बिहार: छठ,आस्था और मुसलमान

Story by  सेराज अनवर | Published by  onikamaheshwari | Date 18-11-2023
Bihar: Muslim ladies preparing chulha for chhath puja
Bihar: Muslim ladies preparing chulha for chhath puja

 

सेराज अनवर/ पटना 

छठ ने धर्म की दीवारों को तोड़ दिया है. राजधानी पटना से लेकर कटिहार, गोपालगंज सीवान, भागलपुर समेत पूरे राज्य में कई मुस्लिम महिलायें भी पूरी आस्था के साथ छठ मना रही हैं.यह जान कर हैरानी होगी कि घर-घर जिस चूल्हे पर महाप्रसाद खुदबुदाता है, उस चूल्हे को कोई और नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाएं बना रही हैं. चूल्हा खरीदने वाले छठ व्रती कहते हैं कि छठ की यह सबसे बड़ी खासियत है, जो सभी धर्मों को एक धागे में पिरोता है.बिहार का सबसे बड़ा पर्व छठ सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि एक भावना है.

Muslim family of Gopalganj doing Chhath fast 

वह भावना जो लोगों को आस्था से जोड़ती है. बिहार के लगभग सभी हिन्दुओं के घर छठ पर्व होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिन्दू ही छठ का व्रत करते हैं बल्कि कई ऐसे मुस्लिम परिवार भी हैं, जिनकी छठी मईया में आस्था है और उनके घर भी छठ का व्रत किया जाता है.छठ पर शोध करने वाले इतिहासकार डॉ. मोहम्मद सईद आलम कहते हैं कि छठ पर्व सिर्फ हिंदू धर्म से संबंधित ही नहीं बल्कि मुस्लिम धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में उभर रहा है.

शुक्रवार को नहाय-खाय के साथ पूरा बिहार छठ मय हो चुका है. शनिवार यानी आज खरना है. लोक आस्था के महापर्व का समापन 20 नवंबर को होगा.चार दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के पहले दिन 17 नवंबर को नहाय-खाय, दूसरे दिन 18 नवम्बर को खरना, तीसरे दिन 19 नवंबर को रविवार की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 20 नवम्बर सोमवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर आयु-आरोग्यता, यश, संपदा का आशीष लेते हुए पर्व का समापन होगा.

Abida making chulha in Patna for chhath puja mahaprasad 

 

सीवान के अजहर मियां का परिवार की छठी मईया में आस्था 

सीवान जिला के बिठुना गांव निवासी अजहर मियां के बेटे का पैर टूट गया था. उनकी पत्नी सफेदा बताती हैं कि कई जगहों पर बेटे का इलाज करवाया,लेकिन उसका पैर कहीं भी ठीक नहीं हो सका.पैर काटने की नौबत आ गयी.सफेदा पूरी तरह टूट गई थी. जब सभी जगहों से निराशा हाथ लगी तब सफेदा छठी मईया के शरण में चली गई. सफेदा को उम्मीद थी कि छठी मईया उसके ऊपर आए इस दुख को दूर करेगी और ऐसा हुआ भी.

छठी मईया ने उसकी मनोकामना पूरी की और बेटा का पैर ठीक हो गया. तब से सफेदा हर साल छठ व्रत करती है. पिछले दस वर्ष से हर साल विधिपूर्वक छठ का व्रत करती आ रही हैं सफ़ेदा.जैसे सभी हिंदू संध्या और सुबह के अर्घ्य के लिए छठ घाट जाते हैं. वैसे ही सफेदा भी शाम और सुबह का अर्घ्य के लिए छठ घाट जाती है. इस मुस्लिम महिला की छठी मईया में आस्था देखकर गांव के लोग भी उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते हैं.

