सेराज अनवर/पटना
बड़ा बनने के लिए क़द मायने नहीं रखता.किरदार क़द्दावर होना चाहिए.टीवी और सिने अभिनेतालिलिपुट फ़ारूक़ी का जीवन और करियर यह सिखाता है कि कला की दुनिया में क़द-काठी का कोई मोल नहीं.सिर्फ़ आपकी प्रतिभा और समर्पण ही आपकी पहचान बनाता है.
कैसे उन्होंने अपने क़द को अपनी सबसे बड़ी ताक़त बना लिया, जिससे उन्हें अनोखे और यादगार किरदार मिले.फ़िल्म इंडस्ट्री हो या फिर टीवी इंडस्ट्री, यहां पर अपना करियर बनाने के लिए लोग ख़ूब कोशिशें करते हैं,लेकिन सभी को कामयाबी मिल जाए ऐसा संभव नहीं हो होता.
लिलिपुट फ़ारूक़ी एक ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अपने शुरुआती दिनों में बहुत कठिनाइयों का सामना किया.परंतु हर कठिनाई को पार करते हुए लगातार मेहनत करते रहे और आज वह इंडस्ट्री में अपनी अच्छी ख़ासी पहचान बना चुके हैं.

लिलिपुट,एक ऐसा नाम जिसने बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री में अपनी छोटी लेकिन असरदार उपस्थिति से बड़ी छाप छोड़ी है. उनकी पहली बॉलीवुड फ़िल्म सागर (1985) का किरदार हो या बंटी और बबली (2005) में उनका बैंड ट्रम्पेट प्लेयर का किरदार,लिलिपुट ने हर किरदार में जान डाल दी.
उनका सबसे यादगार रोल मिर्ज़ापुर वेब सीरीज़ में दद्दा त्यागी के रूप में रहा.जिसमें उन्होंने एक क्रूर लेकिन प्रभावशाली पात्र निभाया.लिलिपुट ने न केवल अपने अभिनय से,अपने जीवन के दिलचस्प क़िस्सों से भी सबका दिल जीता है.
लिलिपुट की पांच खास बातें
लिलिपुट का असली नाम मोहम्मद मिस्बाहउद्दीन फ़ारूक़ी है.अभिनेता लिलिपुट बिहार के गया शहर के गेवाल बिगहा से ताल्लुक़ रखते हैं.आज़ादी के तीन साल बाद यानी 3अक्टूबर,1950में जन्म लेने वाले लिलिपुट ने मध्य बिहार के अलीगढ़ यूनिवर्सिटी मानी जाने वाली गया स्थित मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज से बीएससी की है.विज्ञान के छात्र रहे हैं.पत्नी का नाम सुलेखा है.इनकी दो बेटियां इशा और गिरिशा हैं.
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बचपन से ही अभिनय के प्रति लिलिपुट में दीवानगी थी.स्कूल और कॉलेज से मंच पर अभिनय करना शुरू कर दिया था.इसको देखते हुए इनके मित्र अशोक नारायण ने फ़िल्मों में भाग्य आज़माने के लिए प्रेरित किया.ग्रैजूएशन के बाद लिलिपुट ने मुम्बई का रुख़ किया.
काफी संघर्ष के बाद पहली बार 1979 में “एक था गधा उर्फ अलादाद खान” नाटक में अभिनय करने के बाद उन्हें एक थिएटर कलाकार के रूप में अपार लोकप्रियता मिली.फिल्म ‘रोमांस’ (1983) से बॉलीवुड में पदार्पण करने के बाद, उन्होंने फिल्म ‘गृहस्थी’ (1984) में अभिनय किया, जिसमें उन्होंने एक वेटर की भूमिका निभाई.
उन्होंने अपनी पहली टेलीविज़न सीरीज़ ‘इधर उधर’ (1985-1998) में रत्ना पाठक और सुप्रिया पाठक के साथ काम किया.उन्होंने टेलीविज़न सीरीज़ के लिए स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर भी काम किया.परंतु सीरियल 'विक्रम और बेताल' से उन्हें अच्छी ख़ासी लोकप्रियता हासिल हुई.
लिलीपुट ने फिर हुकूमत, वो फिर आएगी, स्वर्ग, दुश्मन दुनिया का, शिकारी, आंटी नंबर 1, शरारत, नक़्शा, बंटी और बबली, कामयाब और बीस्ट जैसी फ़िल्में कीं.टीवी की दुनिया में भी लिलिपुट ने ख़ूब नाम कमाया. वह देख भाई देख में अलग-अलग किरदारों में दिखे.
