रमज़ान और गर्मी पड़े भारी, सऊदी अरब फीफा वर्ल्ड कप जनवरी 2035 में

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-10-2025
Ramadan and heat take their toll, Saudi Arabia to host FIFA World Cup in January 2035
Ramadan and heat take their toll, Saudi Arabia to host FIFA World Cup in January 2035

 

मलिक असगर हाशमी

सऊदी अरब में 2034फीफा विश्व कप का आयोजन अब जनवरी 2035में हो सकता है.यह बदलाव विश्व फुटबॉल के इतिहास में एक अहम मोड़ साबितहोगा.इस फैसले के पीछे मुख्यतः दो प्रमुख कारण हैं—पहला, सऊदी अरब की भीषण गर्मी और दूसरा, 2034के अंत में रमज़ान का पवित्र महीना.पारंपरिक रूप से फीफा विश्व कप का आयोजन जून-जुलाई में होता रहा है, लेकिन जैसे 2022में क़तर में गर्मी को ध्यान में रखते हुए टूर्नामेंट को नवंबर-दिसंबर में शिफ्ट किया गया था, वैसे ही अब सऊदी अरब में भी आयोजकों को मौसम और धार्मिक दायित्वों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हो रही है.सऊदी अरब की गर्मियों में तापमान 45 से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच सकता है, जो खिलाड़ियों की फिटनेस, सुरक्षा और प्रदर्शन के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.

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वहीं दूसरी ओर, नवंबर और दिसंबर 2034के दौरान रमज़ान पड़ने की संभावना है, जिसमें मुस्लिम खिलाड़ी सूरज उगने से सूर्यास्त तक रोज़ा रखते हैंयानी बिना खाए-पिए रहते हैं.ऐसे में दिन में होने वाले मुकाबलों में उनकी प्रदर्शन क्षमता पर गहरा असर पड़ सकता है.यही कारण है कि मेज़बान देश और फीफा अब जनवरी 2035की ओर देख रहे हैं, ताकि जलवायु और धार्मिक संवेदनशीलता दोनों का संतुलन बनाए रखा जा सके.

फीफा के अध्यक्ष जियानी इन्फेंटिनो ने भी हाल के महीनों में यह कहा है कि वैश्विक टूर्नामेंटों की समय-सारणी में लचीलापन आवश्यक है.उनका कहना है कि हमें सिर्फ परंपरा से नहीं, बल्कि व्यावहारिकता और वैश्विक विविधता को ध्यान में रखकर फैसले लेने चाहिए.जलवायु, धार्मिक अवसर, क्लब फुटबॉल की व्यस्तता और प्रसारण अधिकार जैसे पहलुओं को ध्यान में रखकर ही फुटबॉल के भविष्य का कैलेंडर तैयार करना होगा.

जनवरी 2035 का यह प्रस्ताव इसी दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है.हालाँकि यह अब तक औपचारिक रूप से घोषित नहीं हुआ है, लेकिन कई सूत्रों के अनुसार इसकी पुष्टि जल्द ही की जा सकती है.यदि विश्व कप जनवरी में होता है, तो खिलाड़ियों की फिटनेस के लिहाज़ से यह एक सकारात्मक बदलाव हो सकता है.

आमतौर पर जून-जुलाई में आयोजित होने वाला विश्व कप तब होता है जब खिलाड़ी 10महीने की थकाने वाली क्लब सीज़न के बाद शारीरिक और मानसिक रूप से थके होते हैं.लेकिन जनवरी में टूर्नामेंट का मतलब होगा कि खिलाड़ी सीज़न के बीच में होंगे, यानी अपने चरम प्रदर्शन पर.इससे मुकाबले अधिक रोमांचक, ऊर्जावान और प्रतिस्पर्धात्मक हो सकते हैं.

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साथ ही, सऊदी अरब की हल्की सर्दियाँ खेलने के लिए आदर्श वातावरण प्रदान करेंगी, जिससे खिलाड़ियों की चोट लगने की संभावना भी कम होगी.लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है.जनवरी में टूर्नामेंट आयोजित करने का मतलब है कि क्लब फुटबॉल का कैलेंडर गंभीर रूप से बाधित होगा

.यूरोपियन लीग्स, खासकर इंग्लिश प्रीमियर लीग, ला लीगा, सीरी ए और बुंडेसलीगा को अपने शेड्यूल में भारी फेरबदल करना पड़ेगा.इससे लीग सीज़न दो हिस्सों में बँट जाएगा, जो क्लबों की रणनीति, खिलाड़ियों की फिटनेस मैनेजमेंट और प्रसारण अधिकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है.