Salima Khatoon, Yasmin and their daughters of Bhagalpur making badhees for chhath pooja 

गोपालगंज में आठ परिवार की महिलायें रखती हैं व्रत राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का पैतृक प्रखंड है फुलवरिया.गोपालगंज ज़िले के फुलवरिया अंतर्गत संग्रामपुर गांव में आठ मुस्लिम समुदाय की महिलाएं 20 वर्षों से छठी मैया का व्रत कर रही हैं.धर्म की दीवार को तोड़कर शिद्दत के साथ यहां के मुस्लिम समुदाय की महिलाएं छठ का व्रत रखती हैं.

संग्रामपुर गांव के निवासी मोहम्मद हबीब नट की पत्नी गुड़िया खातून, मोहम्मद कन्हैया की पत्नी फूलबीवी निशा, मोहम्मद सगीर आलम की पत्नी साबरा खातून, मोहम्मद अवैस आलम की पत्नी हसीना खातून, मोहम्मद हबीब की पत्नी सैमुन निशा, मोहम्मद जुम्मन उद्दीन की पत्नी शबनम खातून, मोहम्मद नसरुद्दीन आलम की पत्नी संतरा खातून, तथा मोहम्मद मेवालाल की पत्नी नूरजहां खातून ने संयुक्त रूप से बताया कि छठी मैया की कृपा से हम सब की घरों के आंगन में किलकारियां गूंजी है.इस पवित्र पर्व को हम बड़ी शिद्दत के साथ मानते हैं.

ये सभी आठ महिलाएं मुस्लिम परिवार से आती हैं, फिर भी छठ का व्रत करती हैं. मुस्लिम महिलाओं ने कहा कि परिवार के पुरुष समाज का भी भरपूर सहयोग मिलता है. गुड़िया खातून बताती हैं कि दर्जनों डॉक्टर से दिखाने के बाद मैं दादी नहीं बन पाई,इसी बीच किसी ने सलाह दी और मैं छठी मैया का व्रत रखा और मेरे आंगन में आज सात बच्चों की किलकारी गूंजती है. 

muslim lady safeda of siwan celebrating chhath pooja 

कटिहार में मो. क़ासिम का परिवार बनाता है चूल्हा 

छठ के खास विधान खरना में मिट्टी के चूल्हा में खाना बनाने की परंपरा रही है. कटिहार शहर के बैगना स्थित नहर के पास रहने वाले मो. कासिम और उनकी पत्नी नूर जहां के साथ ही रूबीना खातून द्वारा बनाए गए चूल्हों की विशेष मांग रहती है.दूर-दराज से लोग यहां पहुंच कर श्रद्धा के साथ इस मिट्टी के चूल्हे का खरीदारी करते हैं.हर साल इसलिए यह लोग छठ पर्व के मौके पर एक महीने पहले से ही मिट्टी के चूल्हे बनाने की तैयारी शुरू कर देते हैं.

मो.कासिम के द्वारा बनाए गए मिट्टी के चूल्हों की मांग इतनी रहती है कि बहुत पहले से चूल्हा बनाने का काम शुरू किया जाता है. वैसे तो यह परिवार मुस्लिम है, लेकिन इन लोगों का छठ पर्व के प्रति इतनी श्रद्धा है कि यह लोग छठ व्रतियों के लिए सिर्फ छठ के अवसर पर चूल्हे बनाते हैं. छठ खत्म होने के बाद रूबीना खातून दूसरों के घरों में काम करके अपना और अपने चार बच्चों का भरण पोषण करती हैं.

muslim lady Rubina Khatoon in Katihar for chhath puja 

रूबीना खातून के पति का इंतकाल 6 साल पहले हो गया था, जिसके बाद चूल्हा बनाने की जिम्मेदारी उन्होंने उठाई.रूबीना खातून पिछले 20 साल इस काम से जुड़ी हुई हैं,रूबीना खातून बताती हैं कि इसमें धर्म की बंदिश नहीं आयी. जबकि चूल्हा खरीदने आए श्रद्धालु कहते हैं कि यही तो महापर्व छठ की खासियत है, जो एक साथ कई कुरीतियों को तोड़ते हुए एक सामाजिक सौहार्द का मजबूत संदेश भी देता है. 

