मेव मुसलमानों के बीच महाभारत की कथा कहने की खास शैली है 'पांडून का कड़ा'

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 22-01-2023
'पंडून का कड़ा': मेव मुसलमानों की महाभारत की कहानी
'पंडून का कड़ा': मेव मुसलमानों की महाभारत की कहानी

 

यूनुस अल्वी/ नूह

महाकाव्य महाभारत में वर्णित कुरुक्षेत्र के युद्ध से भारत में तकरीबन हर कोई परिचित है, पर बहुत कम लोग जानते हैं कि हरियाणा के मेवात इलाके में मेव मुस्लिम भी महाभारत की कहानी को अपने अंदाज में कहते हैं. असल में, हरियाणा के एक मुस्लिम शायर सादुल्लाह ने ‘पांडून का कड़ा’ नाम से मेवाती भाषा में ‘महाभारत’ की पूरी कथा दोहों के रूप में लिखी है. इसकी एक बानगी देखिए,

‘समय करे न नर क्या करे, समय बड़ा बलवान,

भीलन ने लूटी गोपनी, जा दिन वई अरजन वई बाण.’

मेवाती दोहों में मुसलमान गाते हैं महाभारत की गाथा

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हाजी ताहिर खान मेव मुस्लिमों के इतिहास पर लिखी पुस्तक दिखाते हुए  

हालांकि, ‘पांडून का कड़ा’ कहीं लिखित स्वरूप में मौजूद नहीं है. इसे लेकर आज तक सरकारी स्तर पर कोई शोध-अध्ययन भी नहीं हुआ है. भारत सरकार की वेबसाइट इंडिया कल्चर डॉट इन में ‘मौखिक परंपराएं और अभिव्यक्तियां‘ शीर्षक से इस बारे में चार लाइन के संक्षिप्त परिचय में बताया है, ‘‘16वीं शताब्दी में सादुल्ला मेव ने 2500मेवाती दोहे लिखे हैं.’’ इसके अलावा मेवात के एक सेवानिवृत्त इंजीनियर सिद्दीक अहमद मेव इस पर रिसर्च कर रहे हैं, जो अब तक सामने नहीं आया है. आवाज-द वॉयस से बातचीत में सिद्दीक अहमद मेव कहते हैं, ‘‘इस काम के लिए हरियाणा सरकार से सहयोग मिल रहा है.’’

सद्दीक अहमद मेव के अनुसार, “मेवाती भाषा के 50से भी अधिक मशहूर शायर हुए हैं, जिनमें सादल्ला सबसे प्रमुख हैं. उनके अलावा भीकजी, ऐवज खां, मियांजी रूजदार, खक्के, सूरत, हंशा, उमराव, अब्दुल रहीम, खैराती, जोमखां, राजू खां, सूमेर खां, सुल्तान खां, पीरखां, फूल खां, अहमद खां, कमरूद्दीन, चांद खां, गुलतार, इस्माईल, हाजी मोहम्मद इसराईल, जीत खां, छज्जू, खानवे, अय्यूब, उमर खां, चंद्रखां, अलीजान, फौजी उसमान खां, शाहजो बाई, सन्नूं खां, दादा अमीरा, हकीम जी बैणी मेहता, सुल्तान, हाजी मेहताब, हमीद सरपंच, मियांजी गुलाम, अब्दुल हमीद, नबीखां, खैराती, सरूपा, खुबी खां, मम्मनखां, शम्सुद्दीन का नाम भी मेवाती शायरों में खास है.

वह बताते हैं कि बंटवारे के समय कई मेवाती शायर मेवात से पाकिस्तान चले गए थे, जिनके वंशज आज भी इस परंपरा को आगे बढ़ाने में सक्रिय हैं. 

मेवात का श्रीकृष्ण से रिश्ता

सादल्ला मेवात के गांव आकेड़ा के रहने वाले थे. उनके बारे में मशहूर है कि उन्होंने महाभारत की पूरी कहानी मेवाती दोहे की शक्ल में रच डाली थी, जो आज भी खास अवसरों पर गाई जाती है.

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मेवात की जल संपदा 


कुरुक्षेत्र हरियाणा में होने के चलते मेवात के लोग खुद को ‘महाभारत’ से जोड़ते हैं. धार्मिक मान्यता है कि मेवात से लगते मथुरा से भगवान श्रीकृष्ण मेवात होकर कुरुक्षेत्र गए थे. ‘पांडून का कड़ा’ के कई दोहों में श्रीकृष्ण और मेवात के रिश्तों की झलक मिलती है.

एक दोहे में सादुल्ला कहते हैंः

मेरों आकेड़ा अस्थान रब ने भलो बसायों!

 है सादल्लाह मेव, बास ओंड़ा पायों!

आकेड़ा सुबस बसे, जाके ऊपर है अल्लाह!

किस्सों है पंडून को, कथ कर गावें सादल्लाह!

सत्रह सौ सत्ताणवें, वर्ष गये हैं बीत!

जाणू पन्डू अब हुआ, जिन की जगत करे परतीत!

जग रची सांवला मेव के, आई सब संसार!