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उन्हें टीवी श्रृंखला ‘देख भाई देख’ (1995) में उनके प्रदर्शन के लिए काफी सराहना मिली, जो चैनल डीडी मेट्रो पर प्रसारित हुई.इसके अलावा उन्होंने विक्रम और बेताल, शौर्य और सुहानी, अदालत, रज़िया सुल्तान और ज़बान संभाल के जैसे टीवी सीरियलों में अपने शानदार अभिनय से नई छाप छोड़ी.
उन्होंने साउथ इंडिया की भी कई फ़िल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा.आपको ये जानकर हैरानी होगी कि लिलिपुट ने लोकप्रिय टीवी सीरियल विक्रम और बेताल में सिर्फ़ एक्टिंग ही नहीं की थी, बल्कि इसकी कहानी भी उन्होंने ही लिखी थी.इसके अलावा उन्होंने दूरदर्शन का पॉपुलर शो 'इंद्रधनुष' भी लिखा था. 1992में, उन्होंने नसीरुद्दीन शाह, शाहरुख खान और उर्मिला मातोंडकर अभिनीत फिल्म 'चमत्कार' के लिए संवाद लिखे.
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संघर्ष के दौरान कई दिन भूखे रहना पड़ा
लिलिपुट का जीवन काफ़ी संघर्षपूर्ण रहा है. उन्होंने अपने ज़िंदगी में काफ़ी उतार-चढ़ाव देखा है.एक वक़्त ऐसा भी था जब वह एक्टर बनने का सपना लेकर बंबई आए थे. तब उन्होंने दोस्त के द्वारा दिए गए 130रुपए से बॉम्बे की टिकट ख़रीदी थी.बंबई आने के बाद लिलिपुट काम की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे परंतु लाख कोशिश के बावजूद उनको कोई भी काम नहीं मिला. उनके पास खाने तक के भी पैसे नहीं थे.कई दिन तो उन्हें भूखे रहकर गुज़ारना पड़ा था.
उनके बहुत से दिन दर-दर की ठोकरें खाते और बिना खाए बीते.कई रातें ऐसी निकलीं जब लिलिपुट को एक निवाला तक नसीब नहीं हुआ.आज भी लिलिपुट वो दिन याद करके भावुक हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि 15दिन लगातार वह भूखे रहे.तब उनके एक दोस्त को इस हालत का पता चला और खाना खिलाया.
लिलिपुट ने अपने संघर्षों के दिनों में पोस्टर चिपकाने से लेकर गड्ढा खोदने और लकड़ियां काटकर बेचने व होर्डिंग लगाने तक सभी छोटे-मोटे काम किए थे.इस तरह शुरुआत में मुंबई में सर्वाइव करने के लिए लिलिपुट ने हर छोटा-मोटा काम किया. उन्होंने कभी हार नहीं मानी और लगातार कोशिशें करते रहे.हाल के दिनों में वेब सीरीज़ मिर्ज़ापुर में लिलिपुट दद्दा त्यागी के रोल से दर्शकों के दिल पर छा गए.
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अपने बौनेपन को हावी नहीं होने दिया
आज की तारीख़ में लिलिपुट बॉलीवुड के पुराने और मशहूर अभिनेता हैं. भले ही इनकी लम्बाई कम है लेकिन अभिनय के मामले में यह किसी भी अच्छे क़द काठी वाले अभिनेताओं से कम नहीं. तक़रीबन 39सालों से वह इंडस्ट्री में सक्रिय हैं.परंतु आज जिस मुक़ाम पर वह खड़े हैं, उनके लिए यहां तक पहुंच पाना बहुत ही कठिन रहा था.
उन्होंने फ़िल्मों से लेकर टीवी की दुनिया में ढेरों किरदार निभाए और हर किरदार में ख़ुद को साबित किया.अपने टैलेंट और कामयाबी की राह में लिलिपुट ने अपने बौनेपन को हावी नहीं होने दिया.कम क़द की वजह से लिलिपुट का इंडस्ट्री में उनका ख़ूब मज़ाक भी उड़ाया जाता था.वो जिसके भी पास काम मांगने जाते, वो उनके क़द का मज़ाक़ उड़ाकर रिजेक्ट कर देता