दिवाली: केवल पर्व नहीं, वैश्विक चेतना का प्रतीक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-10-2025
Diwali: Not just a festival, it is a symbol of global consciousness
Diwali: Not just a festival, it is a symbol of global consciousness

 

 अमीर सुहैल वानी

दिवाली, जिसे "रोशनी का त्योहार" कहा जाता है, हिंदू परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रतीकात्मक पर्व है, जो न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी मनाया जाता है.यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, और बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव है.जब घरों, गलियों और मंदिरों को मिट्टी के दीयों, मोमबत्तियों और बिजली की झालरों से सजाया जाता है, तो यह दृश्य केवल बाहरी सजावट भर नहीं होता; यह गहराई से आत्मिक और प्रतीकात्मक अर्थ लिए होता है.यह रोशनी उस आंतरिक उजाले का प्रतिनिधित्व करती है जो भय, लालच, और घृणा जैसे मानसिक और नैतिक अंधकार को दूर करती है.

Customers buy paper lanterns and other decorative items at a shop in Mumbai ahead of Diwali in 2023.

दिवाली के साथ जुड़े पौराणिक प्रसंग—जैसे भगवान राम का रावण पर विजय के बाद अयोध्या लौटना, देवी लक्ष्मी की पूजा, या भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध—महत्त्वपूर्ण हैं, परंतु इनसे परे दिवाली का मर्म एक व्यापक, सार्वभौमिक चेतना का आह्वान करता है.यह आत्म-जागृति, नवीनीकरण और आंतरिक स्पष्टता की यात्रा का प्रतीक है.दीया जलाना एक ऐसा कर्म बन जाता है जो मनुष्य की उस शाश्वत आशा को अभिव्यक्त करता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी अंधकारमयी क्यों न हों, अंततः सत्य, सद्गुण और ज्योति की ही जीत होगी.

हिंदू धर्म में, प्रकाश या ज्योति को ब्रह्म—उस परम चेतना का प्रतीक माना गया है जो सम्पूर्ण सृष्टि को प्रकाशित करती है.उपनिषदों में इसे "सभी ज्योतियों का प्रकाश" कहा गया है, जो स्वयं आत्मा में वास करता है.वहीं अज्ञान, जिसे ‘अविद्या’ कहा गया है, उस आंतरिक प्रकाश पर पड़ा आवरण है.अतः दिवाली के दीयों को जलाना केवल परंपरा नहीं बल्कि एक गहरा रूपक है, जिसमें आत्म-ज्ञान के माध्यम से अज्ञान के अंधकार को मिटाने की आकांक्षा छिपी होती है.

भगवद गीता में ईश्वर को वह प्रकाश बताया गया है जो सूर्य, चंद्रमा और अग्नि से परे चमकता है.इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि सच्चा प्रकाश बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक है.दिवाली की रात का हर दीया एक मौन प्रार्थना बन जाता है, आत्मिक जागरण और आत्मिक शांति की ओर पहला कदम.

प्रकाश और अंधकार का यह प्रतीकवाद केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं है; यह विश्व के लगभग सभी प्रमुख धर्मों में एक सामान्य आध्यात्मिक भाषा के रूप में प्रकट होता है, जो मानवीय चेतना में सत्य, ज्ञान और नैतिकता की तलाश को दर्शाता है.बौद्ध धर्म में, प्रकाश ‘बोधि’ यानी ज्ञानोदय और जागृति का प्रतीक है.बुद्ध को "एशिया का प्रकाश" कहा जाता हैऔर उनकी शिक्षाएं उस दीपक के समान मानी जाती हैं जो मानव को दुःख और भ्रम से मुक्ति की राह दिखाती हैं.

People often mark Dhanteras, the first day of the Diwali festival, by purchasing gold or silvery jewelry.

वेसाक जैसे पर्व, जो बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और निर्वाण की स्मृति में मनाया जाता है, दीयों और रोशनी से युक्त होता है,जो दिवाली के समान ही अज्ञान पर जागरूकता की जीत का प्रतीक है.

