उर्दू शायर ख़ालिक़ हुसैन परदेसी को कंठस्थ है राम कथा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 14-11-2023
Urdu poet Khaliq Hussain Pardesi knows Ram Katha by heart
Urdu poet Khaliq Hussain Pardesi knows Ram Katha by heart

 

सेराज अनवर/ पटना 

उर्दू के प्रसिद्ध शायर अल्लामा इक़बाल ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को इमाम ए हिन्द से नवाज़ा यानी हिंदुस्तान का इमाम माना.इसी वजह कर राम को मानने वाले मुसलमान भी बहुत हैं. बिहार के गया जिला में हिंदी, उर्दू और मगही भाषा एक प्रसिद्ध शायर ख़ालिक़ हुसैन परदेसी हैं.नक्सल प्रभावित क्षेत्र से आने वाले इस ग्रामीण शायर की पहचान ‘राम कथावाचक’के रूप में है.
 
जब यह राम कथा कहते हैं तो कोई कह नहीं सकता कि इतना कंठस्थ कथा कोई मुसलमान भी कर सकता है.भारत की साझी संस्कृति की ख़ूबसूरती ख़ालिक़ के गले से उतरती है.जो न सिर्फ राम कथा को अनोखे और अनूठे अंदाज में पेश करते हैं,बल्कि देश की गंगा-जमनी तहजीब की गवाही भी देते हैं. 
 

कौन हैं ख़ालिक़ हुसैन परदेसी?
गया ज़िला मुख्यालय से लगभग पचास किलोमीटर की दूरी पर स्थित आंती प्रखंड में है काबर गांव,जहां हिंदी,उर्दू और मगही भाषा के प्रसिद्ध कवि खालिक हुसैन परदेसी रहते हैं.आज भी वहां अधिकांश परिवारों में लगभग पचास मुस्लिम परिवार रहते हैं, हालांकि उनमें से अधिकांश अब गया शहर और अन्य शहरों में बस गए हैं, लेकिन जो लोग वहां हैं उनमें गांव का आपसी भाईचारा,गंगा जमुनी संस्कृति और एक दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान. परंपरा कायम है.
 
खालिक हुसैन परदेसी एक मुस्लिम कवि हैं जो हिंदू त्योहारों और अन्य अवसरों पर राम कथा, चौपाई लिखते और सुनाते हैं.खालिक हुसैन हिंदी,संस्कृत के साथ-साथ उर्दू और क्षेत्रीय भाषा मगही के जाने-माने शायर हैं.
वह सैकड़ों कविताओं, ग़ज़लों, गीतों आदि के रचयिता हैं.कोंच का यह काबर-खैराबाद गांव कभी घोर माओवादी हिंसा से ग्रस्त रहा है. राम कथा के कारण ख़ालिक़ हुसैन परदेसी भी नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं.
 
उनकी सबसे बड़ी पहचान और लोकप्रियता 'राम कथा' के कवि और लेखक के रूप में रही है.हालांकि, अब उनका राम कथा पढ़ने का सिलसिला कम हो गया है, लेकिन 1980 से 1995 तक पूरे एक महीने तक राम कथा पढ़ने के कारण उन्हें 'व्यास' के नाम से जाना जाता था. इनका ये सिलसिला बीच में ही रुक गया.
 
हिन्दुओं ने कभी इनके राम कथा कहने पर एतराज़ नहीं किया.नक्सलवाद के कारण उनका रामकथा पढ़ना बंद हो गया था.
 
 
माओवादियों ने उन पर राम कथा और चौपाई पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि नक्सली चाहते थे कि वे नक्सलवाद के समर्थन और उनके प्रचार-प्रसार में कविताएं सुनाएं. खालिक हुसैन परदेसी ने बताते हैं कि नक्सलियों के प्रतिबंध के कारण न केवल राम कथा का वाचन बाधित हुआ, बल्कि उन्हें अपने गांव काबर-खैराबाद को भी छोड़ना पड़ा.हालांकि,1980 और 1990 के दशक में धार्मिक नफरत आदि का कोई मामला सामने नहीं आया.
 
कीर्तन से राम कथा तक का सफ़र 
वर्ष 2000 के बाद अपनी पहचान के चलते वह फिर से हिंदी और संस्कृत कार्यक्रमों से जुड़ गए और फिर से रामकथा पढ़ना शुरू कर दिया. वे आज भी धार्मिक पुस्तकों के आलोक में चौपाई लिखते और पढ़ते हैं.वह गया ज़िला हिंदी साहित्य समिति के सदस्य भी हैं. वह बचपन से ही गांव के मंदिरों में 'कीर्तन' में भाग लेते थे.इस दौरान वह झाल (एक संगीत वाद्ययंत्र) बजाते थे. साथ ही उनमें यह रुचि पैदा हुई कि हम भी कुछ पढ़ते हैं.
 