भागलपुर में मुस्लिम महिलाएं बना रहीं बद्धि 

कहते हैं छठ महापर्व में न जाति न धर्म देखा जाता है बगैर किसी भेदभाव के हर जाति धर्म के लोग महापर्व को सम्पन्न कराने में अपनी भूमिका निभाते हैं. ऐसा ही नजारा भागलपुर में देखने को मिल रहा है, जहां मुस्लिम महिलाएं हिन्दू धर्म के रक्षा कवच, माला का निर्माण कर रहे हैं. काजीचक की रहने वाली सलीमा खातून, यास्मीन उनकी बच्चियां छठ पूजा के लिए बद्धि बनाने में जुटी हैं, बिना किसी भेदभाव के पूरी शुद्धता के साथ मुस्लिम महिलाएं बद्धी का निर्माण कर रही हैं.

इसके लिए उन्हें बाजारों से लोगों से ऑर्डर भी मिल रहे हैं. बद्धी निर्माण करने वाली महिलाएं बताती हैं कि दर्जनों मुस्लिम परिवार इस माला को बनाते हैं. ये काम कई सालों से होता आ रहा है. पुश्तैनी काम है, अनंत हो या डोरा और जितिया बंधन आदि का निर्माण भी यहां की महिलाएं करती हैं.

muslim lady Baby Khatoon of Patna for chhath puja 

 

मुसलमान के बनाये चूल्हा पर बनता है प्रसाद

इस महाप्रसाद को बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस चूल्हे पर ये महाप्रसाद बनाया जाता है उसे कैसे और कौन बनाता है?घर-घर जिस चूल्हे पर महाप्रसाद खुदबुदाता है, उस चूल्हे को कोई और नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाएं बनातीं हैं.इस परंपरा के रास्ते में धर्म भी राह नहीं अटकाता. बल्कि बड़े ही आदर भाव से व्रती उनसे चूल्हा खरीदकर घर ले जाते हैं.

पटना के वीरचंद पटेल पथ पर बेबी खातून 20 से 30 साल से चूल्हे का निर्माण कर रही हैं और इसकी बिक्री भी खूब होती है.वह बताती हैं कि छठ महापर्व को लेकर हम लोगों की भी उतनी आस्था है, जितना कि हिंदू धर्म के लोग रखते हैं. बड़ी निष्ठा भाव से इस चूल्हे को बनाना होता है.'इस बार मिट्टी की खरीद ज्यादा पैसे में की गयी है.इसीलिए चूल्हे को ज़्यादा दाम में हम लोग बेच रहे हैं. खरीदारों की कमी नहीं है. लगातार लोग आ रहे हैं और खरीद रहे हैं.

पटना की बेबी खातून जैसी कई महिलाएं गांव से मिट्टी खरीदकर लातीं हैं और पटना की सड़कों पर मिट्टी को चूल्हे का आकार देने में जुट जाती हैं. इस चूल्हे को बनाने के दौरान सभी महिलाएं नियम और निष्ठा का पूरा निर्वहन एक व्रती महिला की तरह ही करती हैं. यूं समझिए कि जब तक चूल्हे का काम चलता है. लहसुन प्याज का सेवन भी इन महिलाओं द्वारा नहीं किया जाता है.

Muslim women making badhees in Bhagalpur for chhath puja

रोजी खातून कहती हैं कि छठ को लेकर हमारी भी आस्था है. हिंदुओं का महापर्व है तो उससे कोई मतलब नहीं है. मुस्लिम लोग भी इसको यही मानकर चलते हैं. यही कारण है कि हम लोग बहुत निष्ठा से मिट्टी का चूल्हा बनाते हैं और मिट्टी के चूल्हा की बिक्री करते हैं. एक चूल्हा 120 से लेकर 200 रुपए तक बिकता है.मोहम्मद नसीम बताते हैं कि हम लोग काफी मेहनत करके मिट्टी का चूल्हा बनाते हैं.