जैन धर्म में दिवाली का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था.इस अवसर को केवल सांसारिक विजय के रूप में नहीं, बल्कि शुद्ध चेतना की प्राप्ति और कर्मों के बंधन से मुक्ति के रूप में देखा जाता है.दीपक जलाना यहाँ ‘केवल ज्ञान’ के प्रकाश को श्रद्धांजलि देने का कार्य बन जाता है.

इसी प्रकार सिख धर्म में दिवाली 'बंदी छोड़ दिवस' के रूप में मनाई जाती है, जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने 52 राजाओं को साथ लेकर मुग़ल कारावास से मुक्ति पाई थी.अमृतसर का स्वर्ण मंदिर इस दिन हज़ारों दीयों से जगमगाता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता, साहस और मानवता के प्रति दैवी मार्गदर्शन का प्रतीक है.सिख मत में हर व्यक्ति के भीतर मौजूद “जोत” यानी आंतरिक प्रकाश की बात भी की जाती है.

ईसाई धर्म में भी प्रकाश अत्यंत गहरा प्रतीक है.बाइबल में यीशु को "दुनिया का प्रकाश" कहा गया है, जो अंधकार में चमकता है और जिसे अंधकार कभी पराजित नहीं कर सकता.चर्चों में जलती मोमबत्तियाँ न केवल प्रार्थना, बल्कि आस्था, आशा और पवित्र आत्मा की उपस्थिति का संकेत देती हैं.क्रिसमस और ईस्टर जैसे त्योहार यह रेखांकित करते हैं कि यह दिव्य प्रकाश ही पाप, पीड़ा और निराशा के अंधकार को दूर करता है.

Students in the Indian city of Guwahati light oil lamps on a rangoli, a traditional Indian art form that is a staple of Diwali celebrations.

इस्लाम में, कुरान की सूरह अन-नूर (24:35) में अल्लाह को "आकाशों और पृथ्वी का प्रकाश" कहा गया है.यह प्रकाश मार्गदर्शन, करुणा और सत्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो अज्ञान और गुमराही को दूर करता है.कुरान में वर्णित दीपक, जिसमें शुद्ध तेल जलता है, एक ऐसे दिल का रूपक है जो ईमान, पवित्रता और अच्छे कर्मों से जगमगाता है.

इस प्रकार, सभी धर्मों में प्रकाश न केवल भौतिक ज्योति है, बल्कि बौद्धिक स्पष्टता, आध्यात्मिक शुद्धता और नैतिकता का प्रतीक है.वहीं अंधकार कोई स्थायी या दुष्ट शक्ति नहीं, बल्कि केवल उस स्थिति का नाम है जहाँ ज्ञान और समझ की अनुपस्थिति है.मनुष्य की आध्यात्मिक यात्रा इसी द्वंद्व से गुजरती है.अंधकार से प्रकाश की ओर, भ्रम से सत्य की ओर, और भौतिकता से दिव्यता की ओर.

आज की दुनिया जहाँ हिंसा, असमानता, और मानसिक-सामाजिक असंतुलन व्याप्त हैं, वहाँ दिवाली का संदेश और भी प्रासंगिक हो जाता है.एक दीया जलाना मात्र परंपरा नहीं बल्कि एक घोषणा है.एक शांति की पुकार, करुणा में विश्वास और समाज को बदलने की आकांक्षा.यह हमें यह भी याद दिलाता है कि कोई भी सामाजिक परिवर्तन तब तक संभव नहीं जब तक हम अपने भीतर की रोशनी को न पहचानें और उसे पोषित न करें.जब हर व्यक्ति करुणा, ज्ञान और विवेक के दीपक को जलाएगा, तभी यह सामूहिक रोशनी समाज के सबसे अंधकारमय कोनों को भी उजागर कर सकेगी.

A market in Singapore's Little India district is stocked with decorations ahead of Diwali.

इस प्रकार, दिवाली केवल एक हिंदू त्योहार नहीं, बल्कि एक वैश्विक, मानवीय और आध्यात्मिक प्रतीक बन जाती है.यह उस दिव्य चिंगारी का उत्सव है जो हर आत्मा में निहित है—प्रतीक्षारत, केवल एक चिंगारी की दूरियों पर.दिवाली उस प्रेरणा का नाम है जो हमें बार-बार यह याद दिलाती है: प्रकाश और प्रेम की शक्ति, किसी भी अंधकार और घृणा से कहीं अधिक महान है.