ग़ज़ा त्रासदी पर भारतीय मुस्लिम रहनुमा बोले - अब खामोश रहना अपराध होगा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 29-07-2025
Indian Muslim leader said on Gaza tragedy - now being silent will be a crime
Indian Muslim leader said on Gaza tragedy - now being silent will be a crime

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

देश के प्रमुख मुस्लिम संगठनों, धर्मगुरुओं और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक महत्वपूर्ण संयुक्त संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया. इस अवसर पर वक्ताओं ने ग़ज़ा में जारी अभूतपूर्व मानवीय संकट पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए भारत सरकार से इस मुद्दे पर नैतिक, निर्णायक और प्रभावी हस्तक्षेप की अपील की.

प्रेस वार्ता की शुरुआत ग़ज़ा में हो रही तबाही और त्रासदी की दिल दहला देने वाली तस्वीरों और रिपोर्टों को प्रस्तुत करते हुए की गई. वक्ताओं ने साफ़ शब्दों में कहा कि यह समय मौन रहने का नहीं, बल्कि नैतिक नेतृत्व दिखाने का है.

उन्होंने ग़ज़ा को “जनसंहार के मुहाने पर खड़ा भूखा और तबाह इलाका” बताते हुए कहा कि वहां 20 लाख से अधिक लोग जीवन के बुनियादी साधनों से वंचित हैं. नवजात शिशु ईंधन की कमी के कारण इनक्यूबेटरों में दम तोड़ रहे हैं, डॉक्टर बिना बेहोशी की दवाओं के ऑपरेशन करने को मजबूर हैं, मोहल्ले और स्कूल ध्वस्त हो चुके हैं.

वक्ताओं का कहना था कि यह आत्मरक्षा नहीं, बल्कि सुनियोजित विनाश है, और भारत जैसे देश को इस स्थिति में तटस्थ रहना शोभा नहीं देता.भारत की भूमिका पर बोलते हुए वक्ताओं ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत द्वारा युद्धविराम की अपील और फ़िलिस्तीन के लिए स्वतंत्र राज्य की पुष्टि का स्वागत किया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि अब समय सिर्फ़ बयानों का नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाइयों का है.

उन्होंने भारत सरकार से मांग की कि ग़ज़ा में नागरिकों पर हो रहे हमलों की कड़ी निंदा की जाए, अस्पतालों और स्कूलों पर बमबारी को युद्ध अपराध घोषित किया जाए, इज़राइल के साथ सभी रक्षा और रणनीतिक सहयोग को अस्थायी रूप से स्थगित किया जाए और मानवीय गलियारे की स्थापना के लिए वैश्विक दबाव बनाया जाए..

वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि ग़ज़ा का मामला केवल मुसलमानों का नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत का है. उन्होंने कहा कि यह न्याय, अंतरराष्ट्रीय कानून और भारतीय संविधान में निहित नैतिक मूल्यों की रक्षा का प्रश्न है। जब दुनिया के सामने बच्चों की लाशें मलबे से निकल रही हों, तब तटस्थ रहना और चुप रहना कायरता होगी.

प्रेस वार्ता में उन घटनाओं पर भी चिंता जताई गई जहाँ फ़िलिस्तीन के समर्थन को अपराध की तरह देखा गया. वक्ताओं ने कहा कि फ़िलिस्तीन का समर्थन कोई अतिवाद नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण और विवेकशील रुख है.

उन्होंने ऐसी लोकतांत्रिक अभिव्यक्तियों को दबाने की कोशिशों की आलोचना की और कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में नागरिकों को भयमुक्त होकर अपने विचार रखने की पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए.

संयुक्त बयान में मुस्लिम बहुल देशों से भी अपील की गई कि वे इज़राइल के साथ अपने कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को समाप्त करें और ग़ज़ा में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ़ एकजुट होकर वैश्विक मंच पर दबाव बनाएं.

प्रेस सम्मेलन के अंत में भारतीय नागरिकों से भी अपील की गई कि वे ग़ज़ा के समर्थन में प्रदर्शन, जन-जागरूकता अभियानों, अंतर्धार्मिक संवादों और रचनात्मक प्रतिरोध जैसे लोकतांत्रिक तरीकों से आवाज़ उठाएं. वक्ताओं ने कहा कि ग़ज़ा को भूलना मानवता के साथ धोखा होगा और यह भारत की नैतिक परीक्षा का क्षण है—ऐसा क्षण जिसे इतिहास याद रखेगा.

इस संवाददाता सम्मेलन को जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के अमीर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी, मर्कज़ी जमीयत अहल-ए-हदीस के अमीर मौलाना अली असगर इमाम महदी, जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी, मुफ़्ती अब्दुर्रज़्ज़ाक, जमाअत के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. ज़फ़रुल इस्लाम ख़ान, SIO ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अब्दुल हफीज और प्रसिद्ध शिया धर्मगुरु मौलाना मोहसिन तक़वी सहित कई वरिष्ठ मुस्लिम रहनुमाओं ने संबोधित किया.