'मदरसा परिचय' की पहल: धार्मिक सद्भाव बढ़ाने का अनोखा प्रयास

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 24-08-2024
Madrasa Parichay is a unique initiative: See, this is how a real madrasa looks like
Madrasa Parichay is a unique initiative: See, this is how a real madrasa looks like

 

प्रज्ञा शिंदे

हमारा भारत एक बहुधर्मी देश है. इसलिए भारत में हर व्यक्ति के मन में दूसरे धर्मों को लेकर जिज्ञासा और कभी-कभी संदेह भी होता है. ज्यादातर लोगों को मस्जिदों और मदरसों को लेकर काफी उत्सुकता रहती है. 
 
 
मदरसा ने कहा कि हमारे सामने वही नकारात्मक खबरें आती हैं जो हमने पढ़ी और देखी हैं. इस बात को लेकर अक्सर अज्ञानता रहती है. इसी अज्ञानता के कारण मदरसे और मस्जिद के बारे में कई गलतफहमियां भी पैदा हो जाती हैं. इसलिए अज्ञानता कब भय और घृणा में बदल जाती है, इसका स्वयं व्यक्ति को भी पता नहीं चलता. 
 
इसी बात को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र के मुस्लिम समुदाय ने एक अनोखी पहल की है. अपने धार्मिक स्थलों को दूसरे धर्मों से परिचित कराने के लिए, भारत में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय लंबे समय से गुन्या गोविंदा मनाते आ रहे हैं.
 
सामान्यतः यह सहजीवन शांतिपूर्ण रहा है. एक-दूसरे के त्योहारों को मिल-जुलकर मनाना भारतीय परंपरा है. लेकिन इन दोनों समुदायों को एक-दूसरे के धर्म और धार्मिक स्थलों के बारे में बहुत कम या बिल्कुल भी जानकारी नहीं है.
 
साथ ही इसमें पूर्वाग्रह भी जुड़ जाते हैं. इससे बहुसंख्यकों के मन में कई शंकाएं पैदा होती हैं, इसलिए महाराष्ट्र में मुस्लिम पूजा स्थलों के बारे में बहुसंख्यकों के मन में मौजूद शंकाओं को दूर करने के लिए कई गतिविधियां लागू की जा रही हैं.
 
 
मस्जिद परिचय ऐसी ही एक पहल है. इसी तर्ज पर हाल ही में पुणे में एक पहल 'मदरसा का परिचय' लागू की गई. 'मदरसा' का अर्थ है ज्ञान का केंद्र जो इस्लाम में धार्मिक शिक्षा प्रदान करता है.
 
लेकिन जब यह शब्द बोला जाता है, तब भी अधिकांश लोगों को नकारात्मक समाचार और घटनाएं याद रहती हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाल ही में पुणे के मदरसा 'फैजुल उलूम' में 'मदरसा परिचय' नाम से एक अनोखी गतिविधि का आयोजन किया गया.
 
आयोजकों ने इस गतिविधि के माध्यम से मदरसा क्या है और वास्तव में यहां क्या किया जाता है जैसे सभी सवालों के जवाब देने की कोशिश की. 
 
इस गतिविधि में गैर-मुस्लिम मंडलियाँ महत्वपूर्ण रूप से शामिल थीं. इस कार्यक्रम में 'आवाज़ द वॉयस मराठी' ने भी हिस्सा लिया और इस कार्यक्रम के जरिए ये जानने की कोशिश की कि मदरसों में असल में क्या होता है.
 
यह कार्यक्रम हाल ही में पुणे के दापोडी में 'मदरसा फैजुल उलूम' में आयोजित किया गया था. चूंकि बाहर भारी बारिश हो रही थी, इसलिए आयोजक कार्यक्रम की प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित थे. लेकिन कार्यक्रम में सभी धर्मों के नागरिकों की अच्छी-खासी उपस्थिति थी.
 
अंदर से मदरसा ऐसा है
 
परिचय कार्यक्रम की शुरुआत मदरसा भ्रमण से हुई. जैसे ही फैजुल उलूम में दाखिल हुआ तो दाहिनी ओर वजूखाना था. वजूखाना हाथ-पैर धोने और तरोताजा होने की जगह है. इसके बगल में भव्य हॉल था. यहां इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.
 
यहां दिन में पांच बार नमाज पढ़ी जाती है. हॉल के बाईं ओर बच्चों के रहने और खाने की सुविधाओं के लिए दो मंजिला इमारत थी. जहां आठ वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा एवं आवास उपलब्ध कराया जाता है. और ये पूरा इलाका मदरसा है.
 
 
मदरसों में आख़िर क्या पढ़ाया जाता है?
 