इसके अलावा, विश्व कप के तुरंत बाद क्लब सीज़न फिर से शुरू हो जाएगा, जिससे खिलाड़ियों को पर्याप्त आराम और रिकवरी का समय नहीं मिल पाएगा.इससे खिलाड़ियों में थकावट और बर्नआउट बढ़ सकता हैऔर चोटों का खतरा भी अधिक हो सकता है.

कई क्लबों को अपने स्टार खिलाड़ियों के बिना सीज़न के अहम हिस्से खेलने पड़ सकते हैं, जिससे उनके प्रदर्शन पर भी असर पड़ेगा.इसके अतिरिक्त, क्लबों को टूर्नामेंट में शामिल न होने वाले खिलाड़ियों के लिए अलग से प्रशिक्षण और फिटनेस प्लान तैयार करना होगा ताकि वे ब्रेक के दौरान भी प्रतिस्पर्धात्मक स्तर पर बने रहें.

प्रशंसकों के लिए यह एक दिलचस्प लेकिन जटिल अनुभव हो सकता है.एक तरफ, यह आयोजन मध्य-सीज़न में एक नया उत्सव लेकर आएगा, जो क्लब फुटबॉल की निरंतरता को तोड़कर कुछ नया और रोमांचक पेश करेगा.

दूसरी ओर, जनवरी सामान्य छुट्टियों का समय नहीं होता, जिससे अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों के लिए यात्रा करना और टिकट बुक कर पाना मुश्किल हो सकता है.होटल, उड़ानें और अन्य सुविधाएं महंगी हो सकती हैं, जिससे यात्रा की लागत बढ़ेगी.साथ ही, पारंपरिक "समर वर्ल्ड कप" की भावना जिसमें लोग खुले मैदानों में फैन ज़ोन, स्क्रीनिंग और सामूहिक उत्सव मनाते हैं, वह भावना ठंड में काफी हद तक खो सकती है.फिर भी, सऊदी अरब के लिए यह मौका है खुद को पर्यटन, संस्कृति और खेल की दृष्टि से एक प्रगतिशील देश के रूप में प्रस्तुत करने का, जो दुनिया की नज़रों में अपनी छवि को नया आयाम दे सकता है.

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ट्रांसफर मार्केट भी इस आयोजन से अछूता नहीं रहेगा.जनवरी की विंडो में क्लब आम तौर पर अपने दस्तों को मज़बूत करने के लिए खिलाड़ियों की खरीद-फरोख्त करते हैं.लेकिन यदि विश्व कप भी इसी समय होगा, तो क्लबों को निर्णय लेने में कठिनाई होगी.खिलाड़ी टूर्नामेंट पर ध्यान केंद्रित करना चाहेंगे और ट्रांसफर अफवाहों से बचना चाहेंगे.इससे यह संभव है कि जनवरी की ट्रांसफर विंडो अपेक्षाकृत शांत और सीमित गतिविधियों वाली हो.

बड़ी तस्वीर की बात करें तो, जनवरी 2035में विश्व कप का आयोजन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि फीफा अब परंपरागत ढाँचों से बाहर सोचने को तैयार है.यह वैश्विक फुटबॉल की "यूरोप-केंद्रित" सोच से आगे निकलकर एक ज्यादा समावेशी और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की दिशा में कदम है.इससे भविष्य में उष्णकटिबंधीय देशों के लिए भी विश्व कप की मेज़बानी के अवसर बढ़ेंगे.वहीं, यह क्लब बनाम कंट्री की बहस को भी नई गति देगा, क्योंकि यूरोपीय क्लब इस तरह के बदलाव को लेकर पहले से ही चिंतित रहते हैं.

संक्षेप में, सऊदी अरब का यह प्रस्ताव केवल मौसम और धर्म को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय नहीं है, बल्कि यह वैश्विक फुटबॉल में बदलते राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक समीकरणों का प्रतिबिंब है.फीफा अब केवल एक खेल संस्था नहीं, बल्कि एक वैश्विक नीति निर्माता की भूमिका में आ चुका है, जो फुटबॉल के माध्यम से दुनिया के विविधताओं को समाहित करने का प्रयास कर रहा है.अगर जनवरी 2035में वर्ल्ड कप होता है, तो यह इतिहास में दर्ज होगा.एक ऐसा पल जब खेल ने मौसम, संस्कृति और परंपरा—तीनों को एकसाथ नई दिशा देने का प्रयास किया.