ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
सभी जानते हैं कि एमएफ हुसैन रंगों के बेताज बादशाह थे और भारत के पिकासो नाम से मशहूर हुए लेकिन इस दुनिया में अभी भी एक अफ्फाक़ हुसैन हैं जो लोगों की जिंदगी अपने रंगों से भर रहें हैं. दीवाली का त्यौहार नजदीक है और घरों के रंगरोगन का काम जारी है ऐसे में हिन्दू घरों को अपने पेंटिंग ब्रश के हुनर से रंगने वाले अफ्फाक़ हुसैन से आवाज द वॉयस ने बातचीत की.
40 वर्षीय अफ्फाक़ हुसैन दिल्ली के इंदिरापुरम में किराए के मकान में रहते हैं और पुताई का काम करते हुए उन्हें कई वर्ष बीत चुके हैं वे अपने गांव लखीमपुर से दिल्ली में 20 वर्ष पहले आकर बसे थे.
अफ्फाक़ हुसैन ने आवाज द वॉयस को बताया कि दीवाली पर उनका काम खूब बढ़ जाता है और वे महीने का 15 से 20 हज़ार रुपया कमा लेते हैं. हिन्दू अपने घरों में रंगरोगन का काम करने के लिए उनसे संपर्क करते हैं और आदर सम्मान के साथ उन्हें अपने घर पर बुलाते हैं.
अफ्फाक़ हुसैन दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद आदि जगह घरों में जाकर रंगरोगन का काम करते हैं. अफ्फाक हुसैन पूरी दिल्ली में चंगू पेंटर के नाम से भी जाने जाते हैं.
वे अपनी कला के धनी है जिस कारण सभी उनके काम को सराहते हैं. सादा पुताई हो या फिर प्लास्टिक पेंट, रॉयल पेंट वे सभी तरह की पेंटिंग करने में माहिर हैं.
मुस्लिम पेंटर अफ्फाक़ हुसैन दीवाली, शादी और खास मौकों पर हिन्दू घरों की वाइट वाश करते हैं. मकान को दुल्हन की तरह प्यारा सज़ा देते हैं.
अफ्फाक़ हुसैन ने बताया कि लोग उन्हें जैसा आर्डर देते हैं और जैसी इच्छा जाहिर करते हैं वे उन्हें वैसी ही पेंटिंग करके देते हैं ये काम वे ठेके और दिहाड़ी दोनों तरीकों पर संपन्न करते हैं.
ठेके के लिए वे मजदुर जुटाते हैं जिसमें हिन्दू मुसलामन मजदुर साथ मिलकर पेंटिंग का काम खत्म करते हैं.
अफ्फाक़ हुसैन ने आवाज द वॉयस को बताया कि जब लोग अपने घरों को रंगा हुआ देखकर खुश होते हैं तो उनके चेहरों की मुस्कान देखकर ही वे अपनी थकान भूल जाते हैं और अपनी मेहनत को सफल मानते हैं.
अफ्फाक़ हुसैन जब लोगों के घरों को दीवाली के लिए रंगते हैं तो उनकी भी दीवाली होती है उनके घर भी रोशनी होती है उनके बच्चों के चेहरों पर भी मुस्कान की लाली छा जाती है, उनके घर भी दीवाली की मिठाई आती है जिसका आनंद वे अपने पुरे परिवार के साथ मनाते हैं.
अफ्फाक़ हुसैन ने बताया कि काम के दौरान ही वे अपने काम की जगह नमाज भी अदा करते हैं जिसमें सभी उनका सहयोग करते हैं और किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होती.
अफ्फाक़ हुसैन ने बताया कि 3 बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी बी.ए. कर रही है, उससे छोटी लड़की नोवी कक्षा में है, उससे छोटी सातवीं में है और बेटा चौथी कक्षा में पढ़ता है.
अफ्फाक़ हुसैन कहते हैं कि बड़ी लड़की बीए के बाद जो भी पढ़ाई करना चाहेगी वे उसे कराएंगें और काबिल बनाएंगें, उन्होनें कहा कि जबतक मैं हूँ अपने बच्चों को खुद अपने पैरों पर खडा देखना चाहता हूँ.
जबतक मैं जिन्दा हूँ तबतक मेरी सास है इन बच्चों की आस हैं इनकी अम्मी भी बच्चों और घर की देखभाल में लगीं रहतीं हैं.
अफ्फाक़ हुसैन मकान, पानी, बिजली मिलाकर 4000 रुपया महीना किराया देते हैं अपने परिवार का पालन पोषण राजधानी दिल्ली में पुताई, रंगरोगन के काम से करते हैं. अफ्फाक़ हुसैन ने सरकार से लेबर क्लास मजदूरों के लिए स्थायी निवास के इंतजाम करने की गुजारिश भी की.
अफ्फाक हुसैन दिवाली के लिए हिंदू घरों को रंगने का काम करते हैं जो हिन्दू मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक है क्योंकि इसी कमाई से अफ्फाक हुसैन की रोज़ी रोटी चलती है. वाकई दीवाली का त्यौहार एकता का प्रतीक है, सद्भावना की निशानी है.
अफ्फाक हुसैन की कहानी हो या उस युवा उमर कुम्हार की कहानी हो जो दीवाली के लिए दीपक तैयार कर रहा है. ऐसी कहानियां इस बात को साफ करतीं हैं कि त्योहारों का माहौल, उसकी खुशी और जश्न कभी किसी की भावना को कोई ठेस नहीं पहुंचा सकता. त्योहारों का मतलब ही है एकसाथ मिलकर खुशी मनाना.