिक और अपने बिजनेस पार्टनर तलाल अब्दो महदी की हत्या के आरोप में दोषी ठहराई गईं निमिषा की फांसी की सजा, बहुपक्षीय धार्मिक और कूटनीतिक प्रयासों के बाद रद्द कर दी गई है.
गल्फ न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालाँकि भारत सरकार की ओर से अब तक आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन भारतीय ग्रैंड मुफ़्ती शेख कंथापुरम ए.पी. अबूबकर मुसलियार के कार्यालय, गल्फ न्यूज़, और यमनी प्रशासनिक सूत्रों ने इस खबर की पुष्टि की है.
मामला बेहद गंभीर था—2023 में निमिषा की अंतिम अपील खारिज हो चुकी थी और यमन की अदालत ने उन्हें 16 जुलाई 2025 को फांसी देने का आदेश सुनाया था. लेकिन इंसानियत, धार्मिक संवाद और संवेदनशील कूटनीति ने इस निर्णायक क्षण को एक चमत्कारी मोड़ दे दिया.
निर्णायक भूमिका निभाई भारत के ग्रैंड मुफ़्ती शेख अबूबकर अहमद ने, जिन्होंने यमन के प्रख्यात सूफ़ी धर्मगुरु हबीब उमर बिन हफीज़ से संपर्क कर इस मामले को धार्मिक स्तर पर हल करने की पहल की.
यह पहल जल्द ही यमन की राजधानी सना में एक उच्च स्तरीय बैठक का रूप ले चुकी, जिसमें मृतक के परिवार, यमन के वरिष्ठ न्यायाधीश, सरकारी प्रतिनिधि और धार्मिक नेता मौजूद थे. इस बैठक के बाद, तलाल के परिजनों ने क्षमादान (दीया/ब्लड मनी) पर विचार करने की सहमति दी और फांसी की तारीख को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया.
इस मानवीय सफलता में अकेले ग्रैंड मुफ़्ती ही नहीं, बल्कि कई अन्य लोगों की भी अहम भूमिका रही. धर्मप्रचारक डॉ. के.ए. पॉल, भारतीय विदेश मंत्रालय, यमन के न्यायाधीश रिज़वान अहमद अल-वजरी, और केरल के विधायक चांडी ओमन सहित अनेक हितधारकों ने मिलकर प्रयास किए.
डॉ. के.ए. पॉल ने यमन से जारी एक वीडियो में कहा कि निमिषा की सजा केवल स्थगित नहीं, बल्कि पूरी तरह रद्द कर दी गई है, और उनकी भारत वापसी की प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है, जिसमें ओमान, मिस्र और तुर्की जैसे देशों से लॉजिस्टिक समर्थन मिल सकता है.
भारत सरकार भले ही फिलहाल इस मामले में सतर्क बयानबाज़ी कर रही हो, लेकिन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने यह स्वीकार किया है कि सरकार ने कानूनी सहायता, कांसुलर संपर्क और यमनी अधिकारियों के साथ संवाद लगातार बनाए रखा था.
उन्होंने कहा, "हमने बातचीत का माहौल तैयार किया, लेकिन मामला अत्यंत संवेदनशील था."इस मामले में शेख अबूबकर अहमद का हस्तक्षेप केवल एक धार्मिक पहल नहीं थी, बल्कि यह उस समय का जीवंत उदाहरण बन गया जब एक मुस्लिम धर्मगुरु ने एक हिंदू महिला की जान बचाने के लिए अपनी प्रतिष्ठा और प्रभाव दोनों का इस्तेमाल किया.
यह घटना उन दुर्लभ अवसरों में से एक है, जब धर्म, जो अक्सर विवादों में घिरा रहता है, सीधी मानवीय सेवा का माध्यम बन गया.शेख अबूबकर अहमद कोई साधारण धार्मिक नेता नहीं हैं.
वे भारत के ग्रैंड मुफ़्ती हैं, सूफ़ी विचारधारा के अनुयायी हैं और सेवा को धर्म का सबसे बड़ा रूप मानते हैं. 1978 में केरल में जामिया मरकज़ की स्थापना के बाद से उन्होंने 12,000 से अधिक स्कूल, 600 से अधिक कॉलेज, 18,000 अनाथ बच्चों के लिए आवास, 70,000+ पेयजल परियोजनाएं, 4,000+ स्वास्थ्य केंद्र और 1.35 लाख लोगों को रोज़गार जैसी उपलब्धियाँ हासिल की हैं.
निमिषा प्रिया की फांसी टलना, या शायद पूरी तरह रद्द हो जाना, केवल एक महिला की ज़िंदगी बचने की कहानी नहीं है. यह उस बिंदु का प्रतीक है जहाँ कूटनीति, धर्म और संवेदना का संगम किसी भी राज्यव्यवस्था से ज़्यादा असरदार साबित होता है.
यह घटना भारत और यमन के रिश्तों को एक नई दिशा दे सकती है, जहाँ पारंपरिक सरकारी चैनलों से इतर, जन-जन की भावनाएं और धार्मिक संवाद भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.
जब राजनीति चुप हो जाती है, तब भी धर्म और सेवा के रास्ते इंसान को बचाया जा सकता है—यह घटना उसी सच्चाई की गवाही है.