फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा एक सूफ़ी पेंटर, बोलीं दुनिया में सबसे खुश हैं भारतीय मुसलमान

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 27-03-2024
Farkhanda Khan Fida, a Sufi painter, said Indian Muslims are the happiest in the world
Farkhanda Khan Fida, a Sufi painter, said Indian Muslims are the happiest in the world

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 
 
जहां सूफीवाद है वहां शांति है क्योंकि सूफीवाद का मतलब ही अंतर्मन की शांति है और जब आप भीतर से शांत हैं तो आपके भीतर द्वेष, ईर्षा, घृणा, लड़ाई, झगडे सब अपने आप ही नष्ट हो  जाएंगे. ये कहना है सुफी पेंटर का.
 
सूफ़ी पेंटर फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा इसी नेक दृष्टी से अपनी हर एक पेंटिंग कैनवास पर उतारती हैं. यूँ तो दुनिया में कई पेंटर्स हैं लेकिन फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा को एक अलग पहचान मिलती हैं उनकी खास पेंटिंग्स से, जो आडंबर से हटकर सूफीवाद को बढ़ावा दे रही हैं. 
 
 
फ़रख़ंदा ख़ान के पिता भी थे शौकिया पेंटर
ऊतर प्रदेश के कालिंजर गांव जिला बांडा में 1970 में जन्मी फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने पेंटिंग की कला एयरफोर्स में तैनात अपने पिता से विरासत में सीखी. हालांकि एयरफोर्स में तैनात फ़रख़ंदा ख़ान के पिता मोहम्मद सईद खान शौकिया तोर पर अपनी ड्यूटी से फ्री होकर रात को पेंटिंग किया करते थे जिसे वे अपने करीबियों को तोहफे के रूप में भेट कर देते थे. उन्होनें बताया की उस दौर में उनके पिता फेब्रिक और रिकॉर्ड पेंटिंग्स किया करते थे. इसमें राधा-कृष्ण, सरस्वती माता आदि की पेंटिंग्स की भरमार थी जिनकी छवि आज भी फ़रख़ंदा ख़ान के दिल में बसी है. 
 
 
फ़रख़ंदा ख़ान को तब ये नहीं मालूम था कि वे भी भविष्य में एक मशहूर पेंटर बन जायेंगी. उन्होनें आवाज को बताया कि उनकी स्कूली शिक्षा पुणे और आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में हुई और उन्होनें अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की. फिर उन्होनें फाइन आर्ट्स में स्नातक कर गोल्ड मैडल हासिल किया और 2019 में महाराष्ट्र के नागपुर विश्वविद्यालय से मॉडर्न आर्ट में डॉक्टरेट की. कुछ वक़्त सालवान पब्लिक स्कूल में फाइन आर्ट्स भी पढ़ाया इसी दौरान उनकी शादी हो गई.
 
अपने पेंटिंग करियर की शुरुवात साझा करते हुए फ़रख़ंदा ख़ान ने आवाज को बताया कि बचपन से ही उन्हें पेंटिंग का शोक था और 1994 में फाइन आर्ट्स में मास्टर्स के बाद मुझे तलाश थी एक ऐसे अनोखे विषय की, जो अभी भी पैन्टेर्स से अछूता हो. 
 
 
फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा कैसे बनी सूफ़ी पेंटर
1997 में जब फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने अपनी पेंटिंग्स ललित कला अकादमी में प्रदर्शीत की तो उनकी मुलाकात जाने माने पेंटर मक़बूल फ़िदा हुसैन से हुई जिन्होनें उनकी पेंटिंग की कला को न सिर्फ सराहा बल्कि फ़रख़ंदा को एक ऐसा विषय भी चुनने के लिए कहा जो भविष्य में पेंटिंग की दुनिया में फ़रख़ंदा ख़ान की एक अलग और खास पहचान बन सके.
 
 
और फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने अपने अलग सब्जेक्ट ऑफ़ पेंटिंग को चुनने के लिए कई सर्च और रिसर्च की, कई किताबें चाट डाली, कितनीं ही आर्ट गलियारे घूमे, आध्यात्मिक से लेकर साहित्य तक सब कुछ पढ़ा लेकिन उन्हें वो मोती नहीं मिला जिसकी उन्हें तलाश थी. और ये तलाश खत्म तब हुई जब उन्होनें हजरत निज़ामुद्दीन की ओर रुख किया और सूफीवाद की दस्तक उनके दिल में घर कर गई.
 
 
आडम्बर नहीं केवल इबादत है पेंटिंग  
फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा को यह अहसास हो आया कि एकता में ही शांति है जो उन्हें हजरत निज़ामुद्दीन के दर पर दिखीं. उन्होनें अपनी पेंटिंग्स को सूफीवाद को दर्शाने और समाज में इसे फैलाने के लिए रंगना शुरू किया जिसमें आडम्बर नहीं केवल इबादत नज़र आती है.
 
