धर्मगुरु अपने धर्म की शिक्षाओं का पालन नहीं करते तो दोषी हैं: कृष्ण मुरारी बापू

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 14-09-2023
Religious leaders are guilty if they do not follow the teachings of their religion:  Krishna Murari bapu
Religious leaders are guilty if they do not follow the teachings of their religion: Krishna Murari bapu

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक गुरु कृष्ण मुरारी बापू ने कहा कि अगर धर्मगुरु अपने-अपने धर्म की शिक्षाओं का पालन नहीं कर रहे हैं तो वे दोषी हैं. वह जामिया हमदर्द कन्वेंशन सेंटर में इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज द्वारा आयोजित मानवीय मूल्यों के संवर्धन में धार्मिक विविधता की भूमिका विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में अपने विचार रख रहे थे.

उन्होंने आगे कहा, यदि समाज में भ्रष्टाचार है तो यह नेताओं की गलती है. अगर लोग जीवन के सिद्धांतों को समझ लें तो किसी को किसी से नफरत नहीं करेगा.
 
 उन्होंने कहा कि हमारा तरीका कुछ भी हो, ईश्वर एक है और हमें उस तक पहुंचना है. अगर किसी व्यक्ति के पास सब कुछ है और उसके पास मान नहीं है तो वह एक जानवर है.
 
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक विज्ञान संकाय के पूर्व डीन और आईओएस के सेक्रेटरी प्रो. जेड एम खान ने कहा कि ईश्वर की रचनाओं में मनुष्य सर्वोच्च है. इस उत्कृष्टता और विशिष्टता में धर्मों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन धर्मों का राजनीतिकरण बहुत ही खतरनाक हो गया है. 
 
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की विविधता की सबसे पुरानी सभ्यता है. जानवरों और मनुष्यों के बीच एक अंतर है. मनुष्य मानसिक और आध्यात्मिक रूप से प्रेरित और विनम्र है जो अन्य जीवित प्राणी नहीं हैं. यही मुख्य अंतर है. 
 
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बुद्ध की शिक्षा और भारतीय ज्ञान 

उन्होंने आगे कहा कि मानवीय इच्छाओं की कोई सीमा नहीं. ज्ञान वह है जो हमें दयालु बनाता है. निःस्वार्थता, धैर्य, ध्यान और अंतर्दृष्टि के साथ काम करें और हमेशा विचार, दृढ़ संकल्प, शब्द, कार्य, आजीविका, तपस्या और स्मरण की ईमानदारी पर नजर रखें. उन्होंने कहा कि यह बुद्ध की शिक्षा और भारतीय ज्ञान का सार है. 
 
इससे पहले आईओएस के उपाध्यक्ष प्रो. अफजल वानी ने कहा कि विश्वास का सार इसकी निष्पक्षता है. जब भी हम भारत को देखते हैं, हम अपने कानों में गौतम बुद्ध की आवाज पाते हैं.
 
मिसाक ए मदीना 

जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर और मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर अख्तर-उल-वासे ने कहा कि दुनिया भर की सभी धार्मिक परंपराएं, चाहे वो भारत में पैदा हुई हो या कहीं और, पहले दिन से यही हैं और फल-फूल रही हैं.
 
उन्होंने कहा कि अगर दुनिया में कुछ भी करने लायक है, वह मिसाक ए मदीना है. जो काम ईश्वर को करना है उसे अपने हाथ में न लें. उन्होंने मिर्जा गालिब के शब्दों में कहा,है रंग व लाला व गुल व वसरीन ए मुख्तलिफ, हर रंग में बहार का इसबात चाहिए.
 
मानवीय मूल्यों को बढ़ावा 

ईसाई विद्वान और धार्मिक नेता डॉ. एम डी थॉमस ने कहा कि विविधता ब्रह्मांड के निर्माण का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है. अंतर कोई नकारात्मक चीज नहीं. उन्होंने कहा कि मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाना प्रत्येक धर्मगुरु का कर्तव्य है. मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है.
 
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जीवन प्रकृति से मित्रता 

जबकि सरदार मनप्रीत सिंह ने गुरु नानक की शिक्षाओं के आलोक में मानवीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार पर प्रकाश डाला. कहा कि गुरु नानक एक महान विचारक, सुधारक और कवि थे. उन्होंने अपने पूरे जीवन में लोगों को एकता और समानता का संदेश दिया. जीवन प्रकृति से मित्रता सिखाता हैं. 
 
धर्म जीवों पर दया करना सिखाता है

जैन नेता एवं प्राकृत प्रोफेसर डॉ. सुदीप जैन ने कहा कि हर धर्म जीवों पर दया करना सिखाता है. उन्होंने कहा कि भारत का ज्ञान यह है कि ढाई हजार साल पहले सम्राट अशोक ने ईरान से लेकर बंगाल की खाड़ी और श्रीलंका की सीमा तक शिलालेख लगवाए थे कि इस देश में मेरा आदेश है.सब धर्म का और किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए.
 
उन्होंने कहा कि वासुदेव कुटुम्बकम कहना आसान है. इसे व्यवहार में लाना कठिन. अपने अंदर सत्य को स्वीकार करने की क्षमता विकसित करें.प्रोफेसर हमीदुल्लाह मुरारी ने कहा कि हर धर्म के नेताओं की जिम्मेदारी है कि मानव जाति के लिए एक दूसरे के करीब और मानवता को बचाएं. 
 
सेमिनार का संचालन प्रो. हाशिया हसीना ने किया.इसकी शुरुआत अदनान अहमद नदवी द्वारा कुरान की तिलावत से हुई. लोगों का स्वागत डॉ. फजलुर रहमान ने किया. उद्घाटन भाषण जामिया हमदर्द के कुलपति प्रोफेसर अफसार आलम ने दिया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अरशद हुसैन ने.