बहुत ही निष्ठा से हमारे घर की महिलाएं भी इस काम को कर रही हैं. इसीलिए आप समझ लीजिए की कोई धर्म और कोई क़ौम नहीं होता है. सभी का पर्व एक होता है. सभी अपने हिसाब से आस्था रखते हैं. मुसलमानों की भी कम आस्था इस महापर्व को लेकर नहीं है. 

Abida of Patna making chulha for chhath puja

मुस्लिम धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार

डॉ. मोहम्मद सईद आलम पटना विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष हैं.इन्होंने छठ का इतिहास लिखा है.जिसमें वह कहते हैं कि छठ सिर्फ हिन्दुओं का पर्व नहीं है.साहित्यिक एवं पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर सृजित मानव सभ्यता का इतिहास यह बताता है कि विश्व का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां सूर्य को ना पूजा गया हो.पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार सूर्योपासना का प्रारंभ नवपाषाणकाल से ही प्रारंभ हो गया था.साहित्यिक स्रोत में सूर्य उपासना का प्राचीनतम साक्ष्य ऋग्वेद से प्राप्त होता है.

छठ पूजा का प्रारंभ बिहार में मुंगेर में त्रेता युग में महर्षि मुद्गल ऋषि के आश्रम से प्रारंभ हुआ.यह बिहार में विशेष रूप से प्रचलित है जो कार्तिक मास के छठे दिन संपन्न होता है. भविष्यपुराण के 42वें अध्याय में मगध में प्रचलित वर्तमान छठ पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का पता चलता है.इसके अनुसार कृष्ण के पुत्र शाम्ब के दुर्वासा ऋषि के श्राप से कुष्ठ रोग हो गया था तथा दिन प्रतिदिन से उसकी काया नष्ट होने लगी थी.

Dr. Mohammed Saeed Alam

ऐसे में उन्हें सूर्य की विशेष पूजा करने की सलाह दी गई . गया के गोविंदपुर अभिलेख (11वीं सदी) भी इस बात की पुष्टि करता है. आज भी मगध सूर्य पूजा का केंद्र है तथा अधिकांश सूर्य मंदिर बिहार में ही अवस्थित है जिनमें नालंदा के बड़गांव (बरार्क) का सूर्य मंदिर ,पटना के पुनारख (पूर्णांक) का सूर्य मंदिर ,नालंदा के ओंगारी (ओंगार्क) का सूर्य मंदिर ,औरंगाबाद के देव (देवार्क) का सूर्य मंदिर ,पटना के उलार (उलार्क) सूर्य मंदिर का विशेष महत्व हैं.इन मंदिरों में छठ व्रत के दिन विशेष पूजा की जाती है तथा यहां अर्घ दिया जाता है.

बिहार में छठ- व्रत का विकास जैसे-जैसे हुआ वैसे-वैसे इनमें क्षेत्रीय संस्कृति का भी समायोजन हो गया.डॉ.सईद कहते हैं कि हाल के वर्षों में कुछ अन्य मत वाले लोग जैसे मुस्लिम, ईसाई आदि भी छठ व्रत करने लगे हैं. यधपि इस्लाम की सूफी परंपरा सोहरावर्दी सिलसिला में सूर्य पूजा पहले से विद्यमान है. चूंकि वर्तमान छठ पूजा में मूर्ति पूजा नहीं होता है ,अतः मुस्लिम धर्म के लोगों में भी इसका प्रचलन असहज नहीं है.

छठ पर्व को लेकर हम देखते हैं कि वर्तमान परिपेक्ष में छठ पर्व में छठ घाटों को तैयार करने में हिंदू धर्म के अतिरिक्त मुस्लिम धर्म से संबंधित लोग भी विशेष रुचि दिखाते हैं . कुछ स्थानों पर ऐसा भी देखा जाता है कि छठ पूजा में मुस्लिम परिवार भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं .इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि यह छठ पर्व सिर्फ हिंदू धर्म से संबंधित ही नहीं बल्कि मुस्लिम धर्म के लिए भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार के रूप में उभर रहा है.