मराठा और मुस्लिम सरदारों की चार सदी पुरानी दोस्ती आज भी कायम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-11-2025
The four-century-old friendship between Maratha and Muslim chieftains still endures today.
The four-century-old friendship between Maratha and Muslim chieftains still endures today.

 

भक्ति चालक

महाराष्ट्र के सांस्कृतिक शहर पुणे में तारीख के अनगिनत क़दमों के निशान बिखरे हुए हैं। शहर के कई ख़ानदानों ने इस तारीख को हक़ीक़त में जिया है। पुणे में सोहेल शमशुद्दीन शेख का घर ऐसी ही एक जीती-जागती तारीख की निशानी है। उन्होंने छत्रपति शहाजीराजे भोसले (17वीं सदी के अज़ीम मराठा बादशाह छत्रपति शिवाजी महाराज के वालिद) के ज़माने से लेकर पेशवाई तक, अपने बुज़ुर्गों की ख़िदमत और बहादुरी की विरासत को सहेज कर रखा है। उनके चेहरे पर जो फ़ख़्र झलकता है, वह नस्ल दर नस्ल निभाई गई वफ़ादारी और जांबाज़ी का है।

यह कहानी तक़रीबन चार सौ साल पहले शुरू होती है। छत्रपति शहाजीराजे भोसलेने सोहेल शेख के बुज़ुर्गों को एक ख़ास सनद (शाही फ़रमान) अता की थी। यह सनद आज भी सोहेल शेख ने अपनी जान से ज़्यादा संभाल कर रखी है। यह महज़ एक काग़ज़ नहीं है, बल्कि उनके ख़ानदान की शानदार तारीख और भोसले घराने के साथ उनके अटूट रिश्ते की गवाही है।

शहाजी महाराज के बाद भी शेख ख़ानदान की यह ख़िदमत बिना रुके जारी रही। बाद में, पेशवाओं के दौर में (जो मराठा सल्तनत के वज़ीर-ए-आज़म हुआ करते थे), उनके बुज़ुर्ग क़ाज़ी के अहम ओहदे पर ख़िदमत करते रहे। तक़रीबन आठ से दस नस्लों ने स्वराज्य (शिवाजी महाराज की ख़ुद की हुकूमत) और उसके बाद पेशवाओं की ख़िदमत की।

सोहेल शेख शिवाजी महाराज के दौर के इंसाफ़से जुड़े कई दस्तावेज और तारीखी सबूत भी संभाल कर रखे हैं। इन दस्तावेज़ से उनके बुजुर्गों के काम और उस ज़माने के समाजी निज़ाम को समझा जा सकता है। आज उनकी चौदहवीं नस्ल पुणे में आबाद है, और ख़ास बात यह है कि ख़िदमत की यह विरासत उन्होंने आज भी क़ायम रखी है।

जिस तरह उनके बुज़ुर्ग बादशाह और रियासत की ख़िदमत में थे, उसी तरह आज की नस्ल भी सरकारी ख़िदमत में है। ख़ुद सोहेल शेख अपने बुज़ुर्गों के नक़्श-ए-क़दम पर चलते हुए पुलिस फ़ोर्स में ख़िदमत अंजाम दे रहे हैं। पुलिस फ़ोर्स में ख़िदमत करने वाली यह उनकी पांचवीं नस्ल है।

‘समाजी प्रतिबद्धता मिलन समारोह’

अफ़सोस की बात है कि सोहेल शेख के ख़ानदान का यह अज़ीम काम हाल फ़िलहाल तक नज़रअंदाज़ था। लेकिन उनकी यह कहानी 'आवाज़ द वॉइस मराठी' ने एक वीडियो के ज़रिए पूरे महाराष्ट्र तक पहुंचाई और उनकी शानदार विरासत इस तरह रौशनी में आई। इसके बाद, कई छोटे-बड़े न्यूज़ चैनलों ने उनके इंटरव्यू लिए और महाराष्ट्र भर में उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज के दरबार में अहम ओहदे पर रहे क़ाज़ी हैदर के वारिस के तौर पर शोहरत मिली।

इसी सिलसिले में अगला क़दम उठाते हुए, हाल ही में एक तारीखी वाक़या हुआ। तंजावुर (दक्षिण भारत) के राजे व्यंकोजी महाराज (जो छत्रपति शिवाजी महाराज के भाई थे) के 13वें वारिस, बाबासाहेब उर्फ़ फत्तेसिंह राजे भोसले और छत्रपति शिवाजी महाराज के सेक्रेटरी वकील और मुंशी (पारसनीस) क़ाज़ी हैदर शेख के 13वें वारिस क़ाज़ी सोहेल शेख के बीच पुणे में एक तारीखी मुलाक़ात हुई।

यह इस बात की मिसाल है कि तारीख का मज़हबी भाईचारा आज भी ज़िंदा है। इस मुलाक़ात को मुमकिन बनाने में 'आवाज़ द वॉइस मराठी' का बड़ा योगदान है। इस तारीखी मुलाक़ात के बारे में सोहेल शेख बताते हैं, “' 'आवाज़ द वायस मराठी' के मेरे इंटरव्यू की वजह से यह मुलाक़ात मुमकिन हुई।