मदरसा एक शैक्षणिक स्थान है जहाँ बच्चों को भी ठहराया जाता है. मस्जिद प्रार्थना का स्थान है. इस मौके पर आयोजकों ने मदरसों में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों व शैक्षणिक कार्यक्रमों की जानकारी दी. एक छात्र ने दिन में पांच बार दी जाने वाली अज़ान का प्रदर्शन किया. अज़ान प्रार्थना के लिए एक आह्वान है. अरबी में अज़ान के बाद महताब शेख ने मराठी अनुवाद दिया. मराठी में अज़ान का मतलब जानने के बाद सभी की अज़ान को लेकर गलतफहमी एक पल में दूर हो गई.
 
इसके बाद आयोजकों ने उपस्थित लोगों को मदरसे की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी. इस मौके पर उपस्थित लोगों ने आयोजकों से 'मदरसा' की अवधारणा और यहां चल रही विभिन्न चीजों के बारे में खुलकर सवाल पूछे. आयोजकों ने भी इन सवालों का विस्तार से जवाब देकर उनकी शंकाओं को दूर करने की कोशिश की.
 
मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों का शेड्यूल क्या है?
 
इस मौके पर 'आवाज़ मराठी' ने इस मदरसे के बच्चों से बातचीत की. विद्यार्थियों ने भी सहज प्रतिक्रिया दी. विद्यार्थियों ने अपनी दिनचर्या के बारे में जानकारी दी. मदरसे के छात्रों का दिन सुबह जल्दी शुरू होता है. फज्र की नमाज सुबह जल्दी पढ़ी जाती है.
 
फिर पढ़ाई और नाश्ता होता है. फिर सुबह 8 बजे से 2 बजे तक स्कूल होता है. उसके तुरंत बाद तीन बजे से अरबी की पढ़ाई शुरू हो जाती है. यह शाम 5 बजे तक जारी रहता है. फिर अस्र की नमाज़ होती है. उसके बाद सूरज डूबने तक का ब्रेक होता है यानी शाम की नमाज़ के बाद फिर से दो घंटे पढ़ाई करते हैं.
 
फिर ईशा की नमाज अदा की जाती है और उसके बाद सभी लोग एक साथ खाना खाते हैं जिसके बाद सभी छात्र करीब 11 बजे तक पढ़ाई करते हैं और सो जाते हैं. सुबह उठने से लेकर सब कुछ, यहां तक ​​कि वामकुक्षी भी, तय समय पर था.
 
इस मौके पर उन्होंने छात्रों से बात करते हुए 'आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं?' सवाल का भी दिल खोलकर जवाब दिया. सच कहूँ तो सभी के उत्तर बहुत अप्रत्याशित थे. ड्योढ़ी में पैदा हुई गलतफहमियाँ प्रतिशोधात्मक थीं. 
 
कुछ छात्र 'हाफिज-ए-कुरान' बनना चाहते हैं. हाफ़िज़-ए-कुरान का अर्थ है वह व्यक्ति जिसे संपूर्ण कुरान का पाठ करना आता हो. लेकिन उनमें से कई आधुनिक पेशे को स्वीकार करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि कोई डॉक्टर बनना चाहता है, कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता है तो कोई आईएएस और आईपीएस अधिकारी बनना चाहता है.
 
मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की पृष्ठभूमि क्या है?
 
मदरसों में भर्ती होने वाले बच्चे संभवतः गरीब परिवारों से आते हैं. जिन बच्चों के घर की परिस्थितियाँ शिक्षा या भविष्य के लिए उपयुक्त नहीं होतीं, वे मदरसे में पढ़ने आते हैं. इन बच्चों को यहां धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक स्कूली शिक्षा भी दी जाती है. इस स्थान पर छात्रों के लिए निःशुल्क आवास की भी व्यवस्था की गई है.
 
कारी इकबाल कासमी मदरसा फैजुल उलूम के प्रधानाचार्य हैं. उन्होंने 'आवाज़ मराठी' को मदरसे की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी. वह कहते हैं, ''हम इस बात पर जोर देते हैं कि मदरसे में आने वाले बच्चों की उम्र आठ साल और उससे अधिक होनी चाहिए. ताकि वे अपना काम खुद कर सकें. उनकी 12वीं तक की शिक्षा इसी मदरसे में पूरी हुई.”
 
वह आगे कहते हैं, "यहां न सिर्फ कुरान और हदीस की धार्मिक शिक्षा दी जाती है, बल्कि उर्दू के साथ-साथ मराठी, अंग्रेजी, हिंदी जैसी भाषाओं और आधुनिक स्कूली शिक्षा भी दी जाती है."
 
 
'मदरसा परिचय' पहल में भाग लेने वाले नागरिकों की क्या प्रतिक्रियाएँ थीं?
 
