अनुभव-अमृतः रिटायरमेंट के बाद सैय्यदा नौशाद महमूद बनीं लेखिका, लिख डाली हैं 14 किताबें

Story by  शाहताज बेगम खान | Published by  [email protected] | Date 13-04-2023
सैय्यदा नौशाद महमूद
सैय्यदा नौशाद महमूद

 

शाहताज बेगम खान/ पुणे

इसी 7 जनवरी को सैय्यदा नौशाद महमूद ने अपना 73वां जन्मदिन मनाया है, लेकिन उनकी आंखों में बच्चों जैसी चमक बरकरार है. रिटायर होने के बाद 13 साल में 14 किताबें लिख चुकी सैय्यदा नौशाद महमूद ने नौकरी के दौरान एक भी किताब लिखी नहीं थी. बेशक लिखने के बारे में सपने जरूर देखती थीं.

रिटायरमेंट उनकी जिंदगी में खाली बैठने का नहीं, सपने पूरे करने का सबब बन गया.

वह कहती हैं, “आधिकारिक रूप से रिटायर होने में छह माह का समय बचा था. उस वक्त मैं मराठी के लेखक और पत्रकार राधाकृष्ण नार्वेकर की किताब ‘सेवानिर्वित झाला! पुढ़े काव’पढ़ रही थी और इसने मुझे बहुत प्रभावित किया. मैंने किताब का ऊर्दू में अनुवाद करने का निश्चय किया. रिटायरमेंट के बाद, रिटायरमेंट पर ही मेरी पहली किताब,‘मुलाजमत से सुबुकदोष हो चुके: अब आईंदा क्या’प्रकाशित हुई.”

सैय्यदा नौशाद महमूद रिटायरमेंट के करीब पहुंचते हुए रिटायरमेंट के बाद केजीवन की तैयारी कर रही थीं. इन तैयारियों में जमकर पढ़ना भी शामिल था. उनकी पहली पुस्तक की सफलता ने रिटायरमेंट के बाद जीवन की राह तय कर दी. अभी तक उनकी 14किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.

सैय्यदा नौशाद

बहुत मेहनत लगती है साहब

वह बताती हैं, “40वर्ष तक नौकरी करने के बाद भी मैं चाहती थी कि अगर मुझे अवसर मिले तो मैं शिक्षण के पेशे से जुड़ी रहूं. परन्तु यह संभव नहीं था. खाली बैठ नहीं सकती थी इसलिए कोई ऐसा काम चाहिए था जो मुझे भी पसंद हो और समाज को भी उससे लाभ हो.”

सैय्यदा कहती हैं, “रिटायरमेंट से पहले मैं ने कुछ नहीं लिखा लेकिन अब जैसे ही समय मिलता है लिखने बैठ जाती हूं.”

सैय्यदा नौशाद को लिखने का ऐसे जुनून है कि कभी-कभी तो वह पांच से छह घण्टे तक लगातार लिखती रहती हैं. यह तो हकीकत है कि अगर हम अपनी पसंद का कार्य कर रहे हों तो हम बहुत अच्छा महसूस करते हैं. परन्तु मेहनत बहुत लगती है.

 

सैय्यदा नौशाद महमूद

रिवायती दादी-नानी

संयुक्त परिवार की सदस्य रिटायर्ड नौशाद बेगम वही पुरानी रिवायती दादी-नानी हैं, जो अपने बच्चों के बच्चों को कहानियां भी सुनाती हैं और उनकी सब से अच्छी दोस्त और राजदार भी हैं.

वह कहती हैं, “अब तो मेरे पोते-पोतियों और नवासे-नवासियों की भी शादी हो गई है. अब तो अगली पीढ़ी की देखभाल का समय आ गया है. और मैं उनके साथ भी चलते रहने को तैयार हूं."

वह कहती हैं कि उनकी कई साथी, जो उनके साथ ही रिटायर हुई हैं वह उन्हें टोकती हैं कि तुम आराम क्यों नहीं करतीं?

वह कहती हैं कि मैं यह मानती हूं कि अतीत बीत गया है, भविष्य किसने देखा है, जो है बस आज है. वर्तमान में जियो. जब तक हाथ-पैर चल रहे हैं तब तक दूसरों पर बोझ क्यों बनें. अपने पैरों पर खड़े रहें, काम करते रहेंगे तभी स्वस्थ भी रहेंगे. खुद भी जिएं और दूसरों को भी जीने दें.

 

कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख

‘शख्सियतसाजी’(personification) पर नौशाद बेगम की कलम बहुत तेज़ी से चल रही है. वह कहती हैं, “जब हम नौकरी कर रहे थे तो अपने काम के लिए तनख्वाह मिलती थी. लेकिन अब हम बिना किसी लाभ, लोभ, लालच के यह काम कर रहे हैं. सच कहूं,बहुत खुशी मिलती है, एक अच्छा अहसास होता है कि हम अपने अनुभवों, विचारों और ज्ञान को दूसरों के साथ बांट रहे हैं. अगर हम नई पीढ़ी को संस्कारवान बनाने में मदद कर सकते हैं तो हमें कौन रोक सकता है? मैं तो कोशिश करती रहूंगी."

sayeda

पूरी तरह जियो

अपने जीवन का एक लंबा सफर तय कर चुके लोगों को सन्देश देते हुए वह कहती हैं कि हर व्यक्ति की अपनी अलग इच्छा होती है. जिसे जो कार्य पसंद हो, वही काम करे. मगर खाली बैठ कर अपना समय बर्बाद न करे. पूरा जीवन ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश में निकल जाता है. अगर अब दूसरों के लिए कुछ नहीं करना चाहते तो मत कीजिए, लेकिन अपने लिए ज़रूर कुछ कीजिए.

वह कहती हैं कि जीवन का यह बोनस हिस्सा पूरी तरह जीने का है. परन्तु अपने लिए जीते हुए भी इस बात का ध्यान रखिए कि आपके कारण दूसरों को असुविधा न हो. याद रखिए, हम सब के जीवन में वह समय भी ज़रूर आता है जब हमें दूसरों की जरूरत पड़ती है.

नौशाद बेगम मुसकुरा कर कहती कि समझदारी इसी में है कि "आस पास के लोगों के साथ सहयोग बनाए रखा जाए. जियो मगर समझदारी से."

 

कलम की सिपाही

“जब तक मेरी अंगुलियों में कलम पकड़ने की ताक़त है तब तक मेरीयह कलम कागज़ पर चलती रहेगी." उन्होंने पहले बच्चों को पढ़ाया और अब उन्हीं के लिए ख़ास तौर पर लिख रही हैं.

वह अपने मजबूत इरादे व्यक्त करते हुए कहती हैं, “एक दिन तो हमारा शरीर और मस्तिष्क थक जाएगा. हम सबको मालूम है तो फ़िर जो समय हमें मिला है उसका सदुपयोग क्यों न किया जाए?”

जब उनसे पूछा कि आप के उपदेशों से लोग परेशान तो नहीं हो जाते?तो उन्होंनें हंसकर कहा, “इतनी उम्र हो गई है, अब मुझे इतना तो मालूम है कि कब चुप हो जाना चाहिए. मैं अपनी बात इस शेर पर समाप्त करती हूं-

दी हमने रोशनी तो कुछ अहसान नहीं किया

हम थे ही जब चिराग तो जलना पड़ा हमें