अमृत अनुभव- मैं छुट्टी पर जा ही नहीं सकता: जम्मू कश्मीर के मुहम्मद याक़ूब ख़ान

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 24-04-2023
अमृत अनुभव-  मैं छुट्टी पर जा ही नहीं सकता: जम्मू कश्मीर के मुहम्मद याक़ूब ख़ान
अमृत अनुभव- मैं छुट्टी पर जा ही नहीं सकता: जम्मू कश्मीर के मुहम्मद याक़ूब ख़ान

 

शाहताज खान/ पुणे

"मैं नहीं जानता कि रिटायरमेंट क्या है? मैं तो रिटायर होने के बारे मे सोच भी नहीं सकता. आज कल मैं 6000 से भी अधिक बच्चों को आन लाइन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करा रहा हूं. मैं छुट्टी पर जा ही नहीं सकता."यह शब्द हैं जम्मु कश्मीर के मुहम्मद याक़ूब ख़ान के.यह वही  शैक्षणिक परामर्शदाता हैं जिनकी कक्षा में 2009 के संघ लोक सेवा आयोग के टॉपर शाह फैसल भी आया करते थे.

पुराना अध्याय बंद, एक नई यात्रा शुरू 

प्रोफ़ेसर मुहम्मद याक़ूब ख़ान मैनेजमेंट के प्रोफ़ेसर थे. आज से 22 वर्ष पूर्व उन्होंने एक महत्वपूर्ण निर्णय किया. जिसने उनके जीवन को पूरी तरह बदल दिया. युवाओं को पढ़ाते हुए उन्होंने अनुभव किया कि युवाओं को रोजगार प्राप्त करने में अत्याधिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है.

याक़ूब ख़ान ने पाया कि शिक्षा के साथ शैक्षणिक परामर्श और मार्गदर्शन की अति आवश्यकता है. नौकरी छोड़ कर वो इस यात्रा पर निकल पड़े जिस की मंज़िल का उन्हें कुछ पता नहीं था. आज वह 66 वर्ष के हो चुके हैं लेकिन जोश और उत्साह में कोई कमी नहीं आई है.

वक्त की क़दर करो 

"वक्त के लिहाज़ से हर व्यक्ति अमीर है. वक्त सब के पास बराबर है. अब केवल यह देखना है कि समय का सही उपयोग कैसे किया जाए. अगर आप रचनात्मक और सृजनात्मक कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखेंगे तो आप का दिमाग़ भी यहां वहां नहीं भटकेगा.

और आप हर रोज़ अच्छा महसूस करेंगे." क्योंकि यह तो हम सभी जानते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है. जिस के कारण कई मानसिक रोग, ख़ास तौर पर डिप्रेशन जैसी समस्या घेर लेती है. जो आज कल हर दूसरे व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर रही है. याक़ूब ख़ान कहते हैं कि हर पल स्वयं को व्यस्त रखना और कुछ प्रोडक्टिव काम करते रहना ही हमें कई समस्याओं से निजात दिला सकता है.

बहाने बनाना छोड़ दो 

रिटायर व्यक्ति अकसर यही कहते हैं कि पूरा जीवन काम करते हुए बिताया है अब आराम का समय है. इस पर उन का कहना था कि यह और इस प्रकार की बहुत सी बातें केवल बहाना मात्र हैं. खाली बैठ कर केवल अपना ही नुकसान नहीं करते बल्कि अपने घर के वातावरण को भी परभावित करते हैं.

एक ज़माना था जब कोई रिटायर हो कर घर आता था तब उसके लिए एक ख़ास काम होता था, अपने बच्चों के बच्चों को पालना. लेकिन अब अधिकतर परिवारों में इस काम और जिम्मेदारी के लिए कोई जगह नहीं है.

समझदारी इसी में है कि स्वयं को व्यस्त और सक्रिय रख कर कुछ प्रोडक्टिव काम करते रहें. वह आगे कहते हैं कि रिटायरमेंट किसी भी रोड का अंत नहीं है बल्कि एक खुले और लम्बे हाईवे का प्रारंभ है.