वा सम्बत सादल्लाह कथे, उन पन्डून के उपकार!

आज के मेवाती युवा भले सादल्ला के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हों, पर बुजुर्गों के दोहे के रूप में गांव की चौपालों और विभिन्न आयोजनों पर आज भी मेवाती महाभारत गाया जाता है. मेवात के 30फीसदी से अधिक मुस्लिमों को मेवाती महाभारत जुबानी याद है. इस बारे में यूं भी कह सकते हैं कि पांडुओं के जन्म से लेकर महाभारत काल तक के तमाम किस्से मेवातियों को कंठस्थ याद हैं.

पांडून के कड़े की नहीं बची निशानी

महान मेवाती शायर सादल्ला ने करीब 293 साल पहले मेवाती दोहे की शक्ल में महाभारत लिखा था. यह दीगर है कि आज उनकी लिखी महाभारत की कोई निशानी मौजूद नहीं.

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मेव बुजुर्ग सादुल्ला खां की शायरी पर चर्चा करते हुए  


मेवाती कथाओं के अनुसार, देश के बंटवारे के समय सादल्ला के परिजन जब पाकिस्तान जा रहे थे, उनकी वह सारी चीजें गांव के कुंए में फेंक दी गईं, जिस पर पांडून का कड़ा लिखा गया था.

सादल्लाह के दोहों के अनुसार, महाभारत के महत्वपूर्ण पात्र पांडव और कौरव करीब पांच हजार साल पहले पैदा हुए थे. सादल्ला के दोहों में उनके जन्म का जिक्र किया है. वह पांडून का कड़ा में कहते हैं,

बीते चार हजार पे छ सौ और छत्तीस!

जानू पंडू कब हुआ इनकी जगत करें परतीत!

सतरह सौ सतासिया बरस गया है बीत!

जानू पंडू आज हां जिनकी जगत करें परतीत!

वे अपने दोहे में कहते हैं, ‘‘मैं जानता हूं कि 4636साल बीत गए, जब पांडव पैदा हुए.” वह आगे लिखते हैं. 1787 संवत (सन 1730) साल बीत गए, अब पता नहीं पांडव कहां हैं. सादल्ला ने महाभारत पर अपनी शायरी सन 1930में पूरी की थी, तब यह लिखा था. इससे जाहिर होता है कि 2023तक कौरव-पांडवों के पैदा हुए 4899साल बीच चुके हैं.

आकेड़ा और सादल्ला का इतिहास

सादल्ला की 21वीं पीढ़ी के हाजी जैद आकेड़ा कहते हैं, “मेवली के जागीरदार राव माहला ने अपनी बेटी आखो की शादी राजस्थान के लालपुरी निवासी मजलस उर्फ माझल से की थी. करीब 1,100साल पहले जागीरदार राव माहला ने 12,092बीघा जमीन अपनी बेटी आखो को देकर गांव आकेड़ा बसाया था.”

वह आगे बताते हैं, “राजू उर्फ यारू के दो लड़के सादइलाही उर्फ सादल्ला और नाद इलाही उर्फ नादल्ला थे. सादल्ला की एक लड़की थी, जिसकी शादी रीठट में थी. भाई नादल्ला के कई लड़के हुए. आकेड़ा में आज यारू के वंश हैं, वह नादल्ला की ही औलादों में से हैं. आगे चलकर साद इलाही उर्फ सादल्ला शायर बन गए.

गांवों की चौपालों में शौक से सुनी जाती है महाभारत

सादल्ला की दोहे में पांडवों और कौरवों की कुरुक्षेत्र की लड़ाई का भी जिक्र है. आज मेवात के जितने भी मिरासी और बुजुर्ग हैं, वे सब महाभारत को दोहे गाते हैं. इंडियन आइडल चैंपियन सलमान अली भी मेवात के हैं और मिरासी परिवार से हैं.

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हाजी जैद खान 


हाजी जैद बताते हैं, ‘‘सादल्ला के बाद इस परिवार से भतीजे नबी खान सहित एक दर्जन शायर हुए. नबी खां ने भी अभिमन्यु के चक्रव्यूह में फंसने पर दोहे लिखे हैं. मेवात की मिरासी बिरादरी आज भी समारोहों में ‘पंडू के कड़ा‘ गाते हैं. कुछ लोग तो सादल्ला को वली मानते हैं. उन्हें इलहाम (गैबी बात का पता चलना) होता था. उन्होंने बताया कि सन 1700में घासेड़ा गांव राव बहादुर की सल्तनत में था.

सादल्ला शायर थे या नजूमी

बताते हैं कि एक बार भरतपुर के राजा सूरजमल और राव बहादुर के राजघराने दिल्ली में जमा हुए. तभी उनकी किसी बात पर खटपट हो गई. इससे नाराज होकर सूरजमल ने 3अप्रैल, 1955को घासेड़ा पर हमला कर दिया.

लेकिन हमले से पहले राव बहादुर ने अपने नजूमियों को बुलाकर पूछा कि बताएं सूरजमल के साथ होने वाले युद्ध में कौन हारेगा और कौन जीतेगा. तब नजूमियों ने कहा कि सादल्ला को बुलाएं. उन्हें ही महीनों के आगे-पीछे की बातें मालूम रहती है.

