हाजी मसरूर अहमद : बीड़ी बनाने से लेकर शिक्षक बनने का सफ़र

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 05-02-2024
Haji Masroor Ahmed and Navneet Sikera
Haji Masroor Ahmed and Navneet Sikera

 

-फ़िरदौस ख़ान

ये दास्तां है उत्तर प्रदेश के कन्नौज ज़िले के गांव मझपुरवा के बीड़ी बुनकर से शिक्षक के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले हाजी मसरूर अहमद की. वे सिर्फ़ शिक्षा ही नहीं, बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जनकल्याण के सराहनीय काम कर रहे हैं.   

हाजी मसरूर अहमद बताते हैं- “मैं एक छोटे किसान का बेटा हूं. हमारे घर में बीड़ी बनाई जाती थी. मैंने भी बीड़ी बनाकर ही अपनी तालीम पूरी की है. मैंने अपने ही गांव के मदरसे तालीमुल इस्लाम से आठवीं जमात तक तालीम हासिल की. मुझे पढ़ाई का बहुत शौक़ था.

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मैंने कमालगंज के आरपी डिग्री कॉलेज से स्नातक की. यहां मैंने बीड़ी का काम छोड़कर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया और अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. मैंने कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और चित्रकूट के महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से बीएड किया.

वे कहते हैं- “पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं अपने गांव वापस आ गया और कोई दूसरा रोज़गार न होने की वजह से  मैंने फिर से बीड़ी बनाना शुरू कर दिया. लेकिन मेरा दिल बहुत बेचैन रहता था. एक बार रातभर जागकर मैं यही सोचता रहा है कि इतनी तालीम हासिल करने के बाद भी मैं बीड़ी बना रहा हूं.

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कहीं ऐसा न हो कि लोग मुझे देखकर अपने बच्चों को पढ़ाना ही बंद न कर दें. और सुबह होते ही मैं गुरसहायगंज आया और यहां के मदन मोहन मालवीय इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य से मुलाक़ात.

मैंने उनसे अवैतनिक रूप से पढ़ाने के लिए कहा और उन्होंने मुझे इसकी इजाज़त दे दी. मेरी लगन और मेहनत की वजह से बड़ी तादाद में छात्र मुझे पसंद करने लगे. यह बात वहां के स्टाफ़ को पसंद नहीं आई और उन्होंने मुझे निकालने के लिए प्रधानाचार्य पर दबाव बनाया. प्रधानाचार्य ने मुझे अपने दफ़्तर में बुलाकर कहा कि आप युग पुरुष हैं, मेरी कुछ मजबूरियां हैं.

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बेहतर है कि अब आप किसी और संस्था में पढ़ाने की बजाय ख़ुद अपनी एक संस्था क़ायम करें. मैंने उनका आशीर्वाद लिया और नये सफ़र पर निकल गया. मैंने उसी शिक्षण संस्थान के ड्रॉप आउट बच्चों को रेलवे स्टेशन पर एक पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू कर दिया.

मुसाफ़िर मुझे देखते और हैरत करते. फिर अल्लाह का करम हुआ और मैंने एक मकान किराये पर ले लिया. फिर साल 1997में मैंने डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन पब्लिक स्कूल की शुरुआत की, जिसे बाद में इंटर कॉलेज का दर्जा दिलवाया.

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इस दौरान मुझे आर्थिक तंगी व अन्य बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. फ़िलवक़्त इस कॉलेज में तक़रीबन 3200 छात्र-छात्राएं शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.“ 

यह कॉलेज अपने पठन-पाठन, अनुशासन, नैतिकता, सामाजिक व साम्प्रदायिक सद्भाव, जनकल्याण के कार्यों और हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए जाना जाता है. कॉलेज में समय-समय पर पर्यावरण, समाज, स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, साम्प्रदायिक सद्भाव और महिला सुरक्षा आदि विषयों पर गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है, जिनमें छात्र- छात्राएं बढ़ चढ़कर शिरकत करते हैं.   

कॉलेज महिला सुरक्षा के क्षेत्र में भी सराहनीय काम कर रहा है. यहां की 175छात्राओं को लखनऊ के वीमेन पॉवर ऑफ़िस द्वारा तीन साल के लिए स्पेशल एंजल यानी स्पेशल पुलिस ऑफ़िसर का परिचय पत्र जारी किया गया.

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ये छात्राएं अपने आसपास होने वाली छेड़छाड़ व अन्य अपराधिक घटनाओं की जानकारी वीमेन पॉवर ऑफ़िस को देती थीं. इसके साथ ही इन्होंने वीमेन पॉवर लाइन 1090 का भी प्रचार-प्रसार किया. इसकी वजह से इलाक़े में छेड़छाड़ की घटनाओं में काफ़ी कमी देखी गई.    

तत्कालीन समाजवादी सरकार में वीमेन पॉवर लाइन का संचालन कर रहे आईजी नवनीत सिकेरा भी हाजी मसरूर अहमद के कार्यों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपने फ़ेसबुक पेज पर उनकी सराहना करते हुए लिखा- “आपसे मिलकर ऐसा लगा कि अगर किसी के पास सपने हैं, तो ये देश उसको अपने सपने पूरे करने का मौक़ा देता है.

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आज मसरूर साहब का मिशन है कि कोई बच्चा अशिक्षित न रह जाए. मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि आपका मक़सद कामयाब हो, आपकी कहानी बहुत से युवाओं को प्रेरणा देगी.”हाजी मसरूर अहमद के जनहित में किए जा रहे कार्यों की चर्चा होने लगी.

तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डॉक्टर अनिल कुमार जैन और ज़िलाधिकारी अनुज कुमार झा भी उनसे प्रभावित हुए और उन्हें कन्नौज पुलिस लाइन में संचालित परिवार परामर्श नई किरण योजना का सदस्य बना दिया गया.

अब वे हर रविवार को एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मौजूदगी में काउंसिलिंग करके पति-पत्नी के आपसी झगड़ों और मनमुटाव की वजह से टूटते हुए परिवारों को बचाने का नि:स्वार्थ काम कर रहे हैं.

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वे बताते हैं- “एक बार जब गुरसहायगंज की फ़िज़ा में ज़हर घोलने की कोशिश की गई, तो कन्नौज के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक दिनेश कुमार पी साहब ने मुझसे कहा कि हाजी साहब गुरसहायगंज को जलने से कैसे बचाया जाए.

तब मैंने उनके बैनर तले हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए शान्ति मार्च निकाला. इसमें मेरे स्कूल के छात्र-छात्राओं के साथ गुरसहायगंज के राम मन्दिर के पुजारी राकेश तिवारी और जामा मस्जिद के इमाम व शहर क़ाज़ी हाफ़िज़ जुम्मन मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए.

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उन्होंने बच्चों के साथ पूरे शहर में घूमकर एकता बहाल करने और मुहब्बत से मिलजुल कर रहने की अपील की. तब से आज तक शहर का माहौल ख़ुशनुमा बना हुआ है.”दरअसल, हाजी मसरूर अहमद सपने देखते ही नहीं, बल्कि उन्हें साकार करने में भी यक़ीन रखते हैं.

वे दूसरों को भी उनके सपने साकार करने में मदद कर रहे हैं. वे अपनी कामयाबी का श्रेय अपने वालिद अहमद रज़ा, वालिदा रशीदन बेगम और उन सब लोगों को देते हैं, जिन्होंने क़दम-क़दम पर उनका साथ दिया है.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)