 
 
फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने ज़्यादातर दरवेश, साधु-संत, साईबाबा, सूफी पेंटिंग्स की. उन्होनें अपनी पेंटिंग्स को नामी प्रदर्शनीयों में भी शोकेस किया इसमें उन्होनें अपनी पेंटिंग को रेम्प पर भी उतारा, आर्ट गैलेरी में भी सजाया और लोगों ने भी उनकी पेंटिंग्स को काफी पसंद किया. इसमें श्री राम कॉलेज, आईटीओ हॉल, आदि जगह शामिल हैं.  
 
 
कमर्शियल पेंटिंग की शुरुवात 
साल 2002 वो वर्ष था जब फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने अपनी पेंटिंग को कमर्शियल तोर पर तैयार करना शुरू किया और उनकी पेंटिंग्स को राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी सराहा गया. उनकी पेंटिंग्स लंदन, बेहरीन आदि विदेशी कंट्रीज तक जा चुकी है. फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा की खास पेंटिंग 5 लाख में बेहरीन में भी खरीदी गई. 
 
 
painting sold in bahrain for 5 lakhs

फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने अपने जीवन के अनुभव को शेयर करते हुए बताया कि कोरोना काल में लोगों ने ये जान लिया है कि जिंदगी के सभी आडम्बर यही धरे रह जायेंगे और हमे अगर सच्ची जिंदगी जीनी है तो हमे आडम्बर से हटकर एक दूसरे के लिए जीना होगा जिसमें प्रेम, दया, परोपकार और समर्पण की भावना जरूरी है. राज बब्बर फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा की पेंटिंग्स को काफी पसंद करते हैं.
 
 
Raj Babbar is admirer of Farkhanda Khan Fida's paintings 

फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा कहतीं हैं की पेंटिंग के शुरुवाती दिनों में उन्हें कुछ उलाहने समाज से भी मिले लेकिन उसे नजरअंदाज कर उन्होनें केवल अपने दिल की सूनी और पोर्ट्रेट्स बनाने शुरू किए क्योंकि उनका मानना है कि दुनिया में इतने चहेरे हैं और वो भी सब अलग-अलग ऊपर वाले की इस खूबसूरत रचना का कोई जवाब नहीं.
 
 
Tears of Indian Muslim

भारत का मुसलमान सबसे खुश 
फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने यासीन खान के साथ दिल्ली में 5 साल तक थिएटर किया और महेश भट्ट सर के नाटक 'डैडी' में काम करने का मौका भी उन्हें मिला और इस दौरान उन्होंने दुनिया भी देखी जिससे एक अनुभव ये हुआ कि भारत का मुसलमान सबसे खुश और आजाद है जिसे किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है. वो जो चाहे खा सकता है, जैसे चाहे जहां चाहे रह सकता है, हंस बोलकर आराम से अपनी जिंदगी जी सकता है. साथ ही फ़रख़ंदा ख़ान ने आवाज को बताया कि भारत का मुसलमान तरक्की की राहों पर है और देश के विकास में कदम ताल कर रहा है.
 
 
Sacrifice of women (Inspired by Hazrat Rabia Basri, A great sufi women from Basra)
 
अपनी पेंटिंग में शामिल किए सामाजिक मुद्दे
फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा ने आवाज को बताया कि उनकी प्रेरणा दो महान पैन्टेर्स लिओनार्दो दा विंची और माइकल एंजेलो हैं और सूफी पेंटिंग्स के साथ-साथ उन्होनें सामाजिक विषयों पर भी अपनी पेंटिंग्स से लोगों को जागरूक किया जिसमें जल संरक्षण, हरी धरती आदि सामाजिक मुद्दे शामिल हैं. फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न मंचों के माध्यम से उनकी पेंटिंग्स के लिए सम्मानित भी किया गया है.
 
 
दिल्ली के साकेत की निवासी फ़रख़ंदा ख़ान फ़िदा सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय हैं और उनका मानना है कि युवाओं को हर वो काम करना चाहिए जो भविष्य में उन्हें मीठा फल दे क्योंकि उनकी उम्र में ही वो उस तेज गति की ऊर्जा और स्वस्थ शरीर और मस्तिष्क से कार्य कर सकते हैं और बाद के लिए उन्हें कुछ भी नहीं टालना और छोड़ना चाहिए. खासकर लड़कियों को किसी भी बेड़ियों में नहीं बंधना चाहिए और अपनी आवाज को सही के लिए हमेशा उठाना चाहिए. वे अपने 12वीं में पढ़ रहे लड़के को भी यही शिक्षा देतीं हैं उनके पति प्रॉपर्टी डीलिंग में हैं.
 
 
Farkhanda Khan with artists in Africa

(लेख के साथ यहां संलग्न सभी चित्रों पर इसकी मालिक और चित्रकार फ़र्ख़ंदा खान फ़िदा का स्वामित्व है.)