शांतिप्रिया रॉय चौधरी / कोलकाता
भारतीय फुटबॉल के दिग्गज मेहताब हुसैन केवल एक शानदार खिलाड़ी नहीं हैं, बल्कि वह इस तथ्य के सजीव प्रमाण भी हैं कि खेल जाति, धर्म या नस्ल की सीमाओं से परे जाकर लोगों को जोड़ने की ताकत रखता है.कोलकाता के खेल जगत में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के फुटबॉल परिदृश्य में हुसैन एक ऐसे प्रतीक के रूप में खड़े हैं, जो सांप्रदायिक सद्भाव और एकता की मिसाल पेश करता है.
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यदि आप मेहताब हुसैन के ढाकुरिया स्थित अपार्टमेंट में प्रवेश करें, तो आपको सबसे पहले उनकी धर्मपत्नी मौमिता पुरकायस्थ, जिन्हें मौमिता हुसैन के नाम से भी जाना जाता है, देवी लक्ष्मी के समक्ष फूलों का कलश लेकर पूजा करते हुए मिलेंगी.यह अंतर-धार्मिक विवाह उनके व्यक्तिगत जीवन की सुंदरता और सहिष्णुता को दर्शाता है.
हुसैन का घर न केवल खेल की कहानियों का गवाह है, बल्कि यहाँ दीवारों पर मक्का और मदीना की पवित्र तस्वीरों के साथ हिंदू देवी लक्ष्मी की तस्वीरें भी सजाई गई हैं.घर के भीतर पाँच वक्त की नमाज़ और देवी लक्ष्मी की पूजा के मंत्र एक साथ गूँजते हैं, जिससे एक अद्भुत सामंजस्य और संयुक्त संस्कृति का अनुभव होता है.
मेहताब और मौमिता की प्रेम कहानी कई साल पहले शुरू हुई.मेहताब तब दुर्गापुर से ट्रेन में कोलकाता आते थे ताकि फुटबॉल खेल सकें, और मौमिता एक कोचिंग सेंटर में प्रशिक्षण ले रही थीं.ट्रेन में हुई यह पहली मुलाक़ात जल्द ही प्रेम में बदल गई, और समय के साथ यह रिश्ता विवाह के रूप में परिणत हुआ.
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मेहताब हुसैन बताते हैं कि इस विवाह ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से बदल दिया.वह कहते हैं, "भले ही हम अलग-अलग धर्मों के हैं, लेकिन हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं.मैंने कभी भी मौमिता की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाई.घर पर मैं गोमांस नहीं खाता और हम ईद और दुर्गा पूजा दोनों को एक साथ मनाते हैं."
पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में, जहाँ राजनीतिक दिशा तय करने के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण धीरे-धीरे बढ़ रहा है, मेहताब हुसैन का परिवार धार्मिक सद्भाव का एक मजबूत उदाहरण पेश करता है.
उनके घर पर आयोजित होने वाली दुर्गा पूजा हमेशा शहर में चर्चा का विषय रही है.मेहताब और मौमिता अपने व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों का पालन करते हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान बनाए रखते हैं.इसका सबसे स्पष्ट प्रमाण यह है कि मौमिता माथे पर सिंदूर लगाती हैं, और मेहताब ने कभी इस पर आपत्ति नहीं जताई.
मेहताब हुसैन का खेल करियर भी उतना ही प्रेरक रहा है.5सितंबर, 1985को जन्मे हुसैन ने मोहन बागान और ईस्ट बंगाल जैसे प्रतिष्ठित क्लबों के लिए खेलकर अपने करियर को बुलंदियों तक पहुंचाया.
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उन्होंने ईस्ट बंगाल के लिए दस सीज़न खेले और तीन बार फेडरेशन कप जीतने में योगदान दिया.2005से 2014के बीच उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय फुटबॉल टीम के लिए 31 प्रदर्शन दिए, जहाँ उन्होंने सुनील छेत्री, जेजे लालपेखलुआ और संदेश झिंगन जैसे दिग्गजों के साथ खेला और देश के लिए दो गोल किए.
करियर के अगले चरण में, 2019 में उन्होंने कोचिंग की दिशा में कदम रखा.हालांकि उनका राजनीतिक सफर थोड़े समय के लिए चर्चा में आया. 21 जुलाई, 2020 को उन्होंने पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष से पार्टी का झंडा लेकर भारतीय जनता पार्टी में प्रवेश किया, लेकिन मात्र चौबीस घंटे के भीतर ही उन्होंने अपना मन बदल लिया और पार्टी छोड़ दी.
मेहताब हुसैन का जीवन हमें यह सिखाता है कि व्यक्तिगत प्रेम, सम्मान और समझदारी धार्मिक मतभेदों और सामाजिक विभाजनों से हमेशा ऊपर होती है.उनका परिवार भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणा है, यह दर्शाता है कि विविधता में एकता केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक सजीव हकीकत बन सकती है.
खेल, प्रेम और पारिवारिक मूल्यों के संगम ने मेहताब हुसैन और मौमिता के जीवन को एक मिसाल बना दिया है.उनके घर की दीवारें, पूजा स्थल और सामंजस्यपूर्ण जीवनशैली यह संदेश देती हैं कि सहिष्णुता और समझदारी के साथ जीवन जीने से समाज में सामूहिक सद्भाव कायम किया जा सकता है.
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मेहताब हुसैन की कहानी हमें याद दिलाती है कि खेल केवल खेल नहीं होता, बल्कि यह सामाजिक एकता, मानवता और सम्मान का एक मजबूत सेतु भी बन सकता है.
उनके जीवन में व्यक्तिगत संबंधों और पेशेवर उपलब्धियों के बीच संतुलन ने यह साबित कर दिया कि एकता और सद्भाव की जीत किसी नारे से ज्यादा, वास्तविक जीवन की आवश्यकता है.उनकी यात्रा, उनके संघर्ष और उनकी सोच एक प्रेरणा है, जो न केवल युवा खिलाड़ियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक मार्गदर्शन और प्रेरक उदाहरण है.