जीवन बहुत अनमोल है

"यह जीवन बहुत सुंदर,आकर्षक और बहुत अनमोल है. इसे व्यर्थ न जाने दें. सेवाकाल के दौरान एक व्यक्ति के पास कई प्रकार के अच्छे _बुरे अनुभव होते हैं. जिसके द्वारा वह नई पीढ़ी और समाज को नई दिशा दे सकता है.

मैं ने जब यह जान लिया कि मेरी ज़रूरत कहां अधिक है तो मैं ने रिटायरमेंट तक की प्रतिक्षा नहीं की. मैं ने स्वयं को समझाया कि अगर मैं युवाओं को पढ़ाना बंद कर दूंगा तो कोई अधिक फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि बहुत से टीचर मौजूद हैं. लेकिन युवाओं को रोजगार और अच्छी नौकरियों को प्राप्त करने में मार्गदर्शन की आवश्यकता है तो मैं ने तुरंत निर्णय लिया."

याक़ूब ख़ान ज़ोर देकर कहते हैं कि हमें पहले अच्छी तरह विचार कर के ही कोई क़दम उठाना चाहिए.  

उम्र तो सिर्फ़ एक नंबर मात्र है

"जब एक दौर से निकल कर हम दुसरे दौर में दाखिल होते हैं तो हम यह सोचने लगते हैं कि अब हमारी उपयोगिता समाप्त हो गई."वो ज़ोर देकर कहते हैं कि "जिस भी फील्ड का 30_40 वर्ष का तजुर्बा आप के पास है, आप के रिटायर होते ही उस विभाग का महत्त्व खत्म नहीं हो जाता. उस तजुर्बे को काम में लाइए, दूसरों से अपने अनुभव बांटिए. आप के अनुभव आने वाली नस्ल को अत्याधिक लाभ पहुंचा सकते हैं.आवश्यकता इस बात की है कि आप स्वयं अपने अनुभवों को महत्व दें." यह तो सत्य है कि जब हम ख़ुद अपने आप को नहीं समझेंगे तब तक दूसरों को कैसे समझा पाएंगे?

चलते रहना ही ज़िंदगी

"जब हम युवाओं की काउंसलिंग करते हैं तो उस में एक चैप्टर रिटायरमेंट से संबंधित भी होता है. ताकि वह जीवन को भलीभांति समझ सकें और सही निर्णय लेते हुए आगे बढ़ते रहें. इस लिए यह ज़रूरी है कि युवाओं की" ज़ेहन साजी " शुरू से ही की जाए.

जीवन के हर पड़ाव को उसके महत्व और ज़रूरत के अनुरूप अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें. केवल नौकरी ही प्राप्त करना उनका अंतिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए. हम कोशिश करते हैं कि वह अपने पुरे जीवन काल में घर, परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी रहें."

अकसर होता यह है कि पूरा जीवन ऐसे काम में बीत जाता है जो केवल आय प्राप्त करने का जरिया मात्र था. याकूब खान कहते हैं कि " जो काम जीवन में करना चाहते थे, अगर वो नहीं कर पाए हैं तो रिटायरमेंट के बाद का समय सब से उपयुक्त है . आप को किसने रोका है? रुकिए नहीं बस चलते रहिए." 

बस चलते ही जाना है 

जब मुहम्मद याक़ूब ख़ान से आवाज़ दी वॉयस ने पूछा कि वो काम और आराम के बीच अपने दिन के 24 घण्टे कैसे बांटते हैं? उन्होंने मुस्कुरा कर कहा " मैं केवल आठ घण्टे आराम के लिए मुश्किल से निकाल पाता हूं.

इस से अधिक आराम की अभी मुझे अवश्यकता भी नहीं है. जब तक हाथ, पैर, और दिमाग चल रहे हैं तब तक ऐक्टिव जीवन जीता रहूंगा. जब शरीर और मस्तिष्क साथ देना छोड़ देगा फिर तो आराम ही आराम होगा. परन्तु तब तक बस चलते ही जाना है.