जहां चाह वहां राह, जानिए कौन हैं कश्मीर के दृष्टिबाधित विद्वान डॉ. इशाक अहमद मगरे

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 28-03-2023
जहां चाह है वहां राह है, पढ़िए कौन हैं कश्मीर के दृष्टिबाधित विद्वान डॉ. इशाक अहमद मगरे
जहां चाह है वहां राह है, पढ़िए कौन हैं कश्मीर के दृष्टिबाधित विद्वान डॉ. इशाक अहमद मगरे

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
यह धारणा कि भारत में मुसलमानों को हाशिए पर रखा जाता है, पूरी तरह से गलत है. मैं इस बात का जीता-जागता उदाहरण हूं कि इस देश में मुसलमानों को अवसरों से वंचित नहीं किया जाता है: डॉ. इशाक अहमद मगरे जहां चाह है वहां राह है इस कहावत को सार्थक करते हुए डॉ. इशाक अहमद मगरे ने उन सारी धारणाओं को तोड़ दिया है जो ये कहती है कि एक दृष्टिबाधित शख्स जिंदगी में कभी कुछ हासिल नहीं कर सकता. 

डॉ. इशाक अहमद मगरे जम्मू और कश्मीर के हिंदवाड़ा से हैं जिन्होनें हाल ही में नई दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास (पीएचडी) में डॉक्टरेट पूरा किया है. 
 
 
उन्होंने 1605 से 1658 तक कश्मीर में मुगल प्रशासन और राजनीति में नौ वर्षों की अवधि में शोध करते हुए डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ विजुअली हैंडीकैप्ड, देहरादून से 2005 में इतिहास में आगे रुचि रखते हुए वो शोध के लिए दिल्ली हिंदू कॉलेज आए. 2008 में अपना स्नातक पूरा करने के बाद, इशाक अहमद ने जेएनयू में दाखिला लिया और फिर प्रोफेसर हीरामन तिवारी के अधीन पीएचडी की.
 
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे की 1586 से 1605 तक कश्मीर में मुगल प्रशासन की राजनीति शीर्षक के नाम से एक किताब भी प्रकाशित हो चुकी है.  
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे अब केंद्रीयविद्यालय में प्रोफेसर हैं जिन्होनें आवाज द वॉयस  को बताया कि आज मुझे मेरे स्टूडेंट्स इतना प्यार और सम्मान देते हैं मेरे सारे नोट्स वक़्त पर तैयार करते हैं. मुझे हेल्प करते भी करते हैं. मुझे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि मेरे साथ कभी भी किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव हुआ हो.
 
जब मैं विद्यार्थी था तो देहरादून में प्रधानाचार्य से लेकर हर शख्स ने मेरी मदद की मेरी पेपर लिखने के लिए भी मुझे एक साथी दिया गया और मेरे नोट्स बनाने में भी हाथ बताया गया. 
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे ने डॉ. जफ़र महमूद का धन्यवाद किया जिन्होनें उनकी आर्थिक मदद की वहीँ प्रख्यात इतिहासकार प्रोफेसर नजफ़ हैदर ने भी उनकी पीएचडी कम्प्लीट करने में सहायता की.  
 
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे ने बड़े ही जोश के साथ आवाज द वॉयस को बताया कि मेरी नेत्रहीनता कभी भी मेरे लक्ष्य के अड़े नहीं आई हुई और हमेशा मैने अपने लिए अवसर की तलाश की और उसमें अपना बेस्ट दिया.
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे ने बताया कि हिन्दू मुस्लिम एकता के कई दृश्य मैने अपने जीवन में अनुभव किए जिसमें एक शख्स अहम हैं उनका नाम है सात्विक भान जिन्होनें उनके यूपीएससी एग्जाम के दौरान उनकी बहुत सहायता की. 
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे अब मुस्लिम विद्वान समुदाय के एक प्रमुख सदस्य हैं, वह अपने समुदाय के उन युवाओं के लिए मशालची बनना चाहते हैं जो अपने सपनों को आगे बढ़ाना चाहते हैं. “भारत विभिन्न धर्मों और विविधताओं का देश है. मैं चाहता हूं कि युवा नकारात्मक विचारों और आवाज़ों को छोड़कर खुद को अपने सपने की ओर धकेलें.
 
मेने जब कश्मीर छोड़ा था तब वहां नेत्रहीन बच्चों के लिए स्कूल और समाज में कोई जगह नहीं थी लेकिन अब हालात बदले हैं कश्मीर के लोग हमेशा से ही शांति और अम्न चाहते थें जो उन्हें अब मिल रहा है अब वहां आतंक नहीं है.
 
डॉ. इशाक अहमद मघ्रे ने आवाज द वॉयस से मुस्कुराते हुए कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां मुझे सबका साथ मिला और जहां की डेमोक्रेसी के कारण ही मैं आज अपने लक्ष्य को पा सका. 
 
 
डॉ. इशाक अहमद मगरे ने बताया कि वे अपनी खूबसूरत जर्नी के दौरान लगभग पूरा भारत घूम चुके हैं यहां तक की दुबई भी घूम आए हैं और अब आगे भी पूरी दुनिया के दर्शन करनी की इच्छा रखते हैं उनको उम्मीद है कि ऐसा अवसर भी उनको जल्द ही प्राप्त होगा जिसमें वो अपनी मन की आँखों से दुनिया दर्शन करेंगे.
 
वाकई डॉ. इशाक अहमद मगरे अपने आप में एक अचीवर होने के साथ साथ अतुल्य भारत का बौद्धिक उदाहरण हैं.