सादल्ला को राव बहादुर के दरबार में बुलाया गया. राव बहादुर और सादल्ला के बीच हुई बातचीत भी सादल्ला के दोहे में मिलती है. ये बातें हाजी ताहिर हुसैन जैताका कि किताब ‘मेव कौम की तहजीब का आईना‘ के पहले भाग में भी दर्ज है.

इस पुस्तक के अनुसार, राव बहादुर सादल्ला से कहते हैंः

तेरी सुनी अवाई बहुत सी, पर आंखन देखो आज!

या गढ़ घासेड़ा गांव में, मेरो कितना दिन को राज!

ठस पर सादल्ला का दोहे के रूप में राव को जवाब देते हैंः

सादल्ला सांची कहें, कदियन बोला झूंठ!

छटे महिना तेरा या महल में, गादड़ बोलंगा झूंठ!

राव साहब फिर सवाल करते हैं:

सुनके सादल्ला की बात, राव पे सुरखी छाई!

हीं मेरो बैठो वजीर उमराव, देहशत न तेने खाई!

हीं मेरो बैठो सभी कुटम परवार, सावंत हीं खडा हां भाई.

सादल्ला कुछ सोच ले, मन चित करले गौर!!

अपनी और बताई दे, जिंदगी तेरी कितनी और!

इस पर सादल्ला का जवाब थाः

सादल्ला यूं कहे, मरे ना बिना अवादे!

वाय मार सके ना कोय, जिंदो जाय अल्लाह राखे!

कहा तेरो करे वजीर उमराव, कहा तेरा करां सिपाईफ!

कहा तेरो करे कुटम परिवार, करा कहा सांवत भाई!

मोह देहशत आवे नाय है, मोलू है वा मालिक की ओेट!

छह महिना तक बादशाह मोय, अपनी रा दीखे है मौत!

आखिर में राजा राव सादल्ला की बातों से सहमत नहीं हुए और सामने खड़ाकर तोप चला दिया. पर गोला नहीं फटा. इसके बाद उन्हें हाथी के सामने डाला गया, पर वह फिर भी बच निकले. इसका जिक्र भी सादल्ला के दोहों में मिलता है.

मेवात और सद्भावना की परंपराएं

उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा के सीमावर्ती इलाके में फैले मेवात क्षेत्र की 80प्रतिशत आबादी मेव मुसलमानों की है. इसके बावजूद यह इलाका हिंदू-मुस्लिम की साझा संस्कृति की जिंदा मिसाल है.

यह इलाका भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा की चालीस कोस की परिक्रमा से बिल्कुल सटा हुआ है. इस क्षेत्र में हरियाणा के पलवल, फरीदाबाद, गुरुग्राम, नूंह, राजस्थान के अलवर, भरतपुर, उत्तर प्रदेश के मथुरा, गाजियाबाद और दिल्ली के कई जिले आते हैं. इसके अलावा भारत के 10राज्यों के करीब 100जिलों में भी मेव समाज के लोग छिटपुट संख्या में आबाद हैं.

कहते हैं, उनके बीच भी सादल्ला के दोहे समान रूप गाए और सुने जाते हैं. बंटवारे के समय करीब दो करोड़ आबादी मेवात से पाकिस्तान चली गई थी. उनके बीच भी सादल्ला काफी चर्चित हैं. बंटवारे के समय यहां से पाकिस्तान जाने वाले मेव शायर सादल्ला के दोहे भी साथ ले गए.

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मेव महिलाएं कपड़े धोती हुईं 


मेवात समाज के लोग खुद को सूर्यवंशी और चंद्रवंशी मानते हैं. मेव हिंदुओं की तरह गोत्र और पालों में बंटे हैं. जानकारी के मुताबिक, मेव 52गोत्र और 12पालों में बंटे हैं. इतिहास के अनुसार, मेव समाज के लोग करीब हजार साल पहले ठाकुर, गूजर, जाट, ब्राह्मण, राजपूत और क्षत्रिय थे, जिन्होंने बाद में धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम धर्म कबूल लिया.

मेवात है साझी संस्कृति की अनूठी मिसाल

हालांकि, इन बातों को बीते सालों गुजर जाने के बावजूद मेव मुस्लिम हिंदुओं के कई रीति-रिवाज को मानते हैं. मेवात में होने वाली रामलीलाओं में मुस्लिम समाज के लोगों को मुख्य भूमिकाओं में देखा जा सकता है.

रामलीलाओं के ज्यादातर साजिंदे मुसलमान होते हैं. रामलीलाओं के दर्शकों में भी बड़ी संख्या मुस्लिमों की होती है. यहां काबिले-गौर बात एक यह भी है कि मेवात से ही तब्लीगी जमात का आंदोलन शुरू हुआ था.

‘पांडून के कड़ा’ महाभारत में जो पात्र दर्शाये गये हैं, उनको निम्न प्रकार से सम्बोधित किया गया हैः

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