बीसीसीआई को 538 करोड़ रुपये मुआवजा देने का आदेश, बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 19-06-2025
Bombay High Court orders BCCI to pay Rs 538 crore as compensation
Bombay High Court orders BCCI to pay Rs 538 crore as compensation

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली 

क्रिकेट की दुनिया में दबदबा रखने वाला भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) इस बार कानूनी पिच पर क्लीन बोल्ड हो गया है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) की पूर्व फ्रेंचाइज़ी कोच्चि टस्कर्स केरल के साथ अनुबंध खत्म करने को गलत करार देते हुए बीसीसीआई को 538.84 करोड़ रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है.

किसे कितना मिलेगा?

  • कोच्चि क्रिकेट प्राइवेट लिमिटेड (KCPL) को ₹385.50 करोड़

  • रेंडेज़वस स्पोर्ट्स वर्ल्ड (RSW) को ₹153.34 करोड़

क्या है मामला?

कोच्चि टस्कर्स केरल ने 2011 में अपना पहला और एकमात्र आईपीएल सीज़न खेला था. टीम का प्रदर्शन औसत रहा और वे 10 टीमों में से 8वें स्थान पर रही. लेकिन सितंबर 2011 में BCCI ने यह कहते हुए फ्रेंचाइज़ का कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया कि टीम तय समयसीमा में बैंक गारंटी जमा करने में नाकाम रही.

टीम के मालिकों ने इस फैसले को चुनौती दी और मामला मध्यस्थता न्यायाधिकरण तक पहुंचा. 2015 में न्यायाधिकरण ने फैसला सुनाया कि BCCI का फैसला अनुचित था और कोच्चि टस्कर्स के पक्ष में मुआवज़े का आदेश दिया.

BCCI ने उस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और मध्यस्थता के फैसले को बरकरार रखा.

कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस रियाज़ आई. चागला ने अपने आदेश में साफ किया कि:"मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत अदालत का अधिकार सीमित है. सिर्फ इसलिए कि BCCI फैसले से असंतुष्ट है, यह उसे खारिज करने का आधार नहीं बनता."

उन्होंने कहा कि BCCI द्वारा बैंक गारंटी की मांग अनुबंध के खिलाफ थी और यह मध्यस्थता का निष्कर्ष साक्ष्य के अनुरूप है.

आगे क्या?

हालांकि, BCCI को तत्काल मुआवज़ा नहीं देना होगा। कोर्ट ने बोर्ड को अपील दायर करने के लिए 3 से 6 सप्ताह की मोहलत दी है.

जहां BCCI अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट प्रशासन की शक्ति के रूप में देखा जाता है, वहीं यह फैसला यह दर्शाता है कि न्यायिक प्रक्रियाओं में सभी बराबर हैं. कोच्चि टस्कर्स केरल जैसे छोटे खिलाड़ियों के पक्ष में आया यह फैसला भारतीय खेल प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.