मेरा वह वीडियो फत्तेसिंह राजे भोसले तक पहुंचा और उन्होंने फ़ौरन मुझसे सम्पर्क किया। इसके बाद वो मुझसे मिलने आए। यह मुलाक़ात तारीखी और समाजी ज़िम्मेदारी को निभाने वाली थी, इसलिए हमने उस मुलाकात को समाजी प्रतिबद्धता मिलन समारोह का नाम दिया।”

एक तारीखी पल

इस ख़ास तक़रीब में कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। इस बारे में सोहेल शेख ने कहा, “यह समारोह वाक़ई तारीखी साबित हुई। क्योंकि इस मौक़े पर महाराज के मुस्लिम और मराठा सरदारों के वारिस, पुलिस अफ़सर और समाजी कारकुन मौजूद थे।

यह सब देखकर फत्तेसिंह राजे बेहद ख़ुश हुए। उन्होंने जज़्बाती लहजे में, लेकिन बड़े फ़ख़्रसे सबसे बातचीत भी की। मेरे घर के बाहर मेरे बुज़ुर्गों की तारीख बताने वाले जो बैनर हमने लगाए हैं, उनका अनावरण उनके हाथों हुआ।”

उन्होंने आगे कहा, “महाराज से बात करके हमें नई तारीख मालूम हुई। पौने चार सौ साल पहले जब छत्रपति शिवाजी महाराज कर्नाटक की मुहिम पर थे, तब वह गोलकोंडा के क़ुतुबशाह से मिलने गए थे। उस वक़्त उनके साथ दूसरे सरदारों के अलावा हमारे बुज़ुर्ग क़ाज़ी हैदर भी गए थे। उसी वक़्त व्यंकोजी और मेरे बुज़ुर्गों की मुलाक़ात हुई थी।”

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‘छत्रपति शिवाजी महाराज के घराने से मिलना फ़ख़्र की बात’

सोहेल शेख बड़े फ़ख़्र से बताते हैं, “छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए हमारे दिल में शुरू से ही बहुत इज़्ज़त है। और उनके घराने से हमारे ताल्लुक़ात जुड़ें, यह वाक़ई बहुत फ़ख़्र की बात है। आज पौने चार सौ साल बाद फत्तेसिंह राजे और मेरी मुलाक़ात का यह एक सुनहरा पल था। हमें इस सुनहरे पल का हिस्सेदार बनने की क़िस्मत मिली, इसकी हमें बहुत ख़ुशी है।”

छत्रपति शिवाजी महाराज के भाई तंजावुर के राजे व्यंकोजी महाराज के 13वें वारिस, बाबासाहेब उर्फ़ फत्तेसिंह राजे भोसलेने भी 'आवाज़ द वॉइस मराठी' को अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “समाज में यकजहती बनाए रखने के नज़रिए से यह मुलाक़ात बहुत अहम थी। आज समाज में जो हिंदू-मुस्लिम झगड़े चल रहे हैं, वे बंद हों और फिर से पहले जैसा भाईचारे का माहौल बने, यही इस मुलाक़ात के पीछे का अहम मक़सद था।”

उन्होंने आगे कहा, “‘बारा बलुतेदार’ (गांव के 12दस्तकार) और ‘अठरा पगड जातियों’ (समाज के सभी 18तबक़े) को एक साथ लेकर चलने का जो उसूल छत्रपति शिवाजी महाराज और व्यंकोजी राजे का था, हमें उसी को आगे ले जाना है। और फिर से शिवराज्य क़ायम करना है। शिवाजी महाराज की तर्ज़ पर बाबासाहेब अंबेडकर ने जो संविधान लिखा है, हम सबको उस पर अमल करना है।”

फत्तेसिंह राजे भोसले ने बताया कि यह मुलाक़ात समाज में भाईचारा पैदा करने के नज़रिए से हुई। उन्होंने कहा, “आज धर्मों-जातियों में झगड़े लगाकर सियासी लोग अपनी रोटी सेंक रहे हैं, यह कहीं न कहीं रुकना चाहिए। और पूरे समाज को अपनी यकजहती बनाए रखनी चाहिए। बस यही हमारी दिल से ख़्वाहिश है।”

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ख़ास मेहमान

इस तारीखी प्रोग्राम के गवाह बनने के लिए कई जानी-मानी हस्तियां मौजूद थीं। उनमें फत्तेसिंह राजे भोसले की पत्नी शुभांगी भोसले, छत्रपति शिवाजी महाराज के संगमेश्वर फुणगूस के अंगरक्षक सरदार नूर ख़ान के खानदान से अंजुम हसन ख़ान, संगमेश्वर फुनगुस के घुड़सवार दल के सरदार बाबाजी सावंत के ख़ानदान से सुनील सावंत देसाई, छत्रपति शिवाजी महाराज के मुरुड के सरनोबत नाईक के वारिस, छत्रपति शिवाजी महाराज मुस्लिम विचार मंच के सदर मुज़फ़्फ़र सैय्यद, नायब सदर दिनेश माटे, जॉइंट सेक्रेटरी लियाकत काळसेकर, शाहू महाराज जयंती उत्सव के सदर सरदेसाई, खडक पुलिस स्टेशन के ए.पी.आय व्हटकर और सोहेल शेख का पूरा ख़ानदान इस प्रोग्राम में मौजूद था।