उनके जुनून को गांव के पंडित रामेश्वर मिश्रा ने बढ़ावा दिया,जिन्होंने रचनाकार हुसैन को वाल्मिकी की रामायण पढ़ने और लिखने में मदद की. उन्होंने रामचरतमानस, राधे श्याम रामायण पढ़ी और उसके बाद उन्होंने लिखना शुरू किया.यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई. उन्होंने हिंदू धर्म की कई किताबें पढ़ीं और उस पर शोध करने के बाद 'मुक्तक' कविताएं लिखनी शुरू कीं, जिसे उर्दू में क़तआ कहा जाता है.
 
खालिक हुसैन परदेसी कहते हैं कि राम कथा पढ़ने के कारण वह काफी लोकप्रिय हुए, लेकिन इस दौरान उन्हें अपने मुस्लिम समाज की कुछ हस्तियों, खासकर कुछ उलेमा की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा.
 
वे कहते हैं कि हमने हिम्मत नहीं हारी बल्कि उनके पत्रों का जवाब देकर बहस करने का प्रस्ताव रखा. क्योंकि हम भी इस्लाम धर्म के पाबंद हैं और धर्म के बारे में ज्ञान रखते हैं. नाअत ए रसूल और हमद बारी ता'आला भी बड़ी अक़ीदत व मोहब्बत और अख़लास के साथ लिखते और पढ़ते हैं.गांव के जिस घर में भी मिलादुन्नबी की महफ़ील होती उन्हें पढ़ने के लिए उस वक़्त बुलाया जाता था.
 
 
श्री राम के चरित्र से प्रेरित हैं 
 
ख़ालिक़ हुसैन परदेसी का कहना है कि वह श्री राम के चरित्र से प्रेरित हैं और इसीलिए उन्होंने श्री राम के व्यक्तित्व और चरित्र पर लिखा और पढ़ा है, हालांकि इसके लिए उन्हें शुरुआत में समुदाय के बीच नाराजगी का सामना करना पड़ा था.
 
जबकि उनकी क्षमता, शोध, लेखन के दूसरे धर्म के लोग विशेषकर हिंदू वर्ग क़द्रदान हैं. उन्होंने त्योहारों के मौके पर असामाजिक तत्वों द्वारा पैदा किये जाने वाले तनाव पर कहा कि दरअसल ऐसे लोगों को धर्म का ज्ञान नहीं है, या राजनीति से प्रेरित हैं.
 
इसलिए हमें एक भारतीय के रूप में एकजुट रहने की जरूरत है और हम सदियों पुरानी परंपरा,संस्कृति और सभ्यता को बनाए रखे हुए हैं.हुसैन परदेसी बताते हैं कि जब उन्होंने रामकथा आदि पढ़ना शुरू किया तो शुरुआत में गांव के लोगों लोगों को लगा कि वे हिंदू समुदाय के ब्राह्मण हैं.क्योंकि शुरुआत में इस राम कथा को पढ़ने के लिए दस से पंद्रह लोगों की एक मंडली होती थी और उनके साथ वे पहुंचते थे.
 
इस दौरान पुरी भक्ति और उसी तरह के लिबास धोती-कुर्ता और माथे पर तिलक लगा कर शामिल होते थे. इसलिए उन्हें पहचानना मुश्किल था, लेकिन वो अपनी पहचान बता देते थे. उन्होंने बताया कि चौपाई और कई कीर्तन-भजन प्रतियोगिताओं में भाग लिया और उन्हें पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित किया गया.धीरे-धीरे लोगों को पता चला कि वे हिंदू नहीं बल्कि मुस्लिम हैं.
 
क्योंकि वे अपने गांव काबर का प्रतिनिधित्व करते थे.इस वजह से अगर उन्हें किसी भी कट्टरता का सामना करना पड़ता था, तो उनकी टोली में शामिल गांव के लोग आगे आ जाते.उन्हें सार्वजनिक रूप से भेदभाव या कट्टरता का शिकार नहीं होना पड़ा.
 
खालिक हुसैन परदेसी का कहना है कि अगर नक्सलियों ने प्रतिबंध नहीं लगाया होता तो वह आज राष्ट्रीय स्तर पर रामकथा पढ़ने वाले एक बड़े व्यक्ति होते, लेकिन उन्हें जो भी और जितनी लोकप्रियता मिली उससे खुश हैं.