'मदरसा प्रसाद' कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों के लोगों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही. उनमें से एक थे धम्मचारी ज्ञानराजा. उन्होंने 'नमो बुद्धाय, जय भीम' कहकर बात शुरू की. दिलचस्प बात यह है कि ज्ञानराज ने परोपकारियों से ऐसे मदरसों की मदद करने का भी आग्रह किया.
 
'आवाज़ मराठी' से बात करते हुए वह कहते हैं, ''हम इस कार्यक्रम में आए और महसूस किया कि मदरसों में मुख्य रूप से गरीब, बेसहारा और जरूरतमंद छात्र धार्मिक और स्कूली शिक्षा लेते हैं. काफ़ी हद तक मुफ़्त. साथ ही उन्हें एक अच्छा इंसान बनने और अपने व्यवहार को सही करने की सीख भी दी जाती है. यह सुनकर दिल टूट गया.”
 
वह आगे कहते हैं, “भारत को आज शांति और सद्भाव की बहुत आवश्यकता है. यहां आतंकवाद की नहीं, उसकी ट्रेनिंग दी जाती है! इस मौके पर हमें यह भी पता चला कि इस मदरसे के कई छात्र अच्छी जगहों पर कार्यरत हैं.”
 
विशेष कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कोल्हापुर से आये प्रोफेसर डाॅ. मदरसा परिचय के बाद साल्वे भी अभिभूत दिखे. 'आवाज़ मराठी' से बात करते हुए उन्होंने कहा, ''हमें मदरसे के बारे में पता चला, यहां बच्चों को अच्छा नागरिक, अच्छा इंसान बनना सिखाया जाता है.यही इस संस्था की भूमिका है.”
 
इस कार्यक्रम में बिशप सुनील साठे भी शामिल हुए. उन्होंने कहा, 'इस मौके पर पता चला कि यहां सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि आधुनिक शिक्षा भी दी जाती है.' आरोप लगाए जाते हैं कि 'यहां आतंकवाद सिखाया जाता है'. लेकिन यहां देश का आदर्श नागरिक बनाने की शिक्षा दी जाती है.”
 
 
दक्षिण कोरिया के गैर सरकारी संगठनों ने भी भाग लिया
 
धार्मिक सद्भाव के लिए काम करने वाले एक दक्षिण कोरियाई एनजीओ ने भी 'मदरसा परिचय' पहल में भाग लिया. विदेशी पर्यटक भी इस गतिविधि से अभिभूत हुए. एचडब्ल्यूपीएल के जनरल डायरेक्टर ऐली योन ने कहा, “यह मदरसा परिचय कार्यक्रम धार्मिक सद्भाव बनाए रखने में काफी मदद करेगा. यह क्रिया निश्चित ही धर्म में अज्ञान को दूर करने में सहायक होगी. 
 
आज विश्व में शांति और सद्भाव की सबसे अधिक आवश्यकता है. भारत में इस तरह की पहल से इस शांति को बनाए रखने में काफी मदद मिलेगी.”
 
अंजुम इनामदार इस 'मदरसा प्रसाद' गतिविधि के आयोजकों में से एक हैं. कार्यक्रम के आयोजन के पीछे की भूमिका बतायी. उन्होंने आवाज मराठी से बात की. उनका कहना है, ''सोसाइटी एक्टिविस्ट अफवाह फैला रहे हैं कि मदरसों में आतंकी शिक्षा दी जाती है.
 
ऐसा लगता है कि यह प्रचार मदरसे के बारे में है. इसे रोकने के लिए यह महसूस किया गया कि वास्तविक मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, इसकी जानकारी आम जनता तक पहुंचाना जरूरी है और उसी से यह पहल शुरू हुई.''
 
वह आगे कहते हैं, “इस कार्यक्रम में सभी धर्मों के नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हुए. पुणे में इस पहल को मिली उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया से हम उत्साहित हैं. हम पूरे महाराष्ट्र में ऐसी गतिविधियां लागू करने जा रहे हैं.' हम गैर-मुस्लिम भाइयों से अपील करना चाहते हैं कि वे बड़ी संख्या में शामिल हों, मदरसों का दौरा करें और समझें कि वहां क्या चल रहा है.”
 
'मदरसे का परिचय' जैसी गतिविधियाँ क्यों महत्वपूर्ण हैं?
 
'मदरसा प्रसाद' जैसी पहल मुस्लिम धार्मिक स्थलों के बारे में कई लोगों की व्यापक गलतफहमियों को दूर करने में काफी मदद कर सकती है. ऐसी गतिविधियों से राजनीति के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिशों को बड़ा झटका लगेगा.
 
इसलिए आज के समय में ऐसी गतिविधियों का अत्यधिक महत्व है. दुष्प्रचार का प्रतिकार करने और धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाली ऐसी पहलों को 'आवाज़ द वॉयस' की ओर से शुभकामनाएँ!