सिराज अली /पटना/ नई दिल्ली
शरीर से कमजोर, लेकिन मन से मजबूत और उत्साह से भरपूर. एक चमकता हुआ चेहरा और किसी भी परिस्थिति में कभी हार न मानने का भाव. यह कहानी है बिहार के मधुबनी जिले के शम्स आलम की. आज शम्स आलम बिहार में ही नहीं, देश-विदेश में भी पैरा तैराक के तौर पर अपना नाम बना रहे हैं. कई रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं.
मगर उनका सफर किसी रोलर कोस्टर राइड से कम नहीं.शम्स आलम का जन्म 17 जुलाई 1986 को राठोस गांव में मुहम्मद नसीर के घर हुआ था. आलम को बचपन से खेलों का वह भी तैराकी का शौक था.
शम्स आलम ने अपना पूरा बचपन मधुबनी में बिताया. एक दिन उनके परिवार ने उन्हें मुंबई भेजने का फैसला किया. मुंबई में उन्हांेने एक सरकारी स्कूल में पढ़ाई शुरू की. वहां मार्शल आर्ट सीखा. कई पदक जीते. तैराकी और मार्शल आर्ट के उनके जुनून ने उन्हें एशियाई खेलों में एक मजबूत दावेदार के रूप में प्रेरित किया.
चूंकि कुछ साल पहले, अभ्यास के दौरान, शम्स आलम को अपनी पीठ में हल्का दर्द महसूस होने लगा था, जिससे उनकी चाल प्रभावित होने लगी थी. उनकी रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर का पता चलने के बाद डॉक्टरों ने सर्जरी की सलाह दी. एशियाई खेलों में भाग लेने के बजाय, आलम ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर सर्जरी की तैयारी करते हुए पाया.
एक ऑपरेशन किया गया, लेकिन उनके सीने के नीचे शरीर का निचला हिस्सा स्थिर था. डॉक्टरों ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह दो या तीन सप्ताह में दौड़ना शुरू कर देंगे, लेकिन वह दिन नहीं आया.एक और सर्जरी की गई, लेकिन पैराप्लेजिक नामक एक बीमारी के कारण शरीर का निचला हिस्सा सुन पड़ गया.
फिजियोथेरेपी उन्हें वापस पानी में ले गई... लेकिन व्हीलचेयर में
इस बेबसी की स्थिति में फिजियोथैरेपी सेशन में डॉक्टर ने कहा कि इस तरह की बीमारी में स्विमिंग करने से काफी मदद मिलती है. आलम ने आशा की एक किरण देखी. तैराकी में लौटने के लिए उत्सुक हो गए.
अगले दिन वे स्वीमिंग पूल पहुंचे लेकिन अधिकारियों ने मना कर दिया, क्योंकि वे यह समझने में असफल रहे कि व्हीलचेयर में बैठा व्यक्ति कैसे तैर सकता है. लगातार उन के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा रहा. हर जगह अधिकारियों को डर था कि आलम डूब जाएंगे. उनका स्विमिंग पूल बंद हो जाएगा. मगर आलम को जिद थी. आखिरकार, लगातार इनकार के बाद, उन्हें एक रास्ता मिल गया.
शम्स राजा राम से मिले, जो विभिन्न क्षमताओं के तैराक भी थे, जिन्होंने उन्हें तैरने के लिए प्रोत्साहित किया. शम्स आलम ने तैरना शुरू किया. अपने फार्म पर काम किया. राज्य और राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते. इसके बारे में बात करते हुए, आलम ने कहा, मुझे कभी नहीं पता था कि तैराकी मेरा करियर बन जाएगा. मैंने तैराकी में चार स्वर्ण पदक जीते और इससे मुझे बहुत खुशी हुई.
एक बार जब शम्स आलम पानी में लौट आए, तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनके असली साहस ने काम किया. वह लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. नियमित रूप से पैरालंपिक खेलों की तैयारी करते रहे. आलम ने गंगा नदी तैराकी चौंपियनशिप के अपने वर्ग में दो किलोमीटर की दौड़ 12 मिनट 23 सेकेंड में पूरी कर इतिहास रच दिया.
सम्मान और पुरस्कार
2017 में आलम ने 4 घंटे 4 मिनट में 8 किमी खुली समुद्री तैराकी पूरी करके अपना ही रिकॉर्ड तोड़ दिया. वह एक पैरापेलिक द्वारा उच्च समुद्र में सबसे लंबी दूरी की तैराकी पूरी करने के लिए विश्व रिकॉर्ड धारक बन गए.
आलम ने 20 से 24 नवंबर 2019 तक पोलैंड में पोलिश ओपन स्विमिंग चैंपियनशिप के छह डिस्प्ले में भाग लिया. 50 मीटर बटरफ्लाई और 100 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक में चैंपियन बने. इस उपलब्धि को राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी कहा जाता है. वहीं उन्हें बिहार चुनाव आयोग का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया.
उन्हें राज्य सरकार के खेल विभाग द्वारा बिहार टास्क फोर्स का सदस्य बनाया गया. 2018 में बिहार खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित आलम को 2019 में कर्ण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.
शम्स आलम कहते हैं कि मेरी विकलांगता के बाद से मेरे जीवन में बहुत कुछ बदल गया है. विकलांग लोगों के प्रति मेरा नजरिया बदल गया है. मैंने पैर सपोर्ट एसोसिएशन, मुंबई की शुरुआत की, जो अब एक पंजीकृत संस्था है. यह विकलांग लोगों के लिए खेल में अपनी प्रतिभा दिखाने का एक मंच है.
इसी वर्ष 6 जून को, उन्हें नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर व्हीलचेयर लेने के लिए कथित तौर पर 90 मिनट तक इंतजार करना पड़ा. आलम ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न से 12 घंटे की यात्रा के बाद भारत लौटे थे.
उन्होंने दावा किया कि हवाई अड्डे पर उतरने के बाद उन्हें व्हीलचेयर प्रदान की गई जो कि असुविधाजनक थी. हालांकि, एयर इंडिया ने दावा किया कि व्हीलचेयर को मानक प्रक्रिया के अनुसार प्रदान किया गया था. हवाई अड्डे की सुरक्षा कारणों से व्यक्तिगत व्हीलचेयर में देरी हुई थी.
सब के लिए प्रेरणास्रोत
शम्स आलम कहते हैं, जो हुआ उसके बारे में रोते हुए मैं अपना शेष जीवन नहीं बिताना चाहता था. अब मैं आगे बढ़ना चाहता हूं. हालात सामान्य होने में करीब डेढ़ साल का समय लगा.
अब तमाम मुश्किलों के बावजूद शम्स आलम ने दुनिया में अपना और अपने देश का नाम ऊंचा करने की ठान ली है